विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के आधारभूत तत्त्व कौन-कौन से है? निर्देशन सेवा का क्षेत्र क्या है? निर्देशन सेवा में कौन-कौन से कर्मचारी होते है?
विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के आधार अथवा मूल तत्त्व
विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के आधार अथवा मूल तत्त्व-निर्देशन सेवाओं के क्षेत्र में हैम्फ्री एवं ट्रैक्सलर ने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “गाइडेंस सर्विसेज” में विद्यालयों में प्रदान की जाने वाली निर्देशन सेवाओं के संगठन के निम्न सात आधारभूत तत्त्वों का उल्लेख किया है-
1. विद्यालयों के आदर्शों, छात्रों की योग्यताओं और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्देशन सेवाओं के संगठन के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाना चाहिए।
2. निर्देशन सेवा के अन्तर्गत किये जाने वाले समस्त कार्यों की एक नियमित योजना बनायी जानी चाहिए।
3. निर्देशन सेवा में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों को उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार कार्यों का दायित्व प्रदान किया जाना चाहिए।
4. निर्देशन सेवा के समस्त कार्यकर्ताओं को उनके कार्य क्षेत्र से सम्बन्धित अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए।
5. निर्देशन सेवा से सम्बद्ध प्रत्येक व्यक्ति के उत्तरदायित्व और उसके अन्य कार्यकर्ताओं के साथ सम्बन्धों की प्रकृति स्पष्ट रूप से परिभाषित की जानी चाहिए।
6. निर्देशन सेवाओं का संगठन विद्यालय के उद्देश्यों, कर्मचारियों की संख्या, आर्थिक संसाधनों और विशेषताओं के अनुसार होना चाहिए।
7.निर्देशन सेवाओं का संगठन जटिल न होकर सरल होना चाहिए।
विद्यालय निर्देशन सेवाओं के क्षेत्र-
निर्देशन सेवा एक विशिष्ट प्रकार की निर्देशन प्रणाली है जिससे कुछ विशेष क्रियाओं का नियोजन और कार्यान्वयन किया जाता है। इस प्रकार की जाने वाली क्रियाओं में प्रत्येक क्रिया के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं। प्रत्येक क्रिया की अपनी विशिष्ट कार्य प्रणाली होती है तथा ये सब मिलकर निर्देशन की प्रक्रिया को पूर्णता प्रदान करते हैं। इन सभी क्रियाओं और प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक विधियों और शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से सम्पन्न किया जाता है। वर्तमान में निर्देशन सेवाओं के अन्तर्गत निम्नलिखित विशेष सेवाओं का समावेश किया गया है-
(1) परामर्श सेवा, (2) आरम्भिक तैयारी (उपक्रम) सेवा, (3) स्व-आगणन अथवा आत्म-सूचना तालिका सेवा, (4) वैयक्तिक आंकड़ों के संकलन सम्बन्धी सेवा, (5) सूचना सेवा, (6) रोजगार प्रतिस्थापन सेवा, (7) अनुगामी अथवा मूल्यांकन सेवाएं।
परामर्श निर्देशन प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। विली तथा एण्डू के अनुसार “यह पारस्परिक रूप से सीखने की एक प्रक्रिया है।” इसके अन्तर्गत व्यक्ति की व्यक्तिगत रूप से किसी समस्या के समाधान में सहायता प्रदान की जाती है। इस पर हम विस्तारपूर्वक पहले भी
अध्ययन कर चुके हैं।
आरम्भिक तैयारी अथवा उपक्रम सेवा के अन्तर्गत व्यक्ति को किसी व्यवसाय की ओर उन्मुख करने के लिए प्रारम्भिक तैयारियों में सहायता प्रदान की जाती है। यह वस्तुतः शिक्षा के व्यवसायीकरण से सम्बन्धित है। आत्म-तालिका सेवा व्यक्ति में आत्म-दर्शन अथवा अपनी वास्तविक क्षमताओं को पहचानने तथा उनका विकास करने में सहायक होती है। यह सहायता व्यक्ति को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में से अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चयन करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अन्य कार्यों में भी आत्म