एशिया में जनसंख्या के स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।
मानव भौगोलिक तत्त्व, संसाधन और कारक के रूप में प्रकृति की सर्वाधिक मूल्यावान रचना है। निर्जन भूतल का तब तक कोई अर्थ नहीं होता जब तक उस पर मानव चरण न पड़ जाय। मानव प्राकृतिक संसाधनों का विकास और उपयोग कर सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण करता है। प्राकृतिक वातावरण में कार्य करते हुए उसमें यथासम्भव परिवर्तन करने का प्रयास करता है ताकि भौतिक और सांस्कृतिक वातावरण में सामंजस्य स्थापित कर सके। इस प्रकार भौगोलिक अध्ययन में मानव संख्या, उसकी संस्कृति और अन्य मानववीय विशेषताओं का संसाधन के रूप में अध्ययन किया जाता है। स्पष्ट है कि मानव ही दृष्टि की वह रचना है जो किसी तत्त्व, दशा या वस्तु को संसाधन का रूप देता है। अतः वह संसाधन, संसाधन उपभोक्ता तीनों रूपों का कार्य करता है।
विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 7 अरब है जिसकी आधी से अधिक एशिया में निवास करती हैं, जबकि इसका क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का लगभग एक चौथाई मात्र है। स्पष्ट है कि एशिया में मानव जमघट अधिक है। इस प्रकार जनसंख्या के दृष्टिकोण से भी यह विश्व का महानतम महाद्वीप है।
जनसंख्या की वृद्धि एशिया की जनसंख्या निरन्तर वृद्धिमान रही है क्योंकि यह प्रखण्ड सर्वाधिक जनसंख्या के भरण-पोषण में समर्थ रहा है। 1650 ई. में एशिया की कुल जनसंख्या 32.8 करोड़ थी, जाब बढ़कर 1750 ई.47.5 करोड़, 1850 में 74.1 करेड़. 1900 ई. में 91.5 करोड़, 1950 में 138.6 करोड़, 1993 में 309 करोड़ हो गयी और 2012 में 42.07 मिलियन है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का दौर वर्तमान सदी में शुरू हुआ, फलतः तीन गुनी वृद्धि दर्ज की गयी। इस प्रत्याशित वृद्धि से एशिया के कुछ देश चिन्ताकुल हो गये हैं और इसे करने के सारे प्रयास शुरू किये गये हैं।
जनसंख्या का वितरण
एशिया में जनसंख्या का विवरण असमान है। यहाँ की जनसंख्या के वितरण प्रतिरूप पर टिप्पणी करते जी. बी. क्रेसी ने कहा है कि एशिया में ऐसे भाग अधिक है जहाँ जनसंख्या कम है। जबकि कम भाग ऐसे हैं जहाँ जनसंख्या बहुत अधिक हैं। क्रेसी महोदय के इस कथन के के अनुसार एशिया का विशाल उत्तरी मैदान, मध्यवर्ती पठार और अधिकांश पश्चिमी भाग अति विरल जनसंख्या के क्षेत्र हैं और ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ नाममात्र की जनसंख्या है। विरल जसंख्या वाले क्षेत्र मशीप का तीन-चौथाई क्षेत्रफल घेरे हुए हैं, जबकि वहाँ जनसंख्या एक चौथाई से भी कम है। इसके विपरीत दक्षिणी, पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी भागों में एक-चौथाई क्षेत्रफल और तीन-चौथाई से अधिक जनसंख्या निवास करती है। यह न केवल एशिया अपितु सम्पूर्ण विश्व का सघनतम बसा भाग है। जनसंख्या वितरण के अतिरेक के रूप में इन मानव जमघटों की मान्यता है। इन घने बसे क्षेत्रों में भारत, चीन पाकिस्तान, जापान, कोरिया और जावा अग्रणी हैं। समतल धरातल और धान की कृषि के कारण भोजन की सुगमता ने इतनी जनसंख्या को आकृष्ट किया है। ये सभी भू-खण्ड प्राचीनकाल से मानव के लिये आकर्ष क्षेत्र रहे हैं। इन जन-बहुल देशों में भी वितरण प्रतिरूप समान नहीं है। उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है जहाँ भोजन प्राप्ति सबसे आसान है जैसे नदी-घाटियाँ, तटीय, मैदान और उपजाऊ मिट्टी वाले समतल पठार। भारत में गंगा, सिंधु एवं ब्रह्मपुत्र की घाटी की तुलना में प्रायद्वीप पठार पर वितरण कम है। इस प्रकार का वितरण प्रतिरूप चीन, जापान और पाकिस्तान में भी देखने को मिलता है। आन्तरिक चीन में जेचवान बेसिन पठारी भाग की तुलना अधिक सघन बसा है। में जापान में क्वाँतों का मैदान देश का सघनतम बसा भाग है। दक्षिण-पूर्वी एशिया अपेक्षाकृत कम अनुकूल जलवायु के कारण कम सघन बसा है लेकिन इरावदी घाटी और थाईलैण्ड की चाओफ्राया घाटी संघन बसे क्षेत्र हैं। इस प्रकार दक्षिण-पूर्वी एशिया में वितरण प्रतिरूप सामान्य है। न्यून जल वितरण साइबेरिया, मंगोलिया तिब्बत और पश्चिमी एशिया है।
