भूगोल / Geography

आर्थिक प्रदेशों के आधार एवं विशेषताएँ | Basis and Characteristics of Economic Regions in Hindi

आर्थिक प्रदेशों के आधार एवं विशेषताएँ | Basis and Characteristics of Economic Regions in Hindi
आर्थिक प्रदेशों के आधार एवं विशेषताएँ | Basis and Characteristics of Economic Regions in Hindi

आर्थिक प्रदेशों के आधार एवं विशेषताओं पर एक निबन्ध लिखिए।

आर्थिक प्रदेश

आर्थिक प्रदेशों की संकल्पना आर्थिक भूदृश्यों की समरूपता सम्बद्ध है। एक अर्थिक प्रदेश वह क्षेत्र है जहाँ सामान्य आर्थिक भूदृश्य की समरूपता उस प्रदेश के भौगालिक तत्वों की विशेषता को प्रदर्शित करती हो । आर्थिक प्रदेशों का सीमांकन आर्थिक भूदृश्यों के तत्वों के आधार पर किया जाता है जिनमें (i). संसाधन आधार, (ii) संसाधन उपयोग की प्राविधिकी, (iii) आर्थिक विकास के लिये अवसंरचना की उपलब्धता, (iv). आर्थिक विकास की अवस्था तथा (v). आर्थिक तन्त्र का स्वरूप ती सामान्य आर्थिक कल्याण की दशाएँ सम्मिलित हैं।

1. संसाधन आधार- किसी प्रदेश का आर्थिक विकास मूलतः विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों पर निर्भर करता है। मिट्टियों, प्राकृतिक वनस्पति, जल, खनिज तथा मानव संसाधनों की वर्तमान मात्रा गुणवत्ता एवं इनका विभव (Potential) आर्थिक भूदृश्य के स्वरूप को निर्धारित करते हैं। उदाहरणार्थ, उर्वर मिट्टियों वाले किन्तु खनिज विहीन प्रदेश एक कृषि प्रधान आर्थिक प्रदेश के रूप में विकसित होगां इसके विपरीत अनुर्वर मिट्टियों किन्तु प्रचुर खनिज संसाधनों वाला प्रदेश के रूप में विकसित होगा। इसके विपरीत अनुर्वर मिट्टियों किन्तु प्रचुर खनिज संसाधनों वाला प्रदेश औद्योगिक प्रदेश के रूप में विकसित होगा। विभव संसाधनों से युक्त प्रदेश भविष्य में आर्थिक रूप से विकसित होने संभावना रखता है। आर्थिक भूदृश्य रहते हैं, उनकी सीमाएँ निश्चित नहीं होती। आर्थित प्रदेशों के सीमांकन में प्रदेश के संसाधनों का समेकित मूल्यांकन करना अत्यावश्यक है। जापान संसाधन आधार के निर्धन होते हुए भी आर्थिक रूप से उन्नत देश होने का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है।

2. संसाधन उपयोग की प्राविधिकी- आर्थिक भूदृश्य संसाधनों की प्राप्यता की अपेक्षा उनके उपयोग में प्रयुक्त प्राविधकी (technology) से अधिक प्रभावित होते हैं। आर्थिक विकास के लोगों की कुशलता तथा भागीदारी, उनकी तीव्र इच्छा शक्ति तथा लगन प्रदेश के आर्थिक विकास के लिये उत्तरदायी होते हैं। नवाचार (innovations) प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तन तथा उत्साह आर्थिक विकास की गति को त्वरित करते हैं।

3. अवसंरचना- आर्थिक भूदृश्य का स्वरूप तथा संसाधन उपयोग अवसंरचना ( infrastructure ) की प्राप्यता पर भी निर्भर करते हैं। पूँजी, श्रम, प्राविधिक ज्ञान, शिक्षा, परिवहन तथा संचार के साधन, ऊर्जा के स्रोत, सिंचाई के साधन आदि आर्थिक विकास के आधारभूत कारक हैं। धनी देश सामान्यतः इन अवसंरचनात्मक कारकों से सम्पन्न होते हैं

4. आर्थिक विकास की अवस्था- किसी प्रदेश का आर्थिक भूदृश्य उसके आर्थिक विकास को सूचित करता है। रोस्तोव के अनुसार औद्योगीकरण तथा आर्थिक विकास की अनेक अवस्थाएँ होती हैं। कोई भी आधुनिक देश आर्थिक विकास की इन अवस्थाओं से होकर गुजरता है। प्रत्येक अवस्था की एक निश्चित संरचना, प्राविधिक विकास तथा सम्बन्धित समस्याएँ होती है।

