संयुक्त राज्य की राजनीतिक भौगोलिक शक्ति स्पष्ट कीजिए।
संयुक्त राज्य की राजनीतिक-भौगोलिक शक्ति
संयुक्त राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों से स्पष्ट होता हैं कि यहाँ की राजनीतिक शक्ति के विकास में उनका अत्यधिक योग है। अपने क्षेत्रीय संगठन को बनाये रखने में संयुक्त राज्य पूर्ण समर्थ देश है। यद्यपि प्राकृतिक या धरातलीय अवरोध कारण राष्ट्रीय एकता में बाधा पहुँचती है किन्तु परिवहन के साधनों के अधिकाधिक विकास ने इस समस्या को समाप्त कर दिया है। यहाँ की स्थिति, आकार, विस्तार, आदि ने राष्ट्रीय शक्ति के विकास में योग दिया है। इसकी स्थिति एक ओर उत्तरी गोलार्ध में मध्यवर्ती है, दूसरी ओर महासागरों से पृथकता लिये हुये है, साथ ही सामुद्रिक व्यापार की सुविधा है। स्थिति के ही कारण यहाँ की भूमि पर युद्ध का प्रभाव नहीं पड़ा। यद्यपि वर्तमान समय में इसकी स्थिति एक ओर उत्तरी गोलार्ध में, मध्यवर्ती है, दूसरी ओर महारसागरों से पृथकता लिये हुये है, साथ ही सामुद्रिक व्यापार की सुविधा है। स्थिति के ही कारण यहाँ की भूमि पर युद्ध का प्रभाव नहीं पड़ा। यद्यपि वर्तमान समय में इसकी स्थिति को पूर्ण सुरक्षित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वर्तमान काल में विकसित जल शक्ति एवं विशेषकर वायु शक्ति के अत्यधिक विकास के कारण किसी भी क्षेत्र को सुरक्षित नहीं समझा जा सकता, किन्तु इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि स्वयं संयुक्त राज्य वायु शक्ति की दृष्टि से शक्तिशाली देश है तथा किसी भी बाहरी आक्रमण के प्रतिरोध की पूर्ण क्षमता रखता है। इसकी विशाल सामुद्रिक तअ रेखा के कारण जल सेना को अधिक रखना होता है। पनामा नहर पूर्वी और पश्चिमी तटों के मध्य प्रमुख मार्ग होने के कारण संयुक्त राज्य के लिये सामरिक महत्व रखती हैं।
प्राकृतिक सुविधाओं के अतिरिक्त जैसा कि पूर्व विवेचन से स्पष्ट होता है, यहाँ के आर्थिक संसाधनों ने इसकी शक्तिशाली स्वरूप प्रदान किया है। संयुक्त राज्य के लिये यह कहना अतिशयोध्कत नहीं होगा कि यहाँ के आर्थिक साधनों ने ही इसको अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति के रूप में विकसित किया हैं। इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य का राजनीतिक प्रशासन भी एकता को बनाये रखने में समर्थ है। अनेक बार आन्तरिक विघटन की दशा उत्पन्न हुई। यहाँ तक कि गृह युद्ध (Civil Wars) भी हो गया, किन्तु आज तक संविधान समस्त गतिरोध को दूर करता रहा है। यहाँ की विकसित एवं स्थायी आर्थिक व्यवस्था, संगठित प्रशासन, तकनीकी विकास, सैनिक उच्चता, आदि ने विश्व शक्ति के रूप में संयुक्त राज्य को विकसित किया है।
किन्तु वर्तमान काल में मात्र राष्ट्रीय संगठन ही पर्याप्त नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय प्रारूप में देश की महत्ता विश्व शक्ति के रूप में आवश्यक है। इस दृष्टि संयुक्त राज्य का सर्वाधिक से महत्वपूर्ण स्थान है। संयुक्त राज्य ने एक सम्पन्न राष्ट्र होने के कारण विश्व में अपना प्रभाव क्षेत्र विस्तार करने के लिये तथा साम्यवादी प्रसार को सीमित करने के लिये आर्थिक एवं तकनीकी सहायता के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप विकसित किया। संयुक्त राज्य ने विदेशी सहायता हेतु 1961 में विदेशी सहायता अधिनियम (The Foreign Assistance Act of 1961) स्वीकृत किया जिसका उद्देश्य विदेशों को उनकी प्रार्थना पर सहायता प्रदान करना था जिसका उपयोग सृजनात्मक कार्यों में किया जा सके। इस प्रकार की सहायता द्वारा संयुक्त राज्य अप्रत्यक्ष रूप से अपने प्रभाव क्षेत्र की स्थापना करता है। साथ ही तकनीकी, वैज्ञानिक तथा सैनिक सहायता भी संयुक्त राज्य की नीति है।
