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पारिवारिक संकट का अर्थ एवं पारिवारिक मूल्य संकट के कारण

पारिवारिक संकट का अर्थ एवं पारिवारिक मूल्य संकट के कारण
पारिवारिक संकट का अर्थ एवं पारिवारिक मूल्य संकट के कारण

पारिवारिक जीवन के संकट के समायोजन’ विषय की व्याख्या एवं विश्लेषण कीजिए।

पारिवारिक संकट का अर्थ- जीवन के मूल्य क्या हैं? वास्तव में ये वे शाश्वत मूल्य हैं? जो मनुष्य जीवन में नैतिकता तथा मानवता को समाहित कर उनको अन्य जीवधारियों से पृथक करते हैं तथा उन्हें सम्पूर्णता को प्रदान करते हैं। पारिवारिक जीवन में आए संकट को पारिवारिक संकट कहते हैं।

मूल्य का अर्थ- मूल्य से तात्पर्य किसी भी परिप्रेक्ष्य में उसकी कीमत, गुणवत्ता एवं उपयोगिता से होता है। मूल्य हमारे मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं उसका मूल्य बढ़ाते हैं। इन मूल्यों को हम जितना अधिक व्यवहार में प्रयोग करते हैं, ये उतनी ही शीघ्रता से नैतिकता में वृद्धि करते हैं।

हम आधुनिक युग के बदलते परिवेश में रह रहे हैं, जिसमें हम पर गिरते हुए मानवीय मूल्यों को संकट की काली छाया मँडरा रही है। हमरे देश की स्वतंत्रता के 70 वर्षों के पश्चात् हमने आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, औद्योगिक, शैक्षिक एवं वैज्ञानिक स्तर पर विकास किया है। परन्तु इस विकास के दौर में हम अपने मानवीय मूल्य जो हमारी विशेषता है उससे बिछड़ते जा रह हैं। मानव अन्य से अपने नैतिक गुणों, जैसे- सत्य, अहिंसा, दया, शान्ति, प्रेम आदि के कारण ही भिन्न है। इन मूल्यों को हम दिन-प्रतिदिन खोते जा रहे हैं। यही पारिवारिक मूल्य संकट है।

मूल्यों के ह्रास के परिणाम स्वरूप हमारे समाज में असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आन्दोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्शहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता, अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष तथा हिंसा आदि ने मानवता को जकड़ लिया है।

व्यक्ति तथा समाज में साम्प्रदायिकता, जातिवादिता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, हिंसा की संकीर्ण, कुत्सित भावनाओं एवं समस्याओं का मूल कारण है मनुष्य का नैतिक एवं चारित्रिक पतन अर्थात् नैतिक मूल्यों का क्षय।

वर्तमान में हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में तनाव तथा घुटन, दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मनुष्य जीवन कई परिवेशों से होकर गुजरता है। अतः सभी के लिए ये मूल्य अत्यावश्यक है एवं मूल्यों के ह्रास होने से ये संकट समस्त परिवेशों में उथल-पुथल मचा रहा है।

मूल्यों के ह्रास के कारण पारिवारिक संकट बढ़ता जा रहा है। परिवार में आपसी प्रेम नहीं व्याप्त रहा। भाई-भाई के खून का प्यास बन रहा है। दाम्पत्य जीवन में खटास बढ़ती जा रही है। माता-पिता से बच्चों को प्रेम नहीं रहा।

लालच वश होकर मनुष्य एक-दूसरे को मारने काटने हेतु एक क्षण भी नहीं हिचकता मूल्यों के हास के कारण मानव जाति का स्वर्णिम युग समाप्त होता जा रहा है। निरन्तर विनाश की ओर कदम हमारा जा रहा है। सामाजिक जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। गरीबों, असहायों का शोषण बढ़ रहा है।

समाज में मनुष्य का उद्देश्य होता है कि वह मानवीय मूल्यों, जैसे सत्य, अहिंसा, प्रेम, शान्ति आदि का संरक्षण करे तथा उनका पालन करे। समाज के कल्याणकारी सामंजस्य की स्थिति कायम रखने हेतु मूल्यों का संरक्षण करे। ये मूल्य ही सम्पूर्ण मानव समाज का स्तम्भ हैं।

पारिवारिक मूल्य संकट के कारण एवं समायोजन

पारिवारिक मूल्य संकट के निम्नवत कारण एवं समायोजन है-

(1) अत्याधुनिक शिक्षा व्यवस्था- आधुनिक शिक्षा व्यवस्था दोषपूर्ण हो गई है। जिसमें केवल व्यावसायिक शिक्षा पर ही बल दिया जा रहा है, बल्कि नैतिक शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं मिल पा रहा है।

(2) भारतीय संस्कृति के प्रति अज्ञानता- भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों में अज्ञानता व्याप्त है। भारतीय संस्कृति हमें सर्वप्रथम में नैतिक मूल्यों से ही अवगत कराती है। अतः संस्कृति से प्रभावित शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए।

(3) परिवारों का छोटा होना- पहले के समय में परिवार बड़े होते थे, जिनमें दादा, दादी, बुआ, ताऊ आदि होते थे जिनके संपर्क में नैतिकता का ज्ञान बालकों को मिलता रहता था। परन्तु आज के समय में परिवार छोटे हो गए हैं। लोग जीविकोपार्जन हेतु अपने परिवार से दूर होने कारण नैतिकता क ज्ञान को भुलाते जा रहे हैं।

(4) सरकारी नीतियाँ- सरकार द्वारा ऐसी शैक्षिक नीतियाँ बनाई जानी चाहिए कि नैतिक मूल्यों की शिक्षा जरूरी हो। जैसे मूल्यों के ह्रास के कारण बच्चे अपने माता-पिता को स्वयं से दूर रखते हैं एवं *उनकी आर्थिक सहायता भी नहीं करते। अर्थात् इसके निराकरण हेतु सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जिनमें बच्चे अपने माता-पिता को आर्थिक सहायता भी प्रदान करें तथा उनकी देख-रेख भी करें।

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