यूरोप के जलवायु प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
जलवायु
यूरोप मुख्य रूप से शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसीलिए यहाँ विभिन्न प्रकार की शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। इसकी जलवायुगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
शीतकालीन जलवायु
शीतकाल में यूरोप की जलवायु पर दो वायु राशियों का प्रभाव पड़ता है। शीत वायु राशि तथा उष्ण आर्द्र वायु राशि ।
विभिन्न वायु राशियों की अन्तक्रिया
(अ) ध्रुवीय महाद्वीपीय वायु राशि (CP) – यह वायु राशि पूर्व की ओर से यूरोप में प्रवेश करती है। यह शीत तथा शुष्क होती है। यह प्रायः पश्चिम की ओर समस्त यूरोप पर छा जाती है। यदि शीत काल के आरम्भ में आल्पस पर्वतों पर हिमपात होता है तो स्कैण्डिनेविया में उच्च वायु दाब उत्पन्न हो जाता है। जब पूर्वी यूरोप तथा आल्पस पर्वत के उच्च वायु दाब आपस में मिल जाते हैं, तो समस्त यूरोप पर शीत वायु राशि के कारण कठोर शीत पड़ती है। यूरोप में कई प्राकृतिक प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से शीत शुष्क वायु भूमध्यसागर की ओर चलती है। ऐसा एक द्वार रोन घाटी हैं इसके प्रभाव से भूमध्यसागर के चक्रवात क्रियाशील हो जाते हैं तथा वर्षा करते हैं।
(ब) उष्ण कटिबन्धीय महासागरीय वायु राशि (MT) – दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर पूर्वी यूरोप के वायु दाब में बहुत अन्तर है। इसके प्रभाव से कई चक्रवातों के साथ अन्धमहासागर से आकर वायु राशि यूरोप में प्रवेश करती है। इनके प्रभाव से यूरोप में तापमान बढ़ जाता है तथा वर्षा करते हैं।
जब पूर्वी CP वायु राशि का अधिक पड़ता है, तो यह MT वायु राशि को महाद्वीप के आन्तरिक भाग में पहुँचने से रोकती है। इसका प्रभाव पश्चिमी तट तक भी सीमित रहता है। इसका अर्थ यह है कि जब यूरोप में आन्तरिक भाग में अत्यन्त शीत पड़ती है, तो पश्चिमी भाग गर्म रहता है। यहाँ आन्तरिक भाग की अपेक्षा 17अंश-18 अंश सेण्टीग्रेड तापमान ऊँचा रहता है। कई बार स्कैण्डिनेविया में प्रति चक्रवात उत्पन्न होते हैं, जो चक्रवातों को यूरोप में प्रवेश करने से रोकते हैं। इसके प्रभाव से स्वीडन में ठण्ड पड़ती है तथा शुष्क ऋतु होती है, परन्तु नार्वे में में ऊँचे तापमान तथा वर्षा होती है।
अक्षांशीय प्रभाव- यूरोप की जलवायु पर अंक्षाशीय स्थिति का विशेष प्रभाव हैं, जिसके कारण दक्षिण यूरोप अधिक गर्म रहता है। यहाँ निम्न वायु दाब उत्पन्न होता है, जिससे अन्धमहासागर के चक्रवात यूरोप में प्रवेश करते हैं। इनके प्रभाव से शीतकाल में लम्बे समय तक वर्षा होती रहती है। जब शुष्क तथा शीत CP वायु राशि अल्पाईन क्षेत्र में पहुँचती हैं, तो यह वर्षा तथा हिमपात करती है। कई प्रायद्वीपों के कारण उत्पन्न उच्च वायुदाब चक्रवातों को आन्तरिक भागों में प्रवेश करने से रोकती हैं। जब पूर्वी CP वायु राशि यूरोप में स्थिर हो जाती है, तो MT वायु राशि ऊपर उठना शुरू कर देती है। इसके प्रभाव से नदी घाटियों में शीत पड़ती है, परन्तु ऊँची ढलानों पर गर्म मौसम रहता है। तापमान नीचली ढलानों से ऊपरी ढलानों की ओर बढ़ता है,
