व्यावसायिक पर्यावरण का महत्त्व (Importance of Business Environment)
भारत के सन्दर्भ में व्यावसायिक पर्यावरण के महत्त्व को हम निम्न शब्दों में स्पष्ट कर सकते है-
(1) लक्ष्यों की प्राप्ति
पर्यावरण के प्रति सजग रहकर ही निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकती है। वास्तविकता तो यह है कि लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का निर्धारण भी व्यावसायिक पर्यावरण के अनुरूप किया जाना चाहिए तभी उनकी प्राप्ति सम्भव हो सकती है। पर्यावरण के विपरीत निर्धारित किये गये लक्ष्यों की प्राप्ति सदैव संदिग्ध बनी रहती है।
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(2) सरकार की नीतियाँ
सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न नीतियों का प्रभाव व्यवसाय पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। किसी भी देश की सरकार द्वारा घोषित औद्योगिक नीति, लाइसेन्स नीति, मौद्रिक नीति, आयात-निर्यात नीति, विदेश विनिमय नीति आदि का व्यवसाय पर प्रभाव पड़ता है। अतः प्रत्येक व्यापारी को सरकारी नीतियों पर नजर रखनी चाहिए और उसके आधार पर अपने व्यवसाय को संचालित करना चाहिए।
(3) विविधीकरण
पर्यावरण विश्लेषण से व्यवसाय के विविधीकरण में भी सहायता मिलती है। पर्यावरण विश्लेषण से यह पता चलता है कि किस क्षेत्र में विविधीकरण सम्भव है और किस क्षेत्र में अधिक समस्याएं हैं। भारत में अनेक कम्पनियों ने इस नीति को अपनाकर सफलता प्राप्त की है।
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(4) व्यवसाय का चलन हेतु
किसी संस्था या कम्पनी का क्या व्यवसाय होगा इसका निर्धारण बहुत कुछ अर्थव्यवस्था में मौजूद व्यावसायिक वातावरण पर निर्भर करता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में मौजूद व्यावसायिक वातावरण किसी कम्पनी के उद्देश्य तथा रणनीति को प्रभावित कर सकते है।
(5) खतरों के प्रति सतर्कता
व्यवसाय एक खुले वातावरण में कार्य करता है। विकास की तेज दौड़ ने भौगोलिक सीमाओं को गौण कर दिया है। अर्थव्यवस्थाओं में भी खुलापन आ रहा है। इस प्रकार हम देखते है कि खुले वातावरण व अर्थव्यवस्थाओं के खुलेपन से जहाँ एक ओर नये अवसर प्राप्त हुए है तो दूसरी ओर प्रतिपल नये खतरों, संकटो व समस्याओं के उत्पन्न हो जाने की आशंका बनी रहती है। आर्थिक नीतियों, माँग वृद्धि व कमी, उपभोग प्रवृत्ति, क्रय, प्राथमिकता वक्र, प्रतिस्पर्धा आदि में होने वाले परिवर्तन व्यावसायिक वातावरण का मूल्यांकन व अध्ययन करते रहना जरूरी होता है।
(6) व्यवसाय की समस्याओं व चुनौतियों की जानकारी
इससे पहले कि वातावरण की समस्याएँ एवं नयी-नयी चुनौतियां व्यवसाय के ऊपर हावी हो जायें, व्यवसाय के लिए जरूरी है कि इनकी पूरी जानकारी रखें तथा इनके समाधान व इनका मुकाबला करने की युक्तियों पर विचार करें। इसी मान्यता के आधार पर समय रहते हुए समस्याओं व चुनौतियों से निपटना जरूरी होता है और इसके लिए अध्ययन एवं विश्लेषण अत्यन्त आवश्यक है।
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(7) गतिशील व्यवहार के लिए
आन्तरिक वातावरण के साथ व्यवसाय के बाहरी वातावरण आर्थिक सामाजिक-राजनीतिक दशाओं एवं नवीन घटनाओं के प्रति जागरूक रहना व्यवसाय के लिए जरूरी होता है। व्यवसाय की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने को निरन्तर गतिशील व्यवहार करने की स्थिति में बनाये रखें।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के ज्ञान के लिए
अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण घरेलू व्यवसाय को भी प्रभावित करता है। अत: व्यवसाय की स्थिरता, प्रभावपूर्ण संचालन, गतिशीलता आदि के लिए यह जरूरी है कि अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, प्रभावों तथा दबावों का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन और विश्लेषण किया जाये।
(9) वैश्विक परिवर्तनों के प्रति सजगता
विश्व स्तर पर होने वाले परिवर्तनों के प्रति व्यावसायिक संगठनों की सजगता आवश्यक है। आयात-निर्यात नीति, तेल के मूल्यों में परिवर्तन, मुद्रा के मूल्यों में परिवर्तन आदि अनेक ऐसे तत्त्व है, जो संगठन के क्रिया-कलापों की काफी सीमा तक प्रभावित कर सकते है। उदाहरण के लिए – 1. माँग व पूर्ति के मध्य उचित साम्य की स्थापना की जा सकती है। 2. उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग किया जा सकता है। 3. उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि दी जा सकती है। 4. स्वामियों को अधिकतम लाभ उपलब्ध कराया जा सकता है। 5. सामाजिक व पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। 6. स्वयं के अस्तित्त्व की रक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
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