भूगोल / Geography

प्रदेश की परिभाषा तथा इसके प्रकार | Definition of region and its types in Hindi

प्रदेश की परिभाषा तथा इसके प्रकार | Definition of region and its types in Hindi
प्रदेश की परिभाषा तथा इसके प्रकार | Definition of region and its types in Hindi
प्रदेश को परिभाषित कीजिए तथा विभिन्न प्रकार के प्रदेशों की विवेचना कीजिए।

प्रदेश की परिभाषा – प्रदेश एक क्षेत्रीय ईकाई अन्तर्गत कुछ या अधिकांश भौगोलिक तत्वों या प्रकरणों (topics) की समानता या समांगता पायी जाती है। यह भूमि का एक खण्डं या क्षेत्रीय इकाई होता है जिसके अन्तर्गत विशिष्ट अथवा समान अभिलक्षण (unique or similar character) पाये जाते है और वह अपने विशिष्ट अभिलक्षणों द्वारा अन्य भूभागों से भिन्नता रखता है। प्रदेश की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

(क) फ्रांसीसी मानव भूगोल के संस्थापक वाइडल डी ला ब्लाश (Vidal de La Blache) के अनुसार, ‘प्रदेश का आशय एक ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से है जहाँ एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न जैविक इकाइयाँ कृत्रिम ढंग से वहाँ संग्रहीत किये जाने के पश्चात् स्थानीय पर्यावरण में परस्पर सह-अस्तित्व के फलस्वरूप परस्पर संयुक्त हो जाती है जिसके आधार पर सम्बद्ध क्षेत्र की अलग पहचान बन जाती है। “

(ख) ब्रिटिश भूगोलवेत्ता हरबर्टसन (A J. Herburtion) के अनुसार, “प्रदेश व भौगोलिक इकाई है जिसमें भूमि, जल, वायु, पशु पेड़-पौधे तथा मनुष्य क्षेत्रीय स्तर पर परस्पर इतने घनिष्ठ और विशिष्ट सम्बंध में संयुक्त हो गये है कि उनसे सम्पूर्ण की विलग तथा अनूठी पहचान बन गयी है।”

(ग) अमेरिकी भूगोलवेत्ता फेनेमैन (N.M. henomann) के अनुसार, “प्रदेश वह भौगोलिक इकाई है जिसमें सर्वत्र स्थलाकृतिक समांगता पायी जाती है और जो आस-पास से इस दृष्टि से सर्वथा भिन्न है। “

(घ) अमेरिकी भूगोलवेत्ता रिचर्ड हार्टशोर्न (Rechard Harshorm) क्षेत्रों के अनुसार, “प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी विशिष्ट स्थिति होती है जो किसी प्रकार से अन्य क्षेत्रों से भिन्न होता है और जो उतनी ही दूरी तक फैला होता है जितनी दूरी तक भिन्नता पायी जाती है। “

(ङ) प्रादेशिक भूगोल की प्रकृति, स्वरूप तथा उसकी प्रगति की समीक्षा करते हुए अमेरिकी भूगोलवेत्ता डी. ह्वीटलसी ने प्रदेश को इस प्रकार परिभाषित किया है,  “क्षेत्रीय समानता के आधार पर परिभाषित पृथ्वी की सतह (भूतल) के किसी भी प्रखण्ड को प्रदेश की संज्ञा दी जा सकती है। “

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एक प्रदेश भूतल (earth’s surplus) का एक प्रखण्ड या इकाई होता है जिसके अन्तर्गत विशिष्ट अथवा समान अभिलक्षण पाये जाते हैं। अपने विशिष्ट अभिलक्षणों के कारण एक प्रदेश अपने समीपवर्ती, संलग्न या अन्य क्षेत्रों से भिन्नता रखता है।