शीतकालीन जलवायु की विशेषता-
1. उत्तर पूर्व में न्यूनतम तापमान- उत्तर-पूर्व में न्यूनतम औसत तापमान, (-18° सेण्टीग्रेड) पाया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहाँ उष्ण आर्द्र वायु राशियां नहीं पहुँचती।
2. भूमध्य सागरीय क्षेत्र में हिसंक से नीचे तापमान होना- भूमध्यसागरीय क्षेत्र में औसत तापमान 0° 10° सेण्टीग्रेड होता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि यहाँ तापमान हिमांक से नीचे नहीं जाता। जब CP वायु राशि आल्पस पर्वतों के मार्ग से यहाँ पहुँचती है, तो तापमान हिमांक से नीचे हो जाता है।
3. अक्षांशीय तथा देशान्तरीय तापमान में विभिन्नता- देशान्तर के साथ तापमान में कम विभिन्नता पायी जाती है। बरगेन (नार्वे) तथा मास्को (रूस) का अक्षांस लगभग समान है, परन्तु देशान्तरीय अन्तर 32 अंश है। इन दोनों स्थलों के तापमान में केवल 0.5 अंश सेण्टीग्रेड का अन्तर है।
ग्रीष्मकालीन जलवायु
1. भू-मध्यसागर का प्रभाव- भू-मध्यसागर में अधिकतर उच्च वायु दाब रहता है। पश्चिमी भाग में चक्रवात चलते हैं, परन्तु उत्तरी तथा पूर्वी भाग में उत्तर की ओर से पवनें चलती हैं।
2. ऐजोर द्वीप के उच्च वायु दाब का खिसकना- ग्रीष्म ऋतु में यह उच्च वायु दाब 10अंश उत्तर की ओर खिसक जाता है। इसलिए भू-मध्यसागर में चक्रवात प्रवेश नहीं कर पाते।
3. उत्तरी अन्धमहासागर का प्रभाव- उत्तरी अन्धमहासागर में उच्च वायु दाब होता है। इससे पश्चिमी पवनें कमजोर पड़ जाती है। कई बार पश्चिमी पवनें चक्रवातों के साथ यूरोप में प्रवेश करके वर्षा करती हैं।
4. महासागरीय वायु राशियाँ- यह वायु राशियाँ मध्य तथा दक्षिणी यूरोप पर प्रभाव डालती हैं। यदि यह वायु राशियाँ उच्च वायु दाब के कारण यूरोप में प्रवेश करती हैं तो मौसम साफ तथा शुष्क रहता है, परन्तु चक्रवातों के साथ प्रवेश करने से यहाँ वर्षा अधिक होती है।
5. उत्तर पश्चिमी तथा उत्तरी यूरोप के तट का प्रभाव- यहाँ MP तथा CP वायु राशि के मिलने से आकाश में बादल छाये रहते हैं तथा हल्की-हल्की बूंदा-बांदी होती रहती है।
6. मध्य एशिया की वायु राशियों का प्रभाव- यह वायु राशियाँ गर्म तथा शुष्क होती हैं तथा दक्षिणी यूरोप पर प्रभाव डालती हैं।
ग्रीष्मकालीन जलवायु की विशेषताएं
तापमान- यूरोप में ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता जाता है। भीतरी भाग पश्चिमी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं। दक्षिणी यूरोप में इटली, स्पेन, वोल्गा घाटी में उच्च तापमान मिलता है।
वर्षा यूरोप की वर्षा को निम्नलिखित वर्षा क्षेत्रों में बाँट सकते हैं-
1. पश्चिमी क्षेत्र- इस क्षेत्र में ब्रिटेन, आयरलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, पश्चिमी जर्मनी, पश्चिमी फ्रांस, हालैण्ड तथा बैल्जियम शामिल है। यहाँ वर्ष भर वर्षा होती है। ग्रीष्म काल की अपेक्षा शीतकाल में अधिक वर्षां होती है। वर्षा का मुख्य कारण महासागरीय वायु राशि तथा चक्रवात है। औसत वर्षा 500 सम है तथा छाया क्षेत्र में वर्षा कम होकर 40 50 सम रह जाती है।