जनसंख्या का घनत्व
सम्पूर्ण विश्व का औसत जनसंख्या घनत्व मात्र 47 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है जबकि एशिया का और घनत्व 140 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। इससे स्पष्ट है कि यहाँ केवल जनसंख्या का जमघट ही नहीं है, बल्कि घनत्व के दृष्टिकोण से भी यह विश्व औसत से बहुत ऊपर है। तालिका के अवलोकन में विदित होता है कि एशिया के औसत घनत्व से अधिक जनभार वाले देशों की संख्या अधिक है जबकि कम घनत्व वाले देश कम है। यह भी स्पष्ट है कि इन देशों में सर्वत्र घनत्व समान नहीं है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जब क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या घनत्व का अध्ययन किया जाता है तो अनेक विसंगतियाँ प्रकट होती हैं। मानचित्र के जनसंख्या घनत्व को प्रकट करता है, जिससे स्पष्ट है कि यहाँ एक ही देश में विविध प्रकार के घनत्व हैं। घनत्व की इस विविधता को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है
(क) अधिक घनत्व वाले क्षेत्र- 500 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. से अधिक।
(ख) मध्यम घनत्व वाले क्षेत्र- 100-500 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.।
(ग) कम घनत्व वाले क्षेत्र- 100 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. से कम।
अधिक घनत्व वाले क्षेत्र जनसंख्या के घनत्व के दृष्टिकोण से एशिया को अतिशयता का महाद्वीप कहा जा सकता है क्योंकि यहाँ उच्चतम और न्यनूतम दोनों प्रकार के घनत्व विद्यमान है। उच्चतम घनत्व गंगा मैदान, यांग्टिसी बेसिन, जापान और जावा आदि में है तो न्यूनतम मंगोलिया, साइबेरिया और सऊदी अरब में एशिया में औसत घनत्व के दृष्टिकोण से हाँगकांग, सिंगापुर, बंगलादेश, कोरिया और जापान अग्रणी हैं लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर भारत, चीन, वियनाम, पाकिस्तान और म्यांमार के विस्तृत भू-क्षेत्र अधिक घनत्व प्रदर्शित करते हैं। वास्तव में एशिया की जनसंख्या का सर्वाधिक घनत्व नदी घाटियों और तटीय मैदानों में हैं। ये सभी क्षेत्र कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के प्रदेश हैं जहाँ सदियों पूर्व से मानव इन भू-भागों से जुड़ा है। यहाँ मानव के भरण-पोषण की सर्वाधिक सुलभ परिस्थितियाँ उपलब्ध रही हैं। इनमें से अधिकांश क्षेत्र कृषि के साथ औद्योगिक और व्यावसायिक विकास में भी अग्रणी हो गये हैं, जैसे जापान एवं चीन जिससे उनका आकर्षण बढ़ गया है।
मध्यम जनसंख्या वाले क्षेत्र- एशिया में मध्यम जनसंख्या घनत्व वाले देशों में म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, फिलीपीन्स तुर्की, हिन्देशिया, श्रीलंका, नेपाल और दक्षिणी कोरिया अग्रणी है। इन देशों में महाद्वीप की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इन देशों में भी घनत्व प्रतिरूप समान नहीं है, जैसे म्यांमार में इरावदी घाटी की घनत्व पठारी भाग से अधिक है। इन देशों में कृषि एवं पशुपालन प्रमुख आर्थिक कार्य है लेकिन भौतिक परिवेश की दुरूहता के कारण विस्तृत भू-क्षेत्र अनाकर्षक हैं।
न्यूनतम जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र एशिया के विस्तृत भू-क्षेत्र पर दुरूह जलवायु, विकट धरातल एवं अनुपजाऊ मिट्टी के कारण सीमित जनसंख्या का भरण-पोषण सम्भव है जिसके फलस्वरूप यहाँ घनत्व न्यूनतम हैं। एशिया के पठार, मरूस्थल, स्टेपी घास के मैदान, चलवासी पशुपालन के ऐसे क्षेत्र है जहाँ भोजन जुटाना भी कठिन है। कम जनसंख्या घनत्व वाले देशों में मंगोलिया, सऊदी अरब, साइबेरिया ईरान, अफगानिस्तान, जॉर्डन, पापुआन्यूगिनी, लाओस, इराक यमन अग्रणी हैं जहाँ औसत घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी0 से कम है।
