बचत के स्रोत (Source of Savings)
बचत के स्रोत (Source of Savings)- घरेलू बचत के विभिन्न स्रोतों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) परिवार क्षेत्र की बचतें (Household sector Savings) – इस क्षेत्र में (a) परिवारों की, (b) लाभ के बिना काम करने वाली संस्थाओं, जैसे कॉलेज, अस्पताल आदि तथा (c) कम्पनियों के रूप में संगठित न होने वाले व्यापार की बचतें शामिल की जाती हैं। इस क्षेत्र की बचतें (a) वित्तीय परिसम्पति अर्थात् बैंकों में जमा तथा (b) कारखानों, कृषि आदि में प्रत्यक्ष निवेश के रूप में की जाती हैं।
(2) सरकारी क्षेत्र की बचतें (Government Sector Savings)- सरकार की आय तथा व्यय के द्वारा सरकारी बचतों की मात्रा निर्धारित की जाती है। इसमें सरकारी विभागों, जैसे- रेलवे, डाक-तार विभाग की बचतें शामिल की जाती हैं।
इसे भी पढ़े…
(3) निजी निगमित क्षेत्र की बचतें (Private Corporate Sector Savings) – निगमित उद्यम क्षेत्र में (i) निजी क्षेत्र की कम्पनियों, (ii) सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों तथा (iii) सहकारी क्षेत्र की कम्पनियों से प्राप्त होने वाली बचतें शामिल की जाती हैं। ये कम्पनियाँ अपने लाभ के जिस भाग का हिस्सेदारों में बँटवारा नहीं करती हैं, वह भाग ही इनकी बचत कहलाता है।
घरेलू बचतों के स्रोत का विश्लेषण (Analysis of Sources of Saving in India)
घरेलू बचतों का विश्लेषण करके हम यह ज्ञात करने का प्रयास करेंगे कि विभिन्न स्रोतों का बचतों में योजनाकाल में क्या योगदान रहा है।
इसे भी पढ़े…
सकल बचत का क्षेत्रीय विश्लेषण
(1) परिवार क्षेत्र की बचतें (Household Sector Savings)- परिवार क्षेत्र का सकल घरेलू बचतों में सर्वाधिक योगदान है जैसा कि सारणी के अंकों से स्पष्ट है 1950-51 में परिवार क्षेत्र का योगदान 76% था जो 2009-10 में घटक 69.5 हो गया।
परिवार की बचतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (अ) वित्तीय परिसम्पत्तियों के रूप में बचत तथा (ब) भौतिक परिसम्पत्तियों के रूप में बचत। भारत में योजनाकाल के पहले तीन दशकों में वित्तीय परिसम्पत्तियों के रूप में बचतें औसतन 45% रही हैं, सातवें दशक में वित्तीय परिसम्पत्तियों का पारिवारिक बचतों में योगदान 50% था जो 1982-83 में बढ़कर 58% तथा 2009-10 में बढ़कर 66% हो गया। स्पष्टत: पारिवारिक बचतों में वित्तीय परिसम्पत्तियों का योगदान क्रमशः बढ़ता जा रहा है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(i) बैंकिंग सेवाओं एवं वित्तीय सेवाओं का विकास, जो वित्तीय परिसम्पत्तियों को प्रोत्साहित करता है।
(ii) अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के कारण संग्रहीत धन का बैंक जमाओं में परिवर्तन ।
(iii) आर्थिक विकास के कारण परिवारों की आय में वृद्धि।
(2) सरकारी क्षेत्र की बचतें (Government Sector Savings)- अर्थव्यवस्था की कुल बचतों में सरकारी बचतों का द्वितीय स्थान रहा है। सरकारी क्षेत्र की बचतों की प्रवृत्ति में बहुत उच्चावचन रहा है। वर्ष 1951-52 में सरकारी बचतों का सकल घरेलू बचतों में योगदान 20% था जो कि 2009-10 के अन्त में घटकर 6.0% रह गया।
(3) निजी निगमित क्षेत्र की बचतें-निजी निगमित बचतों का सवाल घरेलू बचतों में सबसे निम्न है। वर्ष 1951-52 में निजी निगमित बचतें 100 प्रतिशत थीं जो 2009-10 में बढ़कर 24.5 प्रतिशत हो गईं। फिर भी निजी निगमित बचतें उत्साहवर्द्धक नहीं रही हैं, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में निजी निगमित बचतों का सकल घलेलू बचत में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। भारत में निजी निगमित बचतें अधिक न होने के सम्बन्ध में डॉ. वी. के. आर. वी. राव ने निम्नलिखित कारण बताये हैं
(i) भारतीय उद्योगों में ऋण पूँजी का बढ़ता हुआ उपयोग तथा साधन आय में लाभ का घटता हुआ भाग;
(ii) भारतीय विनिर्माण एवं व्यापार में गैर-निगमित निजी क्षेत्र की बढ़ती हुई भूमिका जिसके कारण पारिवारिक बचतों में वृद्धि हुई है, तथा
