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निर्देशन प्रोग्राम | निर्देशन कार्य-विधि या विद्यालय निर्देशन सेवा का संगठन

निर्देशन प्रोग्राम
निर्देशन प्रोग्राम

निर्देशन प्रोग्राम | निर्देशन कार्य-विधि या विद्यालय निर्देशन सेवा का संगठन

1. निर्देशन कार्य-विधि या संगठन, 2. और विद्यार्थी कर्मचारी कार्य।

मुख्य रूप से शिक्षा-संस्थाओं को तीन काम करने पड़ते हैं। ये है शिक्षण, प्रबन्ध और निर्देशन। शिक्षा की संस्थायें, केवल ज्ञान ही नहीं देती बल्कि ये विद्यार्थियों को जीवन की तैयारी का मौका भी देती है। स्कूलों में निर्देशन की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। जिन कठिनाइयों और समस्याओं को स्कूलों में विद्यार्थी अनुभव करता है तथा जो भी आन्तरिक और बाहरी बाधा विद्यार्थियों की प्रगति को प्रभावित करती है इन सबके पूर्णतः निराकरण के लिये विद्यालयों निर्देशन सेवा का आयोजन होना चाहिए।

व्यक्ति और उसकी शक्ति का सर्वांगीण और सर्वोत्तम ढंग से विकास करना ही शिक्षा का लक्ष्य होता है इसीलिए बिना निर्देशन सेवाओं की समुचित व्यवस्था कि इस लक्ष्य को नही पाया जा सकता है। कठिनाइयों के समय में व्यक्ति अपने विवेक से काम ले सके। अपने निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर सके ये सब समुचित निर्देशन सेवा द्वारा ही हो सकता है। अगर स्कूलों में निर्देशन कार्यक्रम को सफलता पूर्वक चलाना है तो ये जरूरी हो जाता है कि इसको व्यवस्थित और संगठित होना चाहिए। यह तो सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि व्यवसाय आर शिक्षा में निर्देशन का महत्व क्या है अगर हमारे देश में ये ठान लिया जाय कि हर विद्यार्थी को निर्देशन सेवा देनी है तो इसको व्यवस्थित रूप देना होगा और ये निर्देशन सहायता देना किसी
एक आदमी का काम नहीं है।

जोन्स कहते हैं- “स्कूलों के सामान्य जीवन से निर्देशन को अलग नहीं किया जा सकता है। और ना ही इसको स्कूलों के किसी एक विशेष भाग में केन्द्रित किया जा सकता है, न इसको प्राचार्य या परामर्शदाता के कार्यालय तक सीमित किया जा सकता है। इन सब का कारण है कि निर्देशन की सहायता प्रदान करना विद्यालय के हर अध्यापक का कर्तव्य और उत्तरदायित्व है। अतः इस काम में सबकी सहायता मिलनी चाहिए, और इसी तरह से इसको प्रशासित भी होना चाहिए।”

ये कथन जो ऊपर दिया गया इससे साफ हो जाता है कि निर्देशन कार्य-विधि का संगठन इस तरह से किया जाय कि स्कूल के सभी अध्यापकों का सहयोग मिल सके। अब इसकी सफलता और असफलता इसके कर्मचारियों पर निर्भर होती है। कार्य-विधि की सफलता उसमें लगे व्यक्तियों की स्वतः प्ररेणा, दूरदर्शिता, दक्षता पर निर्भर होती है।

निर्देशन सेवाओं के विषय में क्रो और क्रो ने भी अपने विचार दिये हैं जो इस प्रकार से है-

1. सभी सम्बन्धित व्यक्तियों का निर्देशन सेवा में सामूहिक सहयोग देना चाहिए। ये काम तभी सफल होगा जब, प्रधानाचार्य, अध्यापक और परामर्शदाता सब अपना समान रूप से सहयोग देंगे।

2. निर्देशन सेवाओं का दृढ़ संगठित रूप बनाना असम्भव है और यह मूर्खता पूर्ण कार्य भी होगा।

3. एक प्रभावशाली निर्देशन कार्यक्रम को लचीला होना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर उसमें बदलाव लाया जा सके।

व्यवस्थित कार्यक्रम के लाभ- एक अच्छी तरह से गठित और व्यवस्थित निर्देशन कार्यक्रम बहुत ही प्रभावशाली और मितव्ययी होता है। इस तरह के कार्यक्रम में सभी सम्बन्धित व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को नियम से पूरा करते हैं। “डाउनिंग’ ने संगठित कार्यक्रम के लाभों को इस प्रकार बताया है-

1. लक्ष्य को पाना आसान हो जाता है और काम सम्पन्न करना सरल हो जाता है।

2. शुद्धतापूर्वक विद्यार्थी की आवश्यकताओं का निर्धारण हो सकता है।

3. सफलता के लिय जो काम प्रतिबद्ध है वो कर्मचारियों और विद्यार्थियों को अभिप्रेरणा देता है और उनमें रुचि पैदा करता है।

4. जितनी भी क्रियायें हैं उन सब में प्रभावशाली सामंजस्य स्थापित हो सकता है।

5. विद्यार्थी ऐसे कार्यक्रमों के उद्देश्य और क्षेत्रों से परिचित होते हैं।

6. कम कर्मचारियों द्वारा, कम समय में ऐसे कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों को सहायता दी जा सकती है।

7. अगर व्यवस्था अच्छी होगी तो स्रोतों और साधनों का अपव्यय नहीं होगा और इन साधनों और सुविधाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सकेगा।

8. कार्यों और प्रयासों की पुनरावृत्ति से बचा सकता है।

9. अगर व्यवस्था संगठित है तो निर्देशन कर्मचारियों और अध्यापकों की सेवाओं का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है।

10. सभी कर्मचारियों के उत्तरदायित्वों को स्पष्ट किया जा सकता है।

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