जनसंख्या के असमान वितरण के कारण-
एशिया में असमान जनसंख्या वितरण प्रतिरूप और घनत्व अतिरेक के कारकों को प्रधानतः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है’ (1) भौतिक कारक और (2) मानवीय कारक ।
(1) भौतिक कारक- भौतिक कारकों में जलवायु भौम्याकार, मिट्टी और वनस्पति तत्त्व हैं जो जनसंख्या के सामान्य वितरण और घनत्व को प्रभावित करते हैं अत्यधिक विषम जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे अतिशील एवं अतिशुष्क एशिया के जनरिक्त क्षेत्र हैं। साइबेरिया की कठोर ठण्ड और शुष्कता तथा पश्चिमी भाग की उष्णता और शुष्कता के कारण अतिन्यूनतम जन घनत्व है जबकि मानसूनी वर्षा की अनुकूलता के फलस्वरूप कुछ क्षेत्रों में जनाधिक्य है। इसी प्रकार उपजाऊ मिट्टी का प्रभाव भी एशिया के कृषि प्रधान क्षेत्रों में देखा जा सकता है जो सघन जनसंख्या के क्षेत्र है। एक अवधारणा यह है कि उष्ण-आर्द्र जलवायु में सन्तानोत्पत्ति की क्षमता भी अधिक होती है।
(2) मानवीय कारक- मानवीय कारकों में ऐतिहासिक कारक, राजनीतिक कारक, सामाजिक सरंचना और मानवीय विशेषताएँ प्रमुख हैं। ऐतिहासिक तथ्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि एशिया की नदी घाटियाँ प्रारम्भ से ही मनुष्य के लिए आकर्षक रही हैं। इन्होंने न केवल आदि संस्कृतियों को जन्म दिया है अपितु सबसे लम्बे अरसे तक मानव का भरण-पोषण भी किया है। स्वाभाविक है कि यहाँ के जन अतिरेक के साथ इसका लम्बा इतिहास भी जुड़ा हुआ है। एशिया के लगभग सभी देश आव्रजन विरोधी हैं। भारत और नेपाल अपने राजनीतिक फैसले पर पुनर्विचार करने लगे हैं। क्योंकि अब तक इन देशों के मध्य आव्रजन प्रव्रजन की कोई समस्या नहीं है। श्रीलंका में ब्रिटिशकालीन आब्रर्जित भारतीयों से सौतेला व्यवहार होने लगा है। जनसंख्या और संसाधन-पहले बताया जा चुका है कि मानव स्वयं संसाधन, संसाधनकर्ता और संसाधन उपभोक्ता है। अतः जनसंख्या और संसाधन का अन्तर्सम्बन्ध जहाँ कहीं असंतुलित है वहाँ या तो जनसंख्या अतिरेक (Over Population) है या जनसंख्या की कमी (Under Population)। यह अन्तर्समबन्ध वहाँ उत्पादित खाद्य सामग्री की मात्रा, आपूर्ति और लोगों के जीवन-स्तर से प्रकट होता है। किसी देश में अधिक जनसंख्या से तब तक कोई समस्या नहीं होती जब तब कि उसके भरण-पोषण और अच्छे जीवन-स्तर के लिए आवश्यक साधन मौजूद हैं। 20वीं सदी में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि तथा उसकी तुलना में खाद्य सामग्री के कम उत्पादन के कारण एशिया के कुछ देशों को छोड़कर लगभग सभी देशों में जनसंख्या-संसाधन सम्बन्ध असंतुलित हो गया है। विश्व के सर्वाधिक खाद्यान्न आयात कर किसी प्रकार उदर पूर्ति कर रहे हैं। एशिया में साइबेरियायी रूस और जापान दो ऐसे देश है जहाँ संसाधन की तुलना में जनसंख्या या तो अभीष्ट है अथवा कम है। एशिया के देशों में जन संख्या का सर्वाधिक भार कृषि पर है और कृषि वर्षा आधारित है। सूखा और बाढ़ के कारण संसाधनों का समुचित उपयोग भी नही हो पा रहा है। यदि दैवीय आपदाओं के प्रभावों को कम कर दिया जाय तो एशिया इतना खाद्यान्न पैदा कर सकता है कि अवशेष विश्व के लिए पर्याप्त हो जाय। एशिया के बहुत कम देश हैं जो खाद्यान्नों का निर्यात करते हैं। औद्योगिक विकास भी सीमित है। स्वाभाविक है कि एशिया की अधिकांश जनसंख्या की कार्यशक्ति बहुत कम है। कृषि और उद्योग के विकास के लिए आवश्य
क पूँजी, वैज्ञानिक तकनीक और उत्कृष्ट राष्ट्र प्रेम का भी अभाव इन देशों में है जिससे इनके संसाधनों का समुचित विकास जनहित में नहीं हो पा रहा है। विदेशी कर्ज, तकनीक और निर्देशन पर आधारित अनेक देशों की अर्थव्यवस्था वांछित परिवर्तन लाने में असमर्थ हैं।
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