2. आन्तरिक यूरोप- इस क्षेत्र में पूर्वी जर्मनी, पोलैण्ड, पूर्वी फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड, आस्ट्रिया, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी तथा उत्तरी रोमानिया शामिल हैं। पर्वतीय भागों में संवाहिक वर्षा होती है। औसत वर्षा 50-100 सम है।
3. भू-मध्यसागरीय यूरोप- इस क्षेत्र में दक्षिणी स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, इटली तथा पूर्वी यूगोस्लाविया शामिल हैं। ग्रीष्म काल में उच्च वायु दाब के कारण शुष्क रहते हैं, परन्तु शीतकाल में चक्रवातों के कारण वर्षा होती है, जो कि पश्चिम से पूर्व की ओर घटती जाती हैं
4. टुण्ड्रा प्रदेश- इस भाग में नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड तथा रूस के उत्तरी भाग श है। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। प्रायः हिमपात अधिक होता है। औसत वर्षा 25 सम. है, जोकि अधिकतर ग्रीष्म ऋतु में होती है।
यूरोप के जलवायु प्रदेश
1. महासागरीय जलवायु प्रदेश- इस प्रदेश में नार्वे का पश्चिमी तट, खाड़ी बिसके आदि शामिल हैं यहाँ महासागरीय वायु राशियाँ मिलती हैं। वर्षा मुख्य रूप से आर्कटिक सीमान्त तथा ध्रुवीय सीमान्त के कारण होती है। वार्षिक तापान्तर 12°C से कम है। तापमान 0°C से अधिक तथा 30°C से कम रहता है। वर्ष भर वर्षा होती है, परन्तु ग्रीष्मकाल की अपेक्षा शीतकाल में अधिक वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 75 सम. है। आकाश बादलों से ढका रहता है। धुंध साधारण बात है। आर्कटिक प्रदेश सबसे ठण्डा प्रदेश है।
2. महाद्वीपीय जलवायु प्रदेश- इस पूर्वी यूरोपीय जलवायु प्रदेश भी कहते हैं। इसमें यूरोपीय रूस का अधिकतर भाग शामिल है। शीतकाल में CP वायु राशि तथा ग्रीष्म काल में CP वायु राशियाँ चलती हैं तापमान 18°C से 32°C तक रहता है। शीतकाल हिमपात के कारण ठण्डा रहता है। ग्रीष्मकाल में वर्षा होती है।
3. दरमियानी जलवायु प्रदेश- यह मध्य यूरोप में बाल्टिक, पोलैंड, अल्पाइन तथ डैन्यूब घाटी में फैला हुआ है। यहाँ क्रमशः महासागरीय तथा महाद्वीपीय जलवायु अनुभव की जाती है। न्यूनतम तापमान 18°C तथा उच्चतम तापमान 30°C रहता है। वर्ष भर समान रूप से वर्षा होती है। पश्चिमी भाग में अधिक वर्षा होती है। ऊँचाई के साथ-साथ वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है। उच्च प्रदेश अधिक खण्डे तथा आर्द्र रहते हैं।
4. भू-मध्यसागरीय जलवायु प्रदेश- स्पेन से लेकर यूनान तक भू-मध्यसागर तट के साथ-साथ यह जलवायु प्रदेष फैला हुआ है। महासागरीय तथा महाद्वीपीय वायु राशियों का महत्वपूर्ण प्रभाव हैं यह प्रदेश साइबेरिया तथा अफ्रीका के उच्च वायु दाब क्षेत्रों के मध्य स्थित है।
यह चक्रवातों के आगमन के लिए प्रसिद्ध है। चक्रवात उत्तरी भाग में स्थायी रूप से अधिक वर्षा करते हैं, परन्तु दक्षिणी भाग में कम। ग्रीष्मकाल में उच्च वायु दाब के कारण चक्रवात प्रवेश नहीं कर पाते तथा ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान 21°C से अधिक रहता है। शीतकाल में साधारण तापमान हिमांक से ऊपर रहते हैं। वार्षिक ताप अन्तर 11°C-22°C है। शीतकाल में वर्षा होती है तथा ग्रीष्मकाल शुष्क रहता है।
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