वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व- विकास के सिद्धान्तों का शिक्षा में बहुत महत्त्व है। ये सिद्धान्त शिक्षकों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होते हैं। ये सिद्धान्त एक अध्यापक को अपने विद्यार्थियों को समझने में बहुत सहायता करते हैं। इन सिद्धान्तों का शैक्षणिक दृष्टि से उपयोग निम्नलिखित प्रकार से है-
1. विकास के सिद्धान्तों के ज्ञान से एक अध्यापक यह जान सकता है कि बच्चे को कब तथा किस तरह से उत्साहित करें, ताकि उसका सर्वांगीण विकास हो सके।
2. इन नियमों सहायता से अध्यापक को बालक के स्तर के बारे में भी ज्ञान प्राप्त होता है।
3. इन सिद्धान्तों के माध्यम से अध्यापक बालकों के व्यक्तिगत-अन्तरों को पहचान उनको उसी ढंग से शिक्षा प्रदान कर उसके विकास को बढ़ाता है।
4. विकास के सिद्धान्तों के आधार पर एक अध्यापक अपने विद्यार्थियों की शैक्षणिक जरूरतों को समझ सकता है।
5. ये नियम अध्यापक को पाठ योजना बनाने में भी सहायता करते हैं।
6. वृद्धि तथा विकास के नियम अध्यापक को ज्ञान प्रदान करते हैं कि किस स्तर पर बच्चे से आशा की जा सकती है।
7. वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों मिलकर बालक की वृद्धि और विकास का आधार बनते हैं वंशानुक्रम को नियंत्रण में नहीं रख सकते, परन्तु ठीक वातावरण प्रदान कर सकते हैं। इस बात का ज्ञान हमें वातावरण में आवश्यक सुधार लाकर बालक को उनका अधिक कल्याण करने के लिए प्रेरित करता है।
8. वृद्धि और विकास के सिद्धान्तों का ज्ञान यह बताता है कि बच्चे को कब तथा किस प्रकार से उत्साहित करें ताकि उसका पूर्ण विकास हो सके।
9. वृद्धि तथा विकास के सिद्धान्त अध्यापक को पाठ्यक्रम ।
10. इस सिद्धान्तों का ज्ञान अध्यापक को यह बताता है कि बालक को पूर्ण रूप से अध्ययन करना चाहिए न कि भागों में।
11. ये अध्यापक को बालकों के व्यक्तिगत अन्तरों को समझकर उचित कार्यक्रम देने में सहायता करते हैं।
12. वृद्धि और विकास की सभी दिशाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। विकास की किसी एक दिशा पर ध्यान न देने से दूसरे सभी पहलुओं में हो रहे विकास में रुकावट पड़ सकती हैं
इस बात का ज्ञान हमें बच्चों के सर्वांगीण विकास पर बल देने के लिए प्रेरित करता है ।
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