बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्त (Theories of Intelligence)- बुद्धि के अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं, जो उसके स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इनमें से प्रमुख सिद्धान्त अधोलिखित हैं-
I. एक-खण्ड का सिद्धान्त (Unifactor Theory)
II. दो-खण्ड का सिद्धान्त (Two-Factor Theory)
III. तीन-खण्ड का सिद्धान्त (Three-Factor Theory)
IV. बहु-खण्ड का सिद्धान्त ((Multi-Factor Theory)
V. मात्रा-सिद्धान्त (Quantity Theory)
I. एक-खण्ड का सिद्धान्त-
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बिने, टर्मन और स्टर्न हैं। उन्होंने बुद्धि को एक अखण्ड और अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। योग्यताओं की विभिन्न परीक्षाओं द्वारा यह मत असत्य सिद्ध कर दिया गया है।
II. दो-खण्ड का सिद्धान्त (Two-Factor Theory)-
इस सिद्धान्त का प्रतिपादक स्पीयरमैन है। उसके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में दो प्रकार की बुद्धि होती है- सामान्य और विशिष्ट। दूसरे शब्दों में, बुद्धि के दो खण्ड या तत्व होते हैं- (1) सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व, और (2) विशिष्ट योग्यता या विशिष्ट तत्व।
1. सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व- स्पीयरमैन (Spearman) ने सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार, सामान्य योग्यता सब व्यक्तियों में कम या अधिक महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार, सामान्य योग्यता सब व्यक्तियों में कम या अधिक मात्रा में मिलती है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं- (1) यह योग्यता, व्यक्ति में जन्मजात होती है। (2) यह उसमें सदैव एक-सी रहती है। (3) यह उसके सब मानसिक कार्यों में प्रयोग की जाती है। (4) यह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है। (5) यह जिस व्यक्ति में जितनी अधिक होती है, उतना ही अधिक वह सफल होता है। (6) यह भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में सामान्य सफलता प्रदान करती है।
2. विशिष्ट योग्यताएँ या विशिष्ट तत्व (Specific Ability or ‘S’ Factor)- इन योग्यताओं का सम्बन्ध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। इनकी मुख्य विशेषताएँ हैं- (1) ये योग्यताएँ अर्जित की जा सकती हैं। (2) योग्यताएँ अनेक और एक-दूसरे से स्वतन्त्र होती हैं। (3) विभिन्न और अलग-अलग मात्रा में होती हैं। (5) जिस व्यक्ति में जो योग्यता-अधिक होती है, उसी से सम्बन्धित कुशलता में वह विशेष सफलता प्राप्त करता है। (6) ये योग्यताएँ भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में विशेष कुशलता प्रदान करती हैं।
स्पीयरमैन (Spearman) के इस सिद्धान्त को आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते हैं। इसका कारण बताते हुए मन (Munn) ने लिखा है- “मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि स्पीयरमैन जिसे सामान्य योग्यता कहता है, उसे अनेक योग्यताओं में विभाजित किया जा सकता है।”
III. तीन-खण्ड का सिद्धान्त (Three-Factor Theory)-
यह सिद्धान्त भी स्पीयरमैन (Spearman) के नाम से सम्बन्धित है। ‘दो-खण्ड का सिद्धान्त’ प्रतिपादित करने बाद उसने बुद्धि का एक खण्ड और बताया। उसने इसका नाम ‘सामूहिक खण्ड या तत्व (Group Factor) रखा। उसने इस खण्ड में ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया, जो ‘सामान्य योग्यता से श्रेष्ठ और ‘विशिष्ट योग्यताओं’ से निम्न होने के कारण उनके मध्य का स्थान ग्रहण करती हैं।
स्पीयरमैन (Spearman) का यह सिद्धान्त सर्वमान्य नहीं बन सका है। इसका कारण बताते हुए क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने लिखा है- “यह सिद्धान्त व्यक्ति की योग्यताओं और पर्यावरण के प्रभावों को स्वीकार न करके बुद्धि को वंशानुक्रम से प्राप्त किये जाने पर बल देता है।
IV. बहु-खण्ड का सिद्धान्त (Multi-Factor Theory)-