संयुक्त राज्य की नीति सदैव से समान नहीं रही अपितु परिवतर्तित परिस्थितियों के साथ इसमें परिवर्तन आया है। अनेक रूपों में यहाँ की क्षेत्रीय एवं विदेश नीति को प्राकृतिक तथा आर्थिक दशाओं द्वारा नियन्त्रित कहा जा सकता है। प्रारम्भ में संयुक्त राज्य की नीति पार्थक्य की रही हैं, क्योंकि यूरोप से दूर स्थित होने के कारण केवल व्यापारिक सम्बन्धों पर बल दिया गया।. इस काल में राजनीतिक दृष्टि से संयुक्त राज्य दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था। 1823 में मुनरों सिद्धान्त (Munroe Doctrine) यहाँ की नीति का आधार बना, जिसके द्वारा यूरोपीय युद्धों से अलग रहने तथा संयुक्त राज्य पर विदेशी साम्राज्य की स्थापना न होने देने पर जोर दिया गया। यह नीति प्रथम महायुद्ध के समय तक चलती रहीं यप्रीम महायुद्ध में भी इनका प्रयास यथा सम्भव दूर रहने का रहा, किन्तु जर्मनी के सामुद्रिक आक्रमणों की वृद्धि के कारण भिन्न राष्ट्रों की ओर से युद्ध में भाग लिया क्योंकि ये राष्ट्र अमेरिका के लिये प्रमुख बाजार थें
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य ने विश्व की राजनीति में खुलकर भाग लेना प्रारम्भ किया। साम्यवादी प्रभाव के कारण विश्व में दो प्रमुख गुटों का निर्माण हुआ जिसमें गैर साम्यवादी गुअ का नेतृत्व संयुक्त राज्य के हाथ में आया। इस समय तक साम्राज्यवादी शक्तियों का विघटन प्रारम्भ हो गया था तथा एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के देश एक के पश्चात् एक स्वतन्त्र होते जा रहे थे अतः यह संयुक्त राज्य के लिये अपना प्रभाव क्षेत्र विस्तार का सुनहरा अवसर था साथ ही युद्ध के तकनीकी स्तर में पूर्ण परिवर्तन आ गया।
यूरोपीय राजनीति में भी संयुक्त राज्य पर्याप्त रूचि लेता रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् पश्चिमी यूरोप पर समावित सोवियत आक्रमण या विस्तार से रक्षा के लिये उत्तरी अटलाण्टिक संयुक्त संघ’ की स्थापना की गई जिसमें संयुक्त राज्य और कनाडा के साथ यूरोप के तेरह देश अर्थात् बेल्जियम, डेन्मार्क, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, आइसलैण्ड, ग्रीस, इटली, नार्वे, लक्जेमबर्ग, नीदरलैण्ड, पुर्तगाल टर्की एवं पश्चिमी जर्मनी सम्मिलित हुए। इसी के साथ संयुक्त राज्य ने अंटलांटिक क्षेत्र में सैनिक अड्डों का निर्माण मोरक्को, ग्रीनलैण्ड, कनाडा, केरीबियन द्वीपों पर किया। इसके अतिरिक्त अन्य देशों में जेसे जापान, फिलिपीन्स, पाकिस्तान, कोरिया, लिबिया, स्पेन, आदि में सैनिक अड्डों की स्थापना की।
विगत वर्षों से आर्थात् 1971 के पश्चात् संयुक्त राज्य की नीति में परिवर्तन दृष्टिगोचर हुआ है। इससे पूर्व यह साम्यवादी देशों का कट्टर शत्रु रहा है। अब यहाँ के सर्वोच्च पदाधिकारी चीन एवं सोवियत रूस की यात्रायें कर रहे हैं। यही नहीं, अपितु चीन के संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश होने से संयुक्त राज्य का योग उसकी परिवर्तित नीति का द्योतक है। इसी नीति के परिणामस्वरूप वयतनाम युद्ध समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। इससे स्पष्ट है कि संयुक्त राज्य अब साम्यवादी देशों के साथ सम्बन्ध अच्छे करना चाहता हैं वर्तमान में सोवियत रूस तथा पूर्वी यूरोप से साम्यवाद लगभग समाप्त हो गया है।
पश्चिमी एशिया तथा हिन्दी महासागर क्षेत्र में संयुक्त राज्य विशेष रूचि ले रहा है क्योंकि ये क्षेत्र सोवियत संघ के निकट है। हिन्द महासागर में डिएगोगार्सिया में सैनिक अड्डा इसी उद्देश्य से स्थापित किया गया। इजरायल को अमेरिका निरन्तर सैनिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है। यह उसकी पश्चिमी एशिया में उपस्थिति दर्ज करता है। इसी प्रकार अमेरिका पाकिस्तान की राजनीति में भी अत्यधिक रूचि रखता है। वर्तमान परिस्थितियों में अमेरिका का विश्व राजनीति में वर्चस्व बना हुआ है।
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