प्रादेशिक संकल्पना का विकास

प्राचीन यूनानी सभ्यता से ही क्षेत्रीय वर्णन भौगोलिक अध्ययन का महत्वपूर्ण विषय रहा है किन्तु आधुनिक भौगोलिक अध्ययन में प्रादेशिक पद्धति का आरंभ उन्नीसवीं शताब्दी आरंभिक दशक से हुआ। अठारहवीं शताब्दी के अंत तक भौगोलिक अध्ययन मुख्य रूप से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों की स्थिति निर्धारण तथा मानचित्र विधियों के विकास पर केन्द्रित था।

उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में आधुनिक भूगोल के संस्थापक दो जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने भूतल पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में स्थित विभिन्न प्रकार के तत्वों के पारस्परिक सह-अस्तित्व जनित भूदृश्य तथा क्षेत्रीय समग्रता के विश्लेषण हेतु सैद्धान्तिक आधार विकसित करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। हम्बोल्ट और रिटर के परवर्ती विद्वानों में जर्मन भूगोलवेत्ता रिचथोफेन का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

आधुनिक भूगोल के प्रदेशिक तथा क्षेत्रीय स्तर पर पृथ्वी के परिवर्तनशील स्वरूप के अध्ययन के लिए उसे लघु क्षेत्रीय इकाइयों में विभाजन की पद्धति सर्वप्रथम जर्मन भूगोलवेत्ता फर्डीनण्ड वान रिचथोफेन (1833-1905) ने 1883 में प्रतिपादित की थी। बाद में अमेरिकी विद्वान रिचर्ड हार्टशोर्न ने अपनी पुस्तक ‘नेचर आफ ज्योग्राफी’ (1939) के द्वारा अंग्रेजी भाषी देशों में इस पद्धति का व्यापक प्रचार किया। इस पुस्तक के प्रभाव से प्रादेशिक पद्धति शीघ्र ही भौगोलिक अध्ययन की सर्वमान्य पद्धति के रूप में स्थापित हो गयी। भौगोलिक अध्ययन में प्रादेशिक पद्धति के विकास में अल्फ्रेड हेटनर का महत्वपूर्ण योगदान है। हेटनर रिचथोफेन के सहयोगी और शिष्य थे। भौगोलिक चिन्तन की समीक्षा करते हुए हेटनर ने जोर देकर कहा कि भूगोल मूलतः पृथ्वी का क्षेत्रीय विज्ञान है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भूगोल भूतल की क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता पर केन्द्रित अध्ययन है। भूगोल यह जानने का प्रयास करता है कि पृथ्वी की भिन्न-भिन्न इकाइयाँ एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं? ‘भूगोल प्रत्येक क्षेत्रीय इकाई के सविस्तार अध्ययन के आधार पर विश्व स्तर पर पृथ्वी के तुलनात्मक अध्ययन का प्रयास करता है। अतः भूगोल एक साथ ही पृथ्वी का प्रादेशिक वर्णन भी है और उसका सामान्य (क्रमबद्ध) विज्ञान भी । परन्तु अध्ययन का उद्देश्य चाहे जो भी हो पृथ्वी के अलग-अलग क्षेत्रीय उपांगो के सविस्तार अध्ययन के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी तल का वर्णन अथवा पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के तत्वों के विश्व वितरण के प्रारूपों की तुलनात्मक व्याख्या के आधार पर पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह का क्रमबद्ध अध्ययन-दोनों ही स्थितियों में भौगोलिक अध्ययन का केन्द्र बिन्दु पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के तत्वों की परिवर्तनशील पारस्परिकता है। एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में भूगोल की यही मूल पहचान है। (आर.डी. दीक्षित, 2000)। “

प्रदेश के प्रकार

प्रादेशिक संकल्पना की विवेचना करते हुए अमेरिकी भूगोलवेत्ता डी० होटलसी (1956) ने बताया कि प्रदेश में कम से कम 16 प्रकरणों या विषयों (topics) का अध्ययन किया जाता हैं। प्रदेश के सीमांकन में इन्हीं विषयों का तत्वों को आधार बनाया गया है। ह्वीटलसी के अनुसार जितने भौगोलिक तत्व हैं उतने प्रकार के प्रदेश हो सकते हैं तथा उनके पारस्परिक सहाबंध के आधार पर भी प्रदेश की कल्पना की जा सकती है। इस प्रकार तत्वों के आधार पर प्रदेश की निम्नलिखित चार श्रेणियां हो सकती हैं-

