लैंगिक असमानता
Sexual Difference
लैंगिक असमानता को लिंग के आधार पर किये गये भेदभाव के रूप में माना जाता है। जो लैंगिक भेदभाव बालक एवं बालिकाओं के साथ किया जाता है वह समाज एवं मानवीय सभ्यता के लिये घातक सिद्ध होता है। एक बालिका से जब यह कहा जाता है कि वह रात के समय घर से बाहर नहीं निकला करे। बालिका माँ से पूछती है कि ये आदेश आप भाई को क्यों नहीं देती हैं तो माँ का उत्तर होता है कि वह लड़का है तू लड़की है, इसलिये उसकी बराबरी नहीं कर सकती। इस प्रकार के सामान्य वार्तालाप बालक-बालिकाओं में परिवार से ही विभेद उत्पन्न करते हैं। बालक-बालिका का यह अन्तर इतना गहरा होता है कि इसे बाद में शिक्षा द्वारा समाप्त करने में कठिनाई होती है क्योंकि परिवार में प्राचीनकाल से वर्तमान समय तक लिंग भेद की स्थिति देखी जाती रही है। बालिका एवं बालक जब परिवार से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पदार्पण करते हैं तो उसको भेदभाव की दृष्टि से देखा जाता है। एक बालिका जीन्स टॉप पहनकर सड़क पर निकलती है तो उसके लिये समाज में अँगुलियाँ उठती हैं। बालक के लिये कोई कुछ नहीं कहता। एक बालिका बाइक चलाती है तो समाज में उसे अच्छा नहीं माना जाता पर बालक के लिये ऐसा नहीं है। जब एक बालिका पुलिस एवं सेना में नौकरी करती है तो उसके लिये यह अच्छा नहीं है परन्तु एक बालक के लिये अच्छा है। इस प्रकार की अनेक विसंगतियाँ समाज में पायी जाती हैं जो कि लैंगिक विभेद उत्पन्न करती हैं। इसका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है जो सभी समाज के विकास की प्रमुख बाधाएँ होती हैं-
1. वयस्क स्थिति में भेदभाव (Inequality in adult situation)- बालक जब वयस्क होता है तो समाज में कहा जाता है कि उसका लड़का युवा हो गया है अब उसको चिन्ता करने की कोई बात नहीं है जबकि बालिका वयस्क होती है तो अभिभावक एवं समाज दोनों ही चिन्तित होते हैं। अभिभावक इसलिये चिन्तित होता है कि उसे विवाह के लिये धन एकत्रित करना है तथा अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना है। समाज के व्यक्ति भी अभिभावक पर विवाह के लिये दबाव बनाते हैं। इस प्रकार बालक एवं बालिका के वयस्क होने पर समाज में भेदभाव किया जाता है।
2. विवाह सम्बन्धी परम्परा में भेदभाव (Inequality in marriage related tradition)- विवाह सम्बन्धी परम्पराओं में भेदभाव की स्थिति देखी जाती है। एक वयस्क व्यक्ति का विवाह होता है तो कन्या पक्ष से उसे विवाह के समय धन की प्राप्ति होती है तथा विविध प्रकार का सामान दिया जाता है। कन्या को भी यह समझाया जाता है कि इनकी आज्ञा का पालन करना उसका धर्म है। कन्या पक्ष द्वारा सदैव वर पक्ष की अधीनता को स्वीकार किया जाता है। इससे कन्या के मन में अपराध बोध की स्थिति होती है कि आज उसके माता-पिता को उसके कन्या होने के कारण ही झुकना पड़ रहा है।
3. पति-पत्नी के उत्तरदायित्वों में भेदभाव (Inequality in responsibilities of husband-wife)- पति-पत्नी के मध्य उत्तरदायित्वों की दृष्टि से भी सामाजिक जीवन में व्यापक अन्तरदेखा जाता है। पति द्वारा मात्र धन कमाने का कार्य सम्पन्न किया जाता है। इसके बाद जितने भी उत्तरदायित्व होते हैं वह सभी पत्नी के लिये होते हैं। पत्नी यदि रोजगार में है तो भी उन उत्तरदायित्वों में कोई कमी नहीं की जाती। घर परिवार के प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखना स्त्री का ही दायित्व होता है। रसोईघर से लेकर सभी आवश्यक कार्यों का दायित्व स्त्री को दे दिया जाता है। इससे उसके विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है वह गृहस्थ के कार्यों में उलझकर रह जाती है।