(iii) हमारी कर प्रणाली जो कम्पनियों एवं निगमों के अवितरित लाभों के संचयन को हतोत्साहित करती है।
इसे भी पढ़े…
पूँजी निर्माण के मुख्य स्रोत
पूँजी निर्माण के प्रमुख स्रोत हैं (i) घरेलू साधन या स्रोत (ii) विदेशी साधन स्रोत
I. घरेलू साधन या स्रोत (Domestic Sources)- घरेलू साधनों में बचत पूँजी निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। जैसा कि हम पहचान कर चुके हैं। घरेलू बचतों में निम्नलिखित बचतें सम्मिलित रहती हैं
(i) परिवार क्षेत्र की बचतें (Household Sector Saving), (ii) निगमित क्षेत्र की बचतें (Corporate Sector Saving), (iii) सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की बचतें (Government/Public Sector Saving)
II. विदेशी साधन (Foreign Sources) : निवेश के विदेशी साधनों का निम्नलिखित ढंग से वर्गीकरण किया जा सकता है
(i) शुद्ध विदेशी (Net Foreign Liability ) : इसमें निम्न मदें शामिल हैं-
+ (a) भारतीय सरकार द्वारा विदेशों से लिये गये ऋण
+ (b) विदेशियों द्वारा भारत में किया गया निवेश
+ (c) कंपनियों तथा परिवार क्षेत्र द्वारा विदेशों से लिये गये ऋण व जमा (deposits)
घटाएँ
– (d) सरकार, परिवार क्षेत्र व कंपनियों द्वारा वापस किया गया विदेशी ऋण
– (e) विदेशियों द्वारा वापस लिया गया निवेश
(iii) शुद्ध विदेशी सम्पत्तियाँ (छमज ध्वतमपहद मजे)- इनका अनुमान निम्न प्रकार से लगाया जाता है।
+ (a) भारत का विदेशी विनिमय कोष (Foreign Exchange Reserves)
+ (b) भारत का विदेशों को दिये गये कर्जे
+ (c) भारतीयों द्वारा विदेशों में किया गया निवेश
घटाएँ
-(d) विदेशों द्वारा भारतीय ऋण की वापसी
-(e) भारतीयों द्वारा वापस लिया गया विदेशी निवेश
शुद्ध विदेशी साधन = शुद्ध विदेशी दायित्व – शुद्ध विदेशी सम्पत्तियाँ
Important Links
- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ | Bal Vikas ki Vibhinn Avastha
- बाल विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- विकास के प्रमुख सिद्धांत-Principles of Development in Hindi
- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व
- अभिवृद्धि और विकास का अर्थ
- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति
- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व
- श्रवण बाधित बालक का अर्थ तथा परिभाषा
- श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ Characteristics at Hearing Impairment Children in Hindi
- श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय
- दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- दृष्टि बाधित बालक किसे कहते हैं? परिभाषा Visually Impaired Children in Hindi
- दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ (Characteristics of Visually Handicap Children)
- विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।
- समस्यात्मक बालक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण एवं शिक्षा व्यवस्था
- विशिष्ट बालक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
- मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
- बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
- वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
- अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
- एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
- ओशों के शिक्षा सम्बन्धी विचार | Educational Views of Osho in Hindi
- जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of J. Krishnamurti
- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism
- प्रयोजनवाद का अर्थ, परिभाषा, रूप, सिद्धान्त, उद्देश्य, शिक्षण विधि एंव पाठ्यक्रम
- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है?
- प्रकृतिवाद का अर्थ एंव परिभाषा | प्रकृतिवाद के रूप | प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त