जीवन मूल्यों की स्थापना में परिवार एवं विद्यालय का महत्त्व बताइए।
परिवार एवं जीवन मूल्य की शिक्षा- जीवन मूल्यों की स्थापना में परिवार एवं विद्यालय की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार बच्चे की सर्वप्रथम पाठशाला है। परिवार में बच्चा भाषा सीखता है, आचरण की विधियाँ सीखता है धर्म एवं संस्कृति ग्रहण करता है। परिवार में ही बच्चों में मूल्यों की नींव रखी जाती है। प्रारम्भ में बच्चा अपने माता-पिता, भाई-बहन आदि का अनुकरण कर बोलना सीखता है तथा आचरण की विधियाँ सीखता है। फिर वह अपने कार्यों के प्रति दूसरों की अनुक्रिया देखकर उनमें से सही का चुनाव करने लगता है एवं गलत को त्यागने लगता है। थोड़ी समझ बढ़ने पर वह अपने कार्यों का विश्लेषण, सत्य-असत्य एवं न्याय-अन्याय में भेद करने लगता है। बस यहीं से मूल्यों की निर्माण प्रक्रिया विकसित होनी प्रारम्भ हो जाती है। परिवार एवं विद्यालय में बच्चों में उचित ढंग से विकास करने के लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए-
(1) प्रशंसा एवं पुरस्कार- माता-पिता को बच्चे में मूल्यों के विकास हेतु उन्हें प्रशंसा एवं पुरस्कार देना चाहिए।
(2) स्वस्थ आदतों का विकास- बच्चों में स्वस्थ आदतों का विकास करना चाहिए।
(3) स्वच्छ वातावरण- माता-पिता को परिवार का माहौल इस प्रकार बनाना चाहिए। जिसमें बच्चे अपने मूल्यों को विकसित करने हेतु प्रेरित हों।
(4) उदाहरण प्रस्तुत करना- माता-पिता द्वारा बच्चों के समक्ष ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जाने चाहिए जिससे उनमं जीवन मूल्यों का विकास हो सके।
(5) मूल्य आधारित आचरण- बच्चों में उचित मूल्यों के विकास के लिए मूलभूत आवश्यकता उचित सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण की होती है। विद्यालय में शिक्षकों को बच्चों के सामने मूल्य आधारित आचरण करना चाहिए। प्रारम्भ में बच्चे इस आचरण को बिना समझे अनुकरण करते हैं, पर थोड़ी समझ आते ही वे क्यों का उत्तर चाहते हैं? विद्यालय में शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को क्या का उत्तर दें एवं बच्चों को तत्सम्बन्धी ज्ञान, बोध कराएँ ।
(6) कहानी द्वारा आचरण का निर्माण- इनमें बच्चों की स्वाभाविक रुचि होती है। इसमें उनका मनोरंजन भी होता है साथ ही साथ वे इनसे मानवीय गुणों एवं व्यवहार कौशल की शिक्षा प्राप्त करते हैं। विद्यालय में बच्चों को ऐसी कहानी सुनानी चाहिए जो छोटी एवं सरल हो, जिनके कार्य एवं परिणाम स्पष्ट हों, जिनसे बच्चों को प्रेम, सहानुभूति, सहयोग, दया, क्षमा, वीरता, शौर्य एवं राष्ट्र निर्माण, समर्पण आदि जैसे तत्वों के महत्त्व का ज्ञान हो सके।
(7) रेडियो, टेलीविजन आदि द्वारा मूल्य निर्माण- अधिकांश परिवारों में रेडियो, ट्रॉन्जिस्टर एवं टेलीविजन कार्यक्रम आजकल देखे एवं सुने जाते हैं। इन पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं- कहानी, नाटक, धारावाहिक वृत्तचित्र एवं फीचर फिल्म आदि। प्रायः परिवार के अनेक सदस्य इन्हें एक साथ सुनते-देखते हैं। बच्चे इन कार्यक्रमों के प्रति अपने माता-पिता आदि की अनुक्रियाओं को बड़े गौर से देखते हैं। यह बहुत अच्छा अवसर होता है जब माता-पिता अपनी सही अनुक्रियाओं द्वारा बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं उन्हें सत्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं एवं असत्य से उन्हें सावधान कर सकते हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे मूल्य आधारित और मूल्य प्रतिकूल व्यवहारों में भेद करें एवं बच्चों को मूल्य आधारित आचरण की प्रेरणा दें।
(8) समाज के व्यवहार द्वारा सुधार- बच्चे बड़ा होने पर समुदाय के सदस्यों के बीच जाते हैं। यहाँ उन्हें परिवार की अपेक्षा बहुत बड़ा व्यवहार क्षेत्र मिलता है। वे अपने व्यवहार के प्रति दूसरों की अनुक्रिया देखते-सुनते एवं समझते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि कुछ लोग अच्छे व्यवहार के प्रति भी गलत अनुक्रिया करते हैं। तभी तो बच्चे परिवार में अच्छा-बुरा सब कुछ सीखते हैं। ऐसे में परिवार के सदस्यों को समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार विधियों की चर्चा करनी चाहिए एवं बच्चों को केवल दूसरों की अनुक्रिया के आधार पर ही नहीं अपितु मूलभूत आधारों पर अपना व्यवहार निश्चित करना चाहिए। परिवार के सदस्यों को चाहिए कि बच्चों के सामने समाज द्वारा स्वीकृत आचरण को पेश करें। जिससे वे बुरे आचरण के प्रभावों से बच सकें।
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