भारतीय अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalance in Indian Economy)
भारतीय अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असन्तुलन- जिस प्रकार से देश के विभिन्न प्रान्तों का विकास समान रूप से नहीं हो पाया है। ठीक उसी प्रकार कुछ क्षेत्रों की प्रगति सन्तोषजनक रही तो कुछ क्षेत्र अभी भी अत्यन्त पिछड़ी हुई दशा में देखे जा सकते हैं। अतएवं भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रीय असन्तुलन को निम्नलिखित तथ्यों एवं आँकड़ों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) प्रतिव्यक्ति आय
भारत के सभी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय समान नहीं है। पंजाब में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक 5,477 रू० है तथा इसके बाद महाराष्ट्र की 4,490 रू०, गुजरात की 3,636 रू०, बंगाल की 3,208 रू० प्रति व्यक्ति आय है। अन्य क्षेत्रों की प्रति व्यक्ति आय इनसे भी कम है। वर्ष 2011 में देश में औसत प्रति व्यक्ति निम्न आय चालू दर पर लगभग 5000 रू० प्रति व्यक्ति है।
इसे भी पढ़े…
(2) कृषि
भारत एक कृषि प्रधान देश है फिर भी इसके सभी प्रान्तों में कृषि का विकास एक जैसा नहीं हुआ है। कृषि क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सा अन्य प्रान्तों से काफी आगे हैं। जबकि अन्य क्षेत्रों में कृषि उत्पादन काफी कम है।
(3) उद्योग
भारत में विभिन्न प्रान्तों में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास में भारी असमानतायें पायी जाती है। जहाँ एक ओर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक प्रमुख रूप से औद्योगिक राज्य हैं वहीं अन्य प्रदेशों में उद्योगों की कमी है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार उद्योगों में लगी कुल श्रम शक्ति का लगभग 66 प्रतिशत इन्हीं राज्यों का योगदान रहा तथा औद्योगिक उत्पादन वृद्धि में इन राज्यों का योगदान लगभग 80.6 प्रतिशत रहा शेष राज्य औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं।
इसे भी पढ़े…
(4) गरीबी
देश के विभिन्न प्रान्तों में गरीबी की स्थिति में भी असन्तुलन पाया जाता है। इकनॉमिक टाइम्स द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के नौ राज्यों-उड़ीसा, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, बिहार, पं. बंगाल, तमिलनाडु, असम, उत्तर प्रदेश की लगभग 48 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। जबकि देश का सबसे समृद्ध राज्य पंजाब जिसमें केवल 15.5 प्रतिशत लोग ही गरीबी रेखा के नीचे है।
(5) साक्षरता
भारत में साक्षरता की दृष्टि से क्षेत्रीय असन्तुलन है। केरल राज्य में साक्षरता का प्रतिशत 95 प्रतिशत है जबकि सबसे कम प्रतिशत 40 बिहार का है।
इसे भी पढ़े…
(6) जनसंख्या घनत्व
भारत की जनसंख्या घनत्व 627 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। परन्तु इस दृष्टि से प्रत्येक प्रान्त में असन्तुलन की स्थिति है। दिल्ली में घनत्व 6319 है जबकि अरुणांचल प्रदेश में यह सबसे कम 10 व्यक्ति का है।
निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि भारतवर्ष में प्रत्येक स्तर का क्षेत्रीय असन्तुलन व्याप्त है।
भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण (Causes of Regional Imbalance in India)
(1) प्राकृतिक साधनों का असमान वितरण
हमारे देश में क्षेत्रीय असन्तुलन का एक प्रमुख कारण प्राकृतिक साधनों का असमान वितरण है। प्राकृति संसाधन किसी क्षेत्र में बहुत अधिक पाये जाते हैं तो किसी क्षेत्र में बहुत कम। जिन क्षेत्रों में साधन की अधिकता है उनका विकास अधिक तथा जहाँ साधनों की कमी है उनका विकास कम हुआ।
(2) आर्थिक शक्तियाँ
जिन क्षेत्रों में आर्थिक स्थिति पहले से ठीक थी उन्होंने अधिक विकास किया और जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी उनका विकास नहीं हो सका।
(3) जलवायु
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु पायी जाती है। जलवायु की भिन्नता के कारण भी क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हुआ। जिन क्षेत्रों में उद्योगों के अनुकूल जलवायु थी वहाँ विकास अधिक हुआ और जहाँ की जलवायु प्रतिकूल थी विकास नहीं हुआ।
(4) सामाजिक घटक
विभिन्न क्षेत्रों में भारत का सामाजिक परिवेश अलग-अलग है। जिन क्षेत्रों में जनता सुनिश्चित, कर्मठ और मेंहनती है उन क्षेत्रों का अधिक विकास हुआ इसके विपरीत जहाँ की जनता अंधविश्वासी है, रूढ़िवादी तथा भाग्यवादी है वहाँ का विकास कम हुआ।
(5) राजनैतिक जागृति
वर्तमान युग में जिस क्षेत्र की जनता में राजनैतिक जागरूकता है उस क्षेत्र के लोग विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाकर अपने क्षेत्र का विकास कर सकते हैं परन्तु जहाँ के नागरिक जागरूक नहीं है उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं प्राप्त होता हैं।
(6) सरकारों पर पक्षपातपूर्ण रवैया