4. स्त्री-पुरुष अधिकारों में भेदभाव (Inequality in rights of male and female)- स्त्री-पुरुष के मध्य अधिकारों में भी भेदभाव पाया जाता है। भारतीय समाज की चर्चा करें तो विवाह के समय बालिका को यह बताया जाता है कि उसको अपने पति एवं पति के परिवारीजनों की सेवा करनी है क्योंकि वे हमारे तथा तुम्हारे लिये पूज्य हैं। इस तथ्य से कन्या के सभी अधिकारों को उसके परिवार वाले ही समाप्त कर देते हैं। इसके बाद पति के अहम् एवं सास-श्वसुर में.अहम् के द्वारा स्त्री के अधिकारों का पूर्णतः उन्मूलन कर दिया जाता है। इस प्रकार स्त्री के पास किसी न किसी रूप में अधिकारों का अभाव बना रहता है तथा पुरुष पर अधिकारों की पर्याप्तता देखी जाती है।
5. निर्णयन प्रक्रिया में भेदभाव (Inequality in decision making process)- निर्णयन की प्रक्रिया में पुरुष वर्ग द्वारा अपनी स्त्री से कोई सलाह नहीं ली जाती तथा स्वयं स्त्री भी इस तथ्य को स्वीकार करती है कि उसका बाहरी या सामाजिक निर्णयों में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये। यदि कोई जागरूक स्त्री निर्णयन प्रक्रिया में अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहती है तो उसके इस आचरण को समाज द्वारा अमर्यादित घोषित कर दिया जाता है जिससे कोई दूसरी स्त्री इस प्रकार का आचरण न कर सके। इस प्रकार निर्णय लेने के अधिकार से स्त्रियों को समाज से वंचित कर दिया जाता है।
6. सहभागिता सम्बन्धी भेदभाव (Participation related inequality)- स्त्री-पुरुष सहभागिता के क्षेत्र में पुरुष वर्ग अपने सहयोग के लिये स्त्री की सहभागिता चाहता है परन्तु स्त्री के लिये सहभागी बनने के लिये तैयार नहीं होता; जैसे-एक पुरुष धन कमाने में स्त्री से अपेक्षा करता है कि वह नौकरी करके उसकी सहभागी बने परन्तु यदि स्त्री उस पति से अपने रसोई सम्बन्धी कार्य या घर की स्वच्छता सम्बन्धी कार्य में सहयोग चाहती है तो वह इस कार्य में सहयोग नहीं करता क्योंकि समाज में उसका परिहास होगा। इस प्रकार की अनेक भेदभाव सम्बन्धी गतिविधियाँ देखी जा सकती हैं।
7. व्यवसाय सम्बन्धी भेदभाव (Vocation related inequality)- समाज में प्रथम अवस्था में स्त्री के किसी भी रोजगार को स्वीकार नहीं किया जाता। विशेष परिस्थितियों तथा समाज की माँग के परिणामस्वरूप यदि कोई स्त्री रोजगार करना चाहती है तो उसके लिये रोजगार में भी भेदभाव किया जाता है। स्त्रियों के लिये सिलाई, बढ़ाई, शिक्षण एवं बैंकिंग आदि व्यवसायों को अच्छा माना जाता है वहीं पुरुषों को सभी प्रकार के व्यवसायों को अपनाने की स्वतन्त्रता होती है। इस प्रकार समाज में व्यवसाय के चयन में भी भेदभाव की स्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं।
8. शिक्षा सम्बन्धी भेदभाव (Education related inequality)- शिक्षा सम्बन्धी भेद भाव की स्थिति व्यापक रूप से भारतीय समाज में देखी जाती है। समाज में बालकों को उच्च शिक्षा के लिये घर से बाहर जाने की अनुमति होती है,छात्रावासों में रहने की अनुमति होती लिये घर से बाहर रहने की अनुमति नहीं दी जाती। इससे बालिकाओं की उच्च शिक्षा की है तथा विदेशों में अध्ययन करने की अनुमति होती है जबकि बालिकाओं को उच्च शिक्षा के स्थिति पुरुषों की उच्च शिक्षा की स्थिति से सदैव निम्न बनी रहती है। शिक्षा के लिये स्त्रियों को सदैव हतोत्साहित किया जाता हैं।
9. कार्य क्षेत्र सम्बन्धी भेदभाव (Working field related inequality) – समाज में स्त्री-पुरुष के मध्य कार्य सम्बन्धी भेदभाव देखे जाते हैं। प्रथम बालिकाओं के कार्य क्षेत्र को घर के अन्दर तक सीमित रखा जाता है। बालकों के कार्य क्षेत्र को बाहर के लिये सुरक्षित रखा जाता है। झाडू लगाना, भोजन तैयार करना एवं घर की स्वच्छता आदि कार्यों को स्त्री का कार्य माना जाता है। इसलिये कोई भी पुरुष इन कार्यों को नहीं करता। यदि करता है तो समाज में उसका परिहास किया जाता है। इस प्रकार कार्य एवं कार्य क्षेत्र का व्यापक विभेद देखा जाता है।