(क) एक विषय प्रदेश- जब भूतल पर केवल एक ही तत्व के वितरण का अध्ययन किया जाता है तब उसकी वितरण सम्बंधी भिन्नता (क्षेत्रीय भिन्नता) के अनुसार विभिन्न प्रदेशों की कल्पना की जा सकती है। इस प्रकार तत्वों के आधार पर प्रदेश की निम्नलिखित विभिन्न प्रदेशों का जन्म होता है। ऐसे प्रदेश को एकल विषय प्रदेश कहते हैं जैसे मृदा प्रदेश, वर्षा प्रदेश, वनस्पति प्रदेश, भाषा प्रदेश आदि ।

(ख) बहुल विषय प्रदेश- जब किसी प्रदेश के सीमांकन का आधार एक तत्व नहीं बल्कि कई तत्व होते हैं तब ऐसे प्रदेश को बहुल विषय प्रदेश या संयुक्त प्रदेश (Composite regions) की संज्ञा दी जाती है। प्राकृतिक प्रदेश, आर्थिक प्रदेश, जलवायु प्रदेश आदि इसके दृष्टान्त हैं।

(ग) सम्पूर्ण विषय प्रदेश- यदि भूतल के किसी प्रदेश में समस्त तत्व (हिटलसी के अनुसार 16 तत्व) किसी दूसरे प्रदेश के उन (16) तत्वों से क्रमशः मेल खाते हैं तो ऐसे प्रदेश को सम्पूर्ण विषय प्रदेश कहा जाता है। ऐसे प्रदेश बहुत कम मिलते हैं।

(घ) कम्पेज-कम्पेज ऐसे प्रदेश को कहते हैं जो कई तत्वों से मिलकर बनता है किन्तु इसमें तत्वों का महत्व-क्रम आवश्यक नहीं होता है। आवश्यक क्रम के तत्वों की संख्या परिवर्तनीय होती हैं कम्पेज के निर्धारण में जिस तत्व की आवश्यकता होती है या जो तत्व महत्वपूर्ण होता है उसे सम्मिलित किया जाता है तथा अनावश्यक तत्वों को छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार कम्पेज में सभी तत्वों का महत्व समान नहीं होता है। अतः प्रत्येक तत्व का वर्णन महत्व के क्रमानुसार किया जाता है। यही कारण है कि इमें व्यक्तिनिष्ठता बहुत अधिक पायी जाती है क्योंकि कम्पेज तथा उसकी सीमाएं विभिन्न व्यक्तियों के अनुसार बदलती रहती हैं। कम्पेज बहुत विषय प्रदेश और सम्पूर्ण विषय प्रदेश के मध्य की दशा है जिसमें अध्ययन तत्वों (विषयों) की संख्या घटती-बढ़ती रहती है तथा उनके महत्व क्रम भी बदलते रहते हैं।

अमेरिकी भूगोलवेत्ता संघ द्वारा डी. ह्वीटलसी के नेतृत्व में गठित समिति ने प्रादेशिक संकल्पना की विस्तृत विवेचना करते हुए समस्त प्रकार की प्रादेशिक इकाइयों को दो बृहत् समूहों में विभक्त किया-

(1) लाक्षणिक या समरूप प्रदेश और

(2) कार्यात्मक या केन्द्रीय प्रदेश (total topics region) ।

लाक्षणिक या समरूप प्रदेश का सीमांकन चुने गये तत्वों या सम्बंधों के आधार पर किया जाता है, अतः इसके अन्तर्गत सीमित प्रकार की क्षेत्रीय समरूपता पायी जाती है, जैसे जलवायु प्रदेश, मृदा प्रदेश, कृषि प्रदेश आदि। इसके विपरीत कार्यात्मक या केन्