सामाजिक जागरूकता से क्या तात्पर्य है? क्या यह सामाजिक गतिशीलता के लिए उत्तरदायी है?
सामाजिक जागरूकता से क्या तात्पर्य है?
सामाजिक जागरूकता से तात्पर्य (Meaning of Social Awareness)– आधुनिक परिप्रेक्ष्य सामाजिक जागरूकता की बहुत महत्त्वपूर्ण जरूरत है, क्योंकि समाज में कई प्रकार की अनैतिकताएँ व्याप्त हैं। इन अनैतिकताओं का क्षेत्र इस समय इतना व्यापक है कि इससे समाज का कोई भी वर्ग चाहे वह समृद्ध, गरीब, ग्रामीण, शहरी कोई भी अछूता नहीं है। समाज की उन अनैतिकताओं के बारे में निम्नलिखित जानकारी है, जिससे कि आज के समय में जागरूकता की आवश्यकता है-
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दहेज निषेध- यह भाग दहेज निषेध
की जानकारी देते हुए उसके खिलाफ में जागरूकता का आह्वान करता है। - बाल विवाह- यह भाग भारत में राज्यानुसार बाल विवाह संबंधी आँकड़े रखते हुए उसके कारण, कुप्रभाव एवं उसके उन्मूलन हेतु किए जा रहे प्रयासों की जानकारी देता है।
- शराब की लत- इस भाग में शराब की लत एवं उसमें होने वाली परेशानियों का जिक्र किया गया है।
- स्वच्छता के लिए जागरूकता- इस भाग में लोगों से स्वच्छता को बढ़ावा देने की अपील की गई है।
- बाल मजदूरी एक अभिशाप – इस भाग में बाल मजदूरी जैस अभिशाप के बारे में लिखा गया हैं।
- तम्बाकू की लत रोकथाम- इस भाग में तंबाकू के दुष्प्रभाव बताते हुए उसकी लत को छोड़ने हेतु उपाय भी बनाये जाते हैं।
- जादू-टोना- इस भाग में जादू-टोना से जुड़े सामाजिक एवं चिकित्सकीय परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत किया गया है, जिससे लोगों में जागरूकता फैले।
- कन्या भ्रूण हत्या- इसके अन्तर्गत इस समस्या से जुड़े तथ्यों, छुपे खतरों के कारण तथा इसको रोकने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गयी है।
- मानव व्यापार- इसके अन्तर्गत मानव व्यापार के विभिन्न रूपों की चर्चा की गयी है।
- महिला सशक्तीकरण- इस आलेख में महिलाओं की आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना शामिल है।
- मद्यपान निषेध- इसमें मद्यपान रोकने के दस उपायों के विषय में विस्तार से जानकारी दी गयी हैं।
- महिला हिंसा- इसमें महिला हिंसा से जुड़ी बातों को सम्मिलित किया गया है।
- अल्पसंख्यक समाज में विवाह एवं तलाक का अधिकार- इस लेख में अल्पसंख्यक विवाह एवं तलाक के अधिकारों की जानकारी दी गयी है।
- उपभोक्ता अधिकार- इसमें उपभोक्ता अधिकार से संबंधित बातों को सम्मिलित किया गया है।
सामाजिक गतिशीलता हेतु अनिवार्य-
शिक्षा का उद्देश्य होता है मानव को ज्ञान प्राप्त कराना, मानवीय चेतना, राष्ट्रीय चेतना भी शिक्षा द्वारा ही जागरित होती है। इसमें सामाजिक परिवर्तन होते हैं। शिक्षा जनकल्याणकारी होती है। यह करणीय और अकरणीय का बोध कराती है। सुशिक्षित व्यक्ति समाज के प्रति अपने दायित्व को भली प्रकार समझता है एवं अपने आचरणों द्वारा जीवन-मूल्यों के प्रति सजग रहता है। अतः शिक्षा से ही व्यक्ति के जीवन-मूल्यों का सूत्रपात होता है। आज सामाजिक गतिशीलता की प्रवृत्ति में वृद्धि के साथ स्वाभाविक रूप से शिक्षा भी प्रभावित हो रही है। व्यक्ति एवं उसका समूह प्रगति के लिए प्रयत्नशील है; परन्तु इसके प्रयत्न तब सार्थक सिद्ध होगें जब वह सही अर्थो में शिक्षित होगा। जिसके लिए आवश्यक है जरूरी शिक्षा व्यवस्थाएँ। क्योंकि शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति अथवा वर्ग की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है। अपने समाज की प्रगति के लिए उसमें गतिशीलता लाने हेतु उस समाज के सम्पन्न व्यक्ति या स्वयंसेवी संस्थाएँ शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करती हैं, छात्रावास भवन बनवाती हैं, विद्यार्थियों के लिए सस्ते दाम पर पुस्तकें एवं यूनीफार्म की व्यवस्था करती हैं, छात्रवृत्तियाँ देती हैं, प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक की संस्थाएँ स्थापित की जाती हैं। व्यावसायिक शिक्षा देने वाली संस्थाएं न्यासों द्वारा या धार्मिक संस्थाओं द्वारा स्थापित की जाती है।
शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को दीक्षित तथा सम्मानित किया जाता है। उसे देश-विदेश में होने वाले विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोगों से परिचित होने का अवसर दिया जाता है। शैक्षिक प्रौद्योगिकी एवं प्रविधियों के माध्यम से ज्ञान को सहज, सुबोध एवं रोचक बनाने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा के माध्यम से और विशेषकर व्यावसायिक शिक्षा द्वारा उन्हें इस योग्य बनाया जाता है कि वे अपने उपयुक्त कार्य करने हेतु अवसर प्राप्त कर सकें। इससे जहाँ एक ओर उन्हें आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने का अवसर प्राप्त होता है। वहीं सामाजिक प्रतिष्ठा भी मिलती हैं। इस प्रकार शिक्षा सामाजिक गतिशीलता में उल्लेखनीय योगदान देती है। जहाँ शिक्षा सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है वहीं सामाजिक गतिशीलता शिक्षा से प्रभावित भी होती हैं।
सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य व्यक्ति या समूह का निम्न या उच्च सामाजिक स्थितियों में जाना, इसे व्यक्ति या समाज का एक सामाजिक स्तर या पद से दूसरे सामाजिक स्तर पर पद में सम्मिलित होना भी कहा जा सकता है। सामाजिक गतिशीलता एक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में पहुँचाने की प्रक्रिया है। यह सामाजिक गतिशीलता जो परिवर्तन करती है, वह परिवर्तन समूह या समाज की संरचना के अन्तर्गत होता है। शिक्षा सामाजिक संरचना को इस दृष्टि से गतिशील बनाती है कि वह समाज की रूढ़ियों एवं अनेक वर्षों से चले आ रहे चिन्तन एवं जीवन शैली में परिवर्तन लाती है। व्यक्ति को प्रजातंत्र के योग्य नागरिक बनने में सहायता देती है, व्यक्ति को उच्च पदों पर कार्य करने के योग्य बनाती है। शिक्षा से शिक्षकों की गतिशीलता बढ़ जाती है। शिक्षा छात्रों में गतिशीलता इस प्रकार लाती है। कि प्रत्येक छात्र को अपनी योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।
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