10. आर्थिक क्षेत्र में भेदभाव (Inequality in economic field)- सामान्यतः परिवारों में आर्थिक तन्त्र पर पुरुषों का अधिकार देखा जाता है। एक परिवार में स्त्री एवं पुरुष दोनों कमाते हैं तो भी पुरुष द्वारा स्त्री के धन पर अपना अधिकार कर लिया जाता है। यदि स्त्री नहीं कमाती है तो उसको कोई भी आर्थिक अधिकार नहीं दिये जाते। दोनों ही स्थितियों में स्त्री को आर्थिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। इससे स्त्री सदैव पुरुष की अधीनता में बनी रहती है।
11. सांस्कृतिक क्षेत्र सम्बन्धी भेदभाव (Cultural field related inequality)- सांस्कृतिक गतिविधियों में भी पुरुष की प्रधानता तथा स्त्री एवं पुरुष के भेदभाव को दिखाया जाता है। लोकनृत्य की परम्परा में नृत्य को स्त्रियों का कार्य माना जाता है। इसके साथ-साथ विभिन्न नाटकों एवं कथाओं में स्त्री को पुरुष की अधीनता में दिखाया जाता है। राजा हरिश्चन्द्र के नाटक में पति की परम्परा के निर्वहन में तारा को कष्ट उठाना पड़ा। इसी प्रकार की अनेक कथाओं एवं कार्यक्रमों में पुरुष को उच्च श्रेणी में तथा स्त्री को निम्न श्रेणी में दिखाया जाता है।
12. सोच सम्बन्धी भेदभाव (Thinking related inequality)- समाज में प्रायः स्त्री एवं पुरुष के मध्य विविध क्षेत्रों में सोच सम्बन्धी भेदभाव देखा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों की योग्यता एवं क्षमता का कम आकलन किया जाता है तथा पुरुष वर्ग की योग्यता एवं क्षमता का अधिक आकलन किया जाता है। आज भी पिछड़े क्षेत्रों में पुरुष को मजदूरी के रूप में अधिक तथा स्त्रियों को कम धन दिया जाता है। इसी प्रकार पुरुषों को अधिक शक्तिशाली तथा स्त्रियों को कम शक्तिशाली समझा जाता है। इस प्रकार की सोच अनेक क्षेत्रों में पायी जाती है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक व्यवस्था भी स्त्री-पुरुष के भेदभाव से परिपूर्ण है क्योंकि जब परिवार में ही लिंगभेद का बीज बो दिया जाता है तो वह समाज में वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। पुरुष वर्ग अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु विविध प्रकार के षड़यन्त्र करके अपनी वर्चस्वता को बनाये रखने के लिये स्त्री को अधीन रखने का प्रयास करता है।
Important Links
- भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ तथा परिभाषा | Meaning & Definition of Globlisation
- वैश्वीकरण के लाभ | Merits of Globlisation
- वैश्वीकरण की आवश्यकता क्यों हुई?
- जनसंचार माध्यमों की बढ़ती भूमिका एवं समाज पर प्रभाव | Role of Communication Means
- सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय | Measures to Changing of Social Concern
- जनसंचार के माध्यम | Media of Mass Communication
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की आवश्यकता एवं महत्त्व |Communal Rapport and Equanimity
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ | Obstacles in Communal Rapport and Equanimity
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School-Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi
- वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव | Effects of Environment on school performance – in Hindi
- विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi
- प्रबन्धतन्त्र का अर्थ, कार्य तथा इसके उत्तरदायित्व | Meaning, work & responsibility of management