राजनीतिक प्रदेश की परिभाषा बताइये तथा इसकी विशेषता बताइए।
राजनीतिक प्रदेश की परिभाषा-
1. “राजनीतिक भूगोल राजनीतिक प्रदेशों का पृथ्वी-तल के तत्वों के रूप में अध्ययन करता है। ” – लुईस एम. एलेक्जेण्डर
उपरोक्त परिभाषा में राजनीतिक प्रदेश अर्थात् राज्य को पृथ्वी अर्थात् वातावरण का तत्व स्वीकार किया है। विश्व के अनेक भागों में राजनीतिक प्रदेश अपेक्षाकृत स्थायी हैं, जबकि दूसरी ओर अनेक क्षेत्रों में परिवर्तन होते रहते हैं। पृथ्वी तल के अन्य तत्वों, अर्थात् धरातल, जलवायु, अधिवास प्रारूप, यातायात, आदि के साथ राजनीतिक क्षेत्रों का सामन्जस्य स्थापित कर राजनीतिक भूगोलवेत्ता एक मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे राज्य का अधिकतम विकास सम्भव हो सकता है एवं उसकी अनेक समस्याओं को समझा जा सकता है।
2. “राजनीतिक भूगोल का अध्ययन मुख्यतया वर्तमान दशाओं से सम्बन्धित होता है, किन्तु भूतकालिक घटनाओं को आज अवस्थित स्वरूप के परिवर्तक के रूप में ध्यान में रखा जाता है।” – ए. ई. मूडी
मूडी महोदय ने राजनीतिक भूगोल में ऐतिहासिक अध्ययन को महत्वपूर्ण वर्णित किया है। उनके अनुसार वर्तमान राजनीतिक दशाओं को अध्ययन यद्यपि राजनीतिक भूगोल का उद्देश्य है, किन्तु ये दशायें अपना इतिहास रखती है। जब तक उन कारणों का विश्लेषण नहीं किया जाये, जिनके कारण वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था का जन्म हुआ, उस समय तक राजनीतिक भूगोल का अध्ययन एकांगी रह जायेगा। राज्य के आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप का अध्ययन विगत परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाना आवश्यक है।
3. “राजनीतिक भूगोल, राजनीतिक एवं भौगोलिक उपक्रमों के मध्य स्थानगत अथवा क्षेत्रीय अन्तर्सम्बन्ध को स्पष्ट करता है।” – रिचार्ड मूर
स्पष्ट है कि एक क्षेत्र का भौगोलिक वातावरण वहाँ की राजनीतिक व्यवस्था करता है तथा राज्य के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को नियन्त्रित करता है। इस तरह राजनीतिक भूगोल तथा राजनीति विज्ञान में समन्वय स्थापित करता है।
4. विगर्ट एवं साथियों ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Political Geography’ में राजनीतिक भूगोल को परिभाषित करते हुए लिखा है- “राजनीतिक भूगोल का अध्ययन उन आन्तरिक भौगोलिक तथ्यों की व्याख्या करता है, जो राज्य को विशिष्टता प्रदान करते हैं तथा राज्यों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते है। ”
5. “राजनीतिक भूगोल वह शाखा है जो राजनीतिक उपक्रमों को भौगोलिक परिवेश में प्रस्तुत करती है- स्थान-स्थान पर राजनीतिक उपक्रमों की भिन्नता राजनीतिक भूगोल की मूल भावना है।” -एस. बी. कोहेन
स्पष्ट है कि राजनीतिक भूगोल में एक ओर सम्पूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम समाहित है तो दूसरी ओर भौगोलिक पर्यावरण जो निरन्तर उन्हें परिचालित करता रहता है।
राजनीतिक क्षेत्रों का अध्ययन
20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में यद्यपि प्रमुखता राष्ट्रीय शक्ति से सम्बन्धित कार्यों को रही, किन्तु भूगोलवेत्ताओं में राजनीतिक भूगोल से सम्बन्धित समस्याओं पर गहन अध्ययन की प्रवृत्ति का भी विकास हुआ। 1920 तक ग्रेट ब्रिटेन में अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। यही नहीं अपितु प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् हुए अनेक शान्ति समझौतों में भूगोलवेत्तओं की सलाह ली गई। 1921 में डॉ० इजाबे बोमेन (Dr. Isaiah Bowman) प्रकाशित हुई, जिसमें विश्व के समस्त क्षेत्रों का राजनीतिक भूगोल के दृष्टिकोण से अध्ययन प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात् के राजनीतिक भूगोल के अध्ययन को तीन उपविभागों में विभक्त किया जा सकता है-
- राजनीतिक क्षेत्र का सैद्धान्तिक अध्ययन (Theoretical studies of Political Regions)
- राजनीतिक उपक्रमों का अध्ययन (Studies of Political Phenomena)
- विशिष्ट राजनीतिक क्षेत्रों का अध्ययन (Studies of specific political areas)