विश्वास जागृत करती है। इसके उद्देश्य हैं-स्वमूल्यांकन की क्षमता उत्पन्न करना, वस्तुनिष्ठ आधारों का विकास करना और प्रार्थी को अपने प्रति सूक्ष्म संवेदनशील बनाना। व्यक्तिगत आंकड़ों के संकलन सम्बन्धी सेवा से तात्पर्य है, व्यक्ति के सम्बन्ध में शैक्षिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, व्यावसायिक, संवेगात्मक तथा अन्य प्रकार की व्यक्तिगत सूचनाओं का संकलन करना। इस कार्य में कम्प्यूटर का प्रयोग करना पर्याप्त लाभदायक हो सकता है। सूचना सेवा का उपयोग विद्यालयों में प्रदान किये जाने वाले शैक्षिक निर्देशन में पाठ्यक्रम, शिक्षण, विधियों, खेल-कूद, व्यायाम, शैक्षिक अवसरों, अधिगम परिस्थितियों तथा सांस्कृतिक गतिविधियों सम्बन्धी सूचनायें प्रदान करने के लिए किया जाता है।
इसके अन्तर्गत विद्यालय के समस्त क्रिया-कलापों से सम्बन्धित सूचनाओं का समावेश किया जाता है। रोजगार प्रतिस्थापन सेवा एक प्रकार की व्यावसायिक सेवा है जो शिक्षा पूर्ण करने के बाद छात्रों को नौकरी, व्यवसाय या रोजगार के लिए उपयुक्त पदस्थापन में सहायता करती है। अनुगामी सेवा के अन्तर्गत निर्देशन, परामर्श अथवा किसी प्रकार की सेवा का पुनरावलोकन और मूल्यांकन, सम्मिलित किया जाता है। इसमें दिये गये निर्देशन का प्रत्येक दृष्टि से परीक्षण करने के उपरान्त यह जानने का प्रयत्न किया जाता है कि दिया गया समाधान किसी नयी समस्या को जन्म न दे सके और समस्या की पुनरावृत्ति न हो सके।
विद्यालय में निर्देशन सेवा संगठन के उत्तरदायी अंग-
सामान्यत: एक विद्यालय में निर्देशन सेवाओं का संगठन करने के बाद विद्यालय के समस्त विभाग, अध्यापक, कर्मचारी, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक आदि निर्देशन सेवाओं के आवश्यक अंग माने जा सकते हैं, किन्तु इनमें से कुछ की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। विद्यालय के ऐसे ही कुछ अंगों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. विद्यालय प्रबन्धक, 2. प्रधानाचार्य, 3. अध्यापक, 4. संगठन के निर्देशक, 5. परामर्शदाता (विशेषज्ञ), 6. कक्षा-अध्यापक, 7. स्वास्थ्य विशेषज्ञ, 8. परामर्श कक्ष, 9. शैक्षिक तकनीकी प्रयोगशाला, 10. खेल का मैदान, 11. पुस्तकालय, 12. मनोरंजन केन्द्र, 13. अभिभावक या माता-पिता।
इसे भी पढ़े ….
- निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के लिए सूचनाओं के प्रकार बताइए|
- वर्तमान भारत में निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- निर्देशन का क्षेत्र और आवश्यकता
- शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन का महत्व
- व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं?
- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए।
- वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
- व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता | Needs of Vocational Guidance in Education
- शैक्षिक निर्देशन के स्तर | Different Levels of Educational Guidance in Hindi
- शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता |
- शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार
- शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi
- शिक्षण प्रतिमान क्या है ? What is The Teaching Model in Hindi ?
- निरीक्षित अध्ययन विधि | Supervised Study Method in Hindi
- स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ
- समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि | Socialized Recitation Method in Hindi
- योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि | Project Method in Hindi
- व्याख्यान विधि अथवा भाषण विधि | Lecture Method of Teaching