5. आर्थिक तन्त्र- किसी देश के आर्थिक तन्त्र का स्वरूप उसके आर्थिक विकास की अवस्था द्वारा निश्चित होता है। कुछ देशों में प्राथमिक व्यवसाय (कृषि आदि) अधिक विकसित होते हैं, तो अन्य देशों में विनिर्माणी तथा तृतीयक क्रियाएँ प्रधान होती है। आर्थिक भूमध्य किसी क्षेत्र में प्रचलित अर्थतन्त्र के अनुसार किसित होते हैं। किसी देश या प्रदेश के आर्थिक तन्त्र का निर्धारण वहाँ प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक उत्पादन के संलग्न जनसंख्या द्वारा होता है। किन्तु किसी भी देश के विभिन्न भागों में कई प्रकार के आर्थिक तन्त्र मिल सकते हैं। अतः आर्थिक तन्त्र के स्वरूपक निर्धारण करना सरल नहीं है।

प्रादेशीकरण

किसी देश का प्रादेशीकरण सैद्धान्तिक तथा प्रशासनिक रूप से एक बड़ी समस्या है। क्षेत्रवाद की भावना विश्वव्यापी है। सभी प्रदेश राष्ट्रीय बजट के वितरण तथा आर्थिक क्रियाओं के स्थानीयकरण में अधिकाधिक हिस्सा चाहते है। साथ ही ऐतिहासिक, औपनिवशिक, शोषणात्मक, भौगोलिक या अन्य कारणों से प्रत्येक देश में कई क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा पिछड़े प्राकृतिक तथा मानव संसाधनों के राष्ट्रीय, प्रादेशिक या क्षेत्रीय स्तर पर विकास के लिये उचित प्रादेशीकरण करना आवश्यक होता है।

रूसी विद्वानों ने आर्थिक प्रादेशीकरण की तकनीकें विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भावना विश्वव्यापी है। सभी प्रदेश राष्ट्रीय बजट तथा कोलोसोव्सकी (N.N. Koklosovsky) द्वारा कल्पित ‘क्षेत्रीय उत्पादन संश्लिष्ट’ (Terriotiral Prodution Complex) आर्थिक प्रादेशीकरण की सर्वोत्तम तकनीक है। कोलोसोव्स्की के अनुसार “उत्पादन संश्लिष्ट किसी एक औद्योगिक या उत्पादन क्षेत्र के प्राकृतिक और आर्थिक परिस्थितियों एवं आर्थिक-भौगोलिक अवस्थिति के अनुसार सफल समायोजन से विकसित हुई है। अतः भौगोलिक प्रादेशीकरण का मुख्य आधार उत्पादन और क्षेत्र का ऐसा मिला जुला संयोग (combinations) है जो प्राकृतिक संसाधनों के साथ ऊर्जा और मशीन के द्वारा समाज के एक विशिष्ट श्रम विभाजन के कार्यात्मक संयोग से बनता है। “

उपरोक्त सिद्धान्त के आधार पर सम्पूर्ण आर्थिक प्रक्रिया को मानव तकनीकी श्रम विभाजन, विशिष्ट क्षेत्रीय संसाधन संश्लिष्टों तथा उत्पादन प्रक्रियाओं क्षेत्र में उपलब्ध कच्चे मालों तथा ऊर्जा स्रोत के आधार पर विशिष्ट समुच्चयों में विभाजित किया गया। इन विशिष्ट समुच्चयों को ‘उत्पादन चक्र’ (Production Cycles) की संज्ञा दी गयी।

प्रमुख उत्पादन चक्र निम्नवत हैं;

कोयले से प्राप्त ऊर्जा एवं लौह खनिज आधारित लौह धातु उत्पादन चक्र, कोयले से प्राप्त ऊर्जा एवं अलौह खनिज आधारित अलौह धातु उत्पादन चक्र, पेट्रोल से प्राप्त ऊर्जा पर आधारित पेट्रो-रसायन उत्पादन चक्र, जल विद्युत आधारित उत्पादन चक्र, वन से प्राप्त लकड़ी एवं उत्पादों पर आधारित उत्पादन चक्र, सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन चक्र, नगरों की माँग पर निर्भर उपभोक्ता वस्तु उत्पादन चक्र।

इस उत्पादन चक्र की संकल्पना के आधार पर प्रादेशीकरण किया गया। एक विशिष्ट क्षेत्र जहाँ किसी एक या अनेक प्रकार के उत्पादन चक्र का विकास हुआ है एक वृहद् आर्थिक प्रदेश अपनी विशिष्ट आर्थिक संरचना, उत्पादन विशेषता, अवस्थापनाओं के विकास स्तर पर संसाधन संश्लिष्टों के उपयोग प्रतिरूप के कारण देश के अन्य आर्थिक प्रदेशों से भिन्न इकाई बन जाता है।

प्रौद्योगिकीय स्तर पर आधारित विश्व के आर्थिक प्रदेश- 1. OECD देश 2. संक्रमण तन्त्र, 3. भूमध्य सागरीय यूरोप, 4. दक्षिणी अमेरिका, 5. लेटिन अमेरिका, उत्तरी सहारा 6 एशिया

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