1. राजनीतिक क्षेत्र का सैद्धान्तिक अध्ययन- राजनीतिक भूगोल में सैद्धान्तिक दृष्टि से अपेक्षाकृत कम कार्य किया गया। यहाँ तक कि 1930 में हार्टशोर्न (Hartshorne) को राजनीतिक भूगोल के क्षेत्र निर्धारण हेतु स्पष्ट तथ्य नहीं मिले। द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ के समय हिटिलेसी (Whittlesey) ने लिखा कि मुझे राजनीतिक घटनाओं में स्थान-स्थान पर जो क्षेत्रीय भिन्नता मिलती है वहीं राजनीतिक भूगोल का मूल तत्व है। इसी प्रकार हेन्स बीगर्ट (Hans Weigert), टी. हेरमन (T Herman) हार्टशोर्न एवं अन्य भूगोलवेत्ताओं ने राजनीतिक भूगोल की विषय-वस्तु को स्पष्ट किया, जिसका विवेचन अध्याय 1 में किया जा चुका है।
भूगोलवेत्ता राजनीतिक विश्व को पृथ्वीतल पर घटने वाली घटनाओं के दृष्टिकोण से देखते हैं राजनीतिक क्षेत्र के अन्तर्गत राज्य से सम्बन्धित तथ्य, जैसे राजधानी, सीमायें प्रशासन विभाग, आदि सम्मिलित किये जाते हैं राजनीतिक भूगोल में सिद्धान्त निरूपण की दृष्टि से 1935 में हार्टशोर्न ने इसके अध्ययन के लिए ‘सरंचना विधा’ (Morphological Approach) प्रस्तुत की। 1950 में उन्होंने इसमें परिवर्तन प्रस्तुत कर कार्य सम्बन्धी विधा’ (Functional Approach) प्रस्तुत किया। इसी प्रकार 1955 में स्टीफन जोन्स (Stephen Jones) ने राजनीतिक क्षेत्र के अध्ययन के लिए ‘संयुक्त क्षेत्र सिद्धान्त’ (Unified Field Theory) प्रस्तुत की। जीन गॉटमेन (Jean Gottmann) ने राजनीतिक क्षेत्र में क्षेत्रीय संगठनों के निर्धारत पर विचार प्रस्तुत किये। डेविड नेफ्ट (David Neft) ने एक सांख्यिकी सूत्र प्रस्तुत किया जिसके द्वारा एक राज्य का विदेशी क्षेत्र में सापेक्षित प्रभाव ज्ञात किया जा सकता है।
2. राजनीतिक उपक्रमों का अध्ययन- राजनीतिक उपक्रमों के अन्तर्गत वे तथ्य राजनीतिक शक्तियों द्वारा उत्पन्न होते हैं तथा वे विचार जो उन शक्तियों को परिचालित करते हैं, को सम्मिलित किया जाता है। विशिष्ट राजनीतिक तथ्यों, जैसे-सीमायें, राजधानी, आदि से सम्बन्धित अनेक लेख एवं पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। सीमाओं पर एस. डब्लू. बोग्स (S. W. Boggs), स्टीफन जोन्स (Stephen Jones), विटोरियो अदामी (Vittorio Adami) ने पुस्तकें, लिखीं तथा अनेक लेख विभिन्न भूगोलवेत्ताओं, जैसे-जोन्स (Jones), नॉरमन पौण्ड्स (Norman ounds09, ई. फिशर (E. Fischer), लेडिस क्रिस्टोफ (Ladis Kristof), जान ब्रोक (Jan Broek), एडबर्ड उलमेन (Edward Ullman) आदि ने लिखे।
3. विशिष्ट राजनीतिक क्षेत्रों का अध्ययन- राजनीतिक भूगोल में अनेक भूगोलवेत्ताओं ने एक क्षेत्र विशेष को आधार मानकर उसका अध्ययन किया। इसमें विशेषकर राजनीतिक समस्या से युक्त क्षेत्रों का अध्ययन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि उन्होंने राजनीतिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कर भौगोलिक दृष्टिकोण से उनका निराकरण प्रस्तुत किया। एस. वामबाघ (S. Wambuagh) ने प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् हुए जनमत संग्रह का गहन अध्ययन किया।
एस. साउसरमेन (S. Saucerman) ने 1918 के पश्चात् यूरोप में हुए क्षेत्रीय परिवर्तनों को स्पष्ट किया। साथ ही कश्मीर, सारलैण्ड, आदि का भी वर्णन किया। कीथ बुचनन (Keith Buchanan) ने उत्तरी नाइजीरिया की एकता एवं अनेकता का तथा स्पेट ने भारतीय उपमहाद्वीप से सम्बन्धित महत्वपूर्ण विचार दिये।
बी. एल. सुखववाल (B. I Sukhwal) ने भारत के राजनीतिक भूगोल के विविध पक्षों की व्याख्या एक पुस्तक में की है। ए.ई. मूडी (A. E. Moddie), हाटशोर्न रॉबर्ट प्लाट (Robert Platt), और जॉर्जे हॉफमेन (George Hofmann) ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं द्वारा उत्पन्न समस्याओं के सम्बन्ध में विचार प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त कुछ भूगोलवेत्ताओं ने अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे- नाटो (NATO) यूरोपीय साझा बाजार (European Common Market) वारसा पेक्ट (Warsaw) आदि पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
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