स्पीयरमैन (Spearman) के बुद्धि के सिद्धान्त पर आगे कार्य करके मनोवैज्ञानिकों ने ‘बहुखण्ड का सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया। इन मनोवैज्ञानिकों में कैली (Kelly) और थर्स्टन (Thurstone) के नाम उल्लेखनीय हैं।
(1) कैली (Kelly) के अनुसार बुद्धि के खण्ड- कैली (Kelly) ने अपनी पुस्तक “Crossroads in the Mind of Man” में बुद्धि को निम्नलिखित 9 खण्डों या योग्यताओं का समूह बताया है- देता है।”
(i) रुचि (InterestAbility)
(ii) गामक योग्यता (Motor Ability)
(iii) सामाजिक योग्यता (Social Ability)
(iv) सांख्यिक योग्यता (Numerical Ability)
(v) शाब्दिक योग्यता (Verbal Ability)
(vi) शारीरिक योग्यता (Physical Ability)
(vii) संगीतात्मक योग्यता (MusicLAbility)
(viii) यांत्रिक योग्यता (Mechanical Ability)
(ix) स्थान-सम्बन्धी विचार योग्यता (Ability to deal with Spatial Relations)
थर्स्टन (Thurstone) के अनुसार बुद्धि के खण्ड-थर्स्टन (Thurstone) ने अपनी पुस्तक “Primary Mental Abilities” में बुद्धि के 13 खण्ड या तत्व बताये हैं। दूसरे शब्दों में, उसने बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह बताया है, जिसमें से निम्नांकित 9 को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
(i) स्मृति (Memory)
(ii) प्रत्यक्षीकरण की योग्यता (Perceptual Ability)
(iii) सांख्यिकी योग्यता (Numerical Ability)
(iv) शाब्दिक योग्यता (Verbal Ability)
(v) तार्किक योग्यता (Logical Ability)
(vi) निगमनात्मक योग्यता (Deductive Ability)
(vii) आगमनात्मक योगयता (Inductive Ability)
(viii) स्थान-सम्बन्धी योग्यता (Spatial Ability)
(ix) समस्या समाधान की योग्यता (Problem Solving Ability)
बुद्धि के ‘बहुखण्ड सिद्धान्त’ का समर्थन नहीं किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि बुद्धि का विभिन्न प्रकार की योग्यताओं में विभाजन सर्वथा अनुचित है। क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने लिखा है- “इन तत्वों (योग्यताओं) को जटिल मानसिक क्रिया की पृथक इकाइयाँ नहीं समझा जाना चाहिए।”
V. मात्रा-सिद्धान्त (Quantity Theory)-
इस सिद्धान्त का प्रतिपादक थार्नडाइक (Thorndike) है। वह ‘सामान्य मानसिक योग्यता के समान किसी तत्व को स्वीकार नहीं करता है। थार्नडाइक (Thorndike) का मत है- “मस्तिष्क का गुण स्नायु तन्तुओं की मात्रा में निर्भर रहता है।” (“The quality of intellect depends upon the quantity of connections of neural connectors.”) इसका अभिप्राय यह है कि बुद्धि उतनी ही अधिक अच्छी होती है, जितने अधिक मस्तिष्क और स्नायुमण्डल के सम्बन्ध होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के आधार पर यही सम्बन्ध हैं।
थार्नडाइक (Thorndike) ने अपने सिद्धान्त को ‘उद्दीपक-प्रतिक्रिया’ (Stimulus Response) के आधार पर सिद्ध किया है। उसका मत है कि जिन अनुभवों का उद्दीपक प्रतिक्रियाओं से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, वे भविष्य में उसी प्रकार की समस्याओं का समाधान अधिक सरल बना देते हैं।
थार्नडाइक (Thorndike) के सिद्धान्त की दो कारणों से कटु आलोचना की गई है। पहला यह है कि यह सिद्धान्त, मस्तिष्क और स्नायु-मण्डल के सम्बन्ध पर बहुत अधिक बल देता है। दूसरे कारण को क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- “यह सिद्धान्त मस्तिष्क की सम्पूर्ण रचना के लचीलेपन को कोई स्थान नहीं देता है।”
उपर्युक्त सिद्धान्तों के अलावा बुद्धि के सम्बन्ध में शैक्षिक मनोवैज्ञानिकों ने और भी सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। पर वे अभी तक न तो बुद्धि के स्वरूप और न व्यक्ति की सामान्य एवं विशिष्ट योग्यताओं के बारे में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच पाये हैं। बुद्धि के सम्बन्ध में आधुनिक विचारधारा को व्यक्त करते हुए ह्विटमर ने लिखा है- “इस बात में बहुत सन्देह है कि बुद्धि के समान कोई स्वतंत्र इकाई है। सही मायनों में यह कहना अधिक उपयुक्त है कि व्यक्ति अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार करता है।”
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