क्षेत्रीय असन्तुलन के लिए केन्द्रीय सरकारों का पक्षपातपूर्ण रवैया भी काफी हद तक कारण रहा है। केन्द्र में जिस क्षेत्र का अधिक प्रतिनिधित्व होता है। उस क्षेत्र का विकास अधिक और जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कम होता है उस क्षेत्र का विकास कम होता है।
इसे भी पढ़े…
क्षेत्रीय असन्तुलन का प्रभाव (Effect)
(1) साधनों का दुरूपयोग
क्षेत्रीय असन्तुलन का कारण जिन खण्डों में विकास हुआ वहाँ के साधनों का तो सदुपयोग हुआ परन्तु अन्य खण्डों के साधनों का दुरूपयोग हुआ।
(2) क्षेत्रीय संघर्ष
विकसित तथा अविकसित क्षेत्रों के लोगों के मध्य मानसिक स्तर पर टकराव होते रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी क्षेत्रीय संघर्ष भी हो जाता है।
(3) अलगांव की प्रवृति
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलगाव के की स्थिति पैदा हुई, पंजाब इसका जीता जागता उदाहरण है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल का अलगाव क्षेत्रीय असन्तुलन के चलते हुआ। इसके विपरीत वेडोलैण्ड, गोरखालैण्ड आदि की मांग आर्थिक अवहेलना के कारण हो रही है।
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के उपाय (Measures to Resolve Regional Imbalance)
(1) पिछड़े राज्यों को अधिक अनुदान व सहायता
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह पिछड़े राज्यों को अधिक अनुदान व सहायता दें, जिससे अपना विकास कर सकें।
(2) सार्वजनिक क्षेत्र का विकास
सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रों का विकास करना चाहिए।
(3) विशेष कार्यक्रम
सरकार को पिछड़े राज्यों हेतु विशेष कार्यक्रम लागू करने चाहिए।
(4) अधः सरंचना का विकास
केन्द्र सरकार को पिछड़े क्षेत्रों में अधः संरचना का विकास करना चाहिए।
(5) विशेष सुविधाएँ व रियायतें
सरकार को पिछड़े हुए क्षेत्रों के लिए विशेष सुविधाएँ व रियायतें प्रदान करनी चाहिए।
इसे भी पढ़े…
- भुगतान सन्तुलन | व्यापार सन्तुलन और भुगतान सन्तुलन में अन्तर | Balance of Payment in Hindi
- सार्वजनिक क्षेत्र या सार्वजनिक उपक्रम अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्त्व
- सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) के उद्योगों से आशय | क्या सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण कर दिया जाना चाहिए?
- उद्योग का अर्थ | पूँजी बाजार के प्रमुख उद्योग | Meaning of Industry in Hindi
- भारत की राष्ट्रीय आय के कम होने के कारण | भारत में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के सुझाव
Important Links
- बचत के स्रोत | घरेलू बचतों के स्रोत का विश्लेषण | पूँजी निर्माण के मुख्य स्रोत
- आर्थिक विकास का अर्थ | आर्थिक विकास की परिभाषा | आर्थिक विकास की विशेषताएँ
- आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर | Economic Growth and Economic Development in Hindi
- विकास के प्रमुख सिद्धांत-Principles of Development in Hindi
- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व
- अभिवृद्धि और विकास का अर्थ
- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति
- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व
- श्रवण बाधित बालक का अर्थ तथा परिभाषा
- श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ Characteristics at Hearing Impairment Children in Hindi
- श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय
- दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- दृष्टि बाधित बालक किसे कहते हैं? परिभाषा Visually Impaired Children in Hindi
- दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ (Characteristics of Visually Handicap Children)
- विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।
- समस्यात्मक बालक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण एवं शिक्षा व्यवस्था
- विशिष्ट बालक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
- मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
- बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
- वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
- अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
- एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
- ओशों के शिक्षा सम्बन्धी विचार | Educational Views of Osho in Hindi
- जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of J. Krishnamurti
- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism
- प्रयोजनवाद का अर्थ, परिभाषा, रूप, सिद्धान्त, उद्देश्य, शिक्षण विधि एंव पाठ्यक्रम
- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है?
- प्रकृतिवाद का अर्थ एंव परिभाषा | प्रकृतिवाद के रूप | प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त