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“भारत में जीवन मूल्यों की शिक्षा गृह तथा परिवार से आरम्भ होती है।”

"भारत में जीवन मूल्यों की शिक्षा गृह तथा परिवार से आरम्भ होती है।"
“भारत में जीवन मूल्यों की शिक्षा गृह तथा परिवार से आरम्भ होती है।”

“भारत में जीवन मूल्यों की शिक्षा गृह तथा परिवार से आरम्भ होती है।” वर्णन कीजिए।

“परिवार बच्चे की सर्वप्रथम पाठशाला है।” परिवार में बच्चा बोलना सीखता है, आचरण की विधियाँ सीखता है, धर्म एवं संस्कृति ग्रहण करता है। परिवार में ही बच्चों में मूल्यों की नींव रखी जाती है। प्रारम्भ में बच्चा अपने माता-पिता, भाई-बहन आदि का अनुकरण कर भाषा सीखता है। आचरण की विधियाँ सीखता है। फिर वह अपने कार्यों के प्रति दूसरों की अनुक्रिया देखकर इनमें से सही का चुनाव करने लगता है एवं गलत को त्यागने लगता है। थोड़ी समझ आने पर वह अपने कार्यों का विश्लेषण करने लगता है एवं गलत को त्यागन लगता है। बस यहीं से मूल्यों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। परिवारों में बच्चों में उचित मूल्यों का उचित ढंग से विकास करने के लिए निम्नवत् कार्य करने चाहिए-

(1) मूल्य आधारित आचरण- आरम्भ में बालक अपने माता-पिता, भाई-बहन आदि का अनुकरण कर व्यवहार की विधियाँ सीखते हैं। कुछ बड़ा होने पर वह इन विधियों के औचित्य के बारे में सोचने लगता है और क्योंकि के उत्तर में वे मूल्य पर पहुँच जाते हैं तत्पश्चात् यह मूल्य ही उनके व्यवहार का आधार बन जाता है तथा वे इन मूल्यों के अनुसार व्यवहार करते हैं। साफ जाहिर है कि बच्चों में उचित मूल्यों के विकास के लिए मूलभूत जरूरत उचित सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण की होती है। परिवार के युवा, प्रौढ़ और वृद्ध सभी व्यक्तियों को बच्चों के सामने मूल्य आधारित आचरण करना चाहिए।

(2) कहानी द्वारा मूल्यों की स्थापना- परिवार में बच्चों को ऐसी कहानी सुनानी चाहिए जो छोटी एवं सरल हो जिनके और परिणाम स्पष्ट हों, जिनसे बच्चों को प्रेम, सहानुभूति, सहयोग, दया, दान, क्षमता, शौर्य और राष्ट्र समर्पण के महत्त्व का ज्ञान हो।

(3) रेडियो-टेलीविजन कार्यक्रमों का विश्लेषण- ज्यादातर परिवारों में रडियो, टेलीविजन कार्यक्रम सुने, देखे जाते हैं। इन पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं- कहानी, नाटक, धारावाहिक वृत्त चित्र और फीचर फिल्म आदि। प्रायः परिवार के अनेक सदस्य इन्हें एक साथ सुनते देखते हैं। बच्चे इन कार्यक्रमों के प्रति बहुत गम्भीर होते हैं, यही अवसर होता है जब माता-पिता अपनी अनुक्रियाओं आदि के द्वारा बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं, इन्हें सत्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं और असत्य से उन्हें सावधान कर सकते हैं।

(4) अच्छे सामाजिक आचरण की पुष्टि- बड़े होने पर बच्चे समुदाय के बच्चों के बीच हैं। यहाँ उन्हें परिवार की अपेक्षा बहुत बड़ा व्यवहार क्षेत्र मिलता है। वे अपने व्यवहार के प्रति दूसरों की अनुक्रिया देखते, सुनते और समझते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ लोग अच्छे व्यवहार के प्रति भी गलत अनुक्रिया करते हैं। परिवार का यह कर्तव्य है कि बालकों के सामने समाज द्वारा स्वीकृत अच्छे आचरण की पुष्टि की जाए।

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