किशोरों की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं पर प्रकाश डालिए।
किशोरों की आवश्यकताएँ एवं आकांक्षाएँ- किशोरावस्था की अवधि 13 से 18 वर्ष मानी जाती है। भारत में यह आयु पश्चिम के ठण्डे देशों की अपेक्षा एक वर्ष पहले से प्रारम्भ हो जाती है। किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का महत्त्वपूर्ण काल है, जो बाल्यावस्था के अन्त में प्रारम्भ होता है और प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में समाप्त होता है। इस अवस्था में किशोर में बहुत तीव्रगति से शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक परिवर्तन होते हैं, जिनका प्रभाव उसकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं पर पड़ता है।
किशोरावस्था में किशोर-किशोरियों की आवश्यकताएँ एवं आकाँक्षाएँ निम्नलिखित हैं—
1. शरीर को पुष्ट करने की आवश्यकता- किशोरावस्था में बहुत तेजी से शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इसलिए किशोर अपने शरीर पर विशेष ध्यान देता है। उसकी स्वाभाविक इच्छा होती है कि उसका शरीर मजबूत और पुष्ट इसक लिए वह पौष्टिक भोजन करना चाहता है और नियमित व्यायाम का अभ्यास हो । करता है। अपने शरीर को देखकर किशोर और किशोरी को स्वाभाविक प्रसन्नता होती हैं।
2. शारीरिक सौष्ठव की आकांक्षा- प्रत्येक किशोर और किशोरी का ध्यान अपनी शारीरिक सुन्दरता पर होता है। शारीरिक सुन्दरता की वृद्धि के लिए स्नान, वस्त्र, सजावट और आदि पर विशेष ध्यान देता है। स्वयं को सुन्दर दिखने के लिए वह बराबर प्रयत्नशील रहता है। किशोरियाँ अपने बनाव-श्रृंगार के प्रति बहुत सतर्क होती हैं और नये-नये फैशन के अनुसार अपने को सुन्दर बनाती हैं।
3. शारीरिक प्रदर्शन की आवश्यकता- किशोर केवल शरीर को पुष्ट ही नहीं करना चाहता, बल्कि शरीर की पुष्टता का प्रमाण वह शारीरिक क्रियाओं में भाग लेकर देता है।
4. खेलकूद में भाग लेने की आकांक्षा- किशोर और किशोरियाँ अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेना चाहते हैं। खूब खेलना और थकना उन्हें अच्छा लगता है। खेल के पीछे उन्हें खाने-पीने की भी चिन्ता नहीं रहती।
5. आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता – आर्थिक विषमता के कारण जिन किशोरों के सामने – आर्थिक समस्याएँ होती हैं वे इसकी पूर्ति के लिए कोई-न-कोई कार्य करना चाहते हैं। रोजगार पाने के लिए दौड़-धूप करते हैं और तथा किसी-न-किसी प्रकार अपनी आमदनी को बढ़ाकर आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, जो किशोर गरीब हैं, वे मेहनत-मजदूरी करने में भी संकोच नहीं करते।
6. नियन्त्रण मुक्त होने की आकांक्षा-किशोरावस्था के काल में लड़के-लड़कियाँ अपने को अधिक-से-अधिक नियन्त्रण से मुक्त रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनके नहाने-धोने, बनाव-श्रृंगार, खेल-कूद, बातचीत करने और घूमने-फिरने पर किसी प्रकार का नियन्त्रण न रखा जाये। जब किशोर की स्वतन्त्रता बाधित होती है और तब वह खीझ और क्रोध में अपने व्यवहार का प्रदर्शन करता है।
7. विषमलिंगी से प्रेम की आकांक्षा- किशोरावस्था और विषमलिंगी प्रेम तेजी से बढ़ता है। इसलिए किशोर और किशोरियों में जीवन साथी चुनने का बीज भी उनके हृदय में बढ़ने लगती हैं। 18 और 19 वर्ष के किशोर बालक-बालिकाएँ अपने संगी-साथियों से जीवन साथी के विषय पर बातचीत करते हैं और वैवाहिक जीवन को प्रारम्भ करना चाहते हैं।
8. सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की आकांक्षा- किशोरावस्था में सामाजिक विकास तेजी से होता है और किशोर की सामाजिकता की परिधि बढ़ जाती है। किशोर समाज में अपनी स्वीकृति और स्थिति के लिए प्रयत्नशील रहता है। वह चाहता है कि लोग उसके महत्त्व का अनुभव करें। इसके लिए वह सामाजिक क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है।
9. यौन शिक्षा की आवश्यकता- किशोरावस्था में उचित काम भावना इतनी प्रबल होती है कि इसे दबाया नहीं जा सकता बढ़ी नदी के समान यह किशोर-किशोरी के जीवन के विशाल भाग के सींचकर हरा-भरा बना देती है। इस दशा में किशोर को अपनी यौन शिक्षा की आवश्यकता प्रतीत होती है। हमारे विद्यालयों में इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था नहीं है इसलिए किशोर अश्लील पत्र-पत्रिकाओं और फिल्मों की ओर आकृष्ट होते हैं।
10. आत्माभिमान की आकांक्षा- किशोरावस्था में आत्म सम्मान की भावना बढ़ जाती है और यह कभी नहीं पसन्द करता है कि लोग उसे छोटा बच्चा समझकर उसकी उपेक्षा करें। जो लोग उसके महत्त्व को स्वीकार नहीं करते उनके प्रति उनके मन में घृणा की भावना भर जाती है।
11. किसी को आदर्श बनाने की आकांक्षा- किशोरावस्था में वीर पूजा की भावना तेजी से विकसित होती है। किशोर किसी वीर, क्रान्तिकारी, साहित्यकार, खिलाड़ी, वैज्ञानिक, फिल्मी सितारे आदि, को अपने आदर्श व्यक्ति के रूप में ग्रहण करने के लिए उत्कर्षित होता है।
12. भ्रमण की आकांक्षा- किशोरावस्था में बालक-बालिकाएँ घूमना-फिरना चाहते हैं और नये स्थानों को देखना चाहते हैं। विद्यालय के भ्रमण कार्यक्रमों में हठपूर्वक जाना चाहते हैं।
13. कुछ बनने की आकांक्षा- किशोरावस्था वह अवस्था है, जिसमें बालक-बालिकाएँ स्वयं को किसी राजनेता, खिलाड़ी, फिल्मी सितारे, बहादुर व्यक्ति, सामाजिक कार्यकर्त्ता आदि के रूप में विकसित करने की आकांक्षा को सँजोने लगते हैं। वे चाहते हैं कि आगे चलकर उनकी पहचान किसी विशिष्ट व्यक्ति के रूप में हो।
14. मनोवैज्ञानिक आवश्यकता- मनोवैज्ञानिक आवश्यकता के रूप में किशोर माँ-बाप का प्यार, घर में प्रतिष्ठा और सम्मान तथा भाई-बहनों में समान स्थान माना चाहता है।
15. सामाजिक आवश्यकता- किशोर की सामाजिक आवश्यकताओं में सार्थियों के साथ सहयोग, नेता बनने की भावना, बड़ों का प्रतिरोध, विषमलिंगी के प्रति प्रेम व मिलन आदि बातें आती हैं।
किशोर और किशोरियाँ अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सदैव सचेष्ट होते हैं और किसी-न-किसी प्रकार इनकी पूर्ति करना चाहते हैं। जब उनकी कोई आवश्यकता या आकांक्षा पूरी नहीं होती, तब उनमें कुण्ठा का भाव पैदा हो जाता है। इस स्थिति में कभी-कभी किशोर का प्रतिरोधी स्वभाव भी प्रकट होता है। वह अलग ढंग से अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति करना चाहता है। माता पिता, शिक्षक आदि को किशोर की आवश्यकता, आकांक्षा की संतुष्टि के सम्बन्ध में काफी सावधान होना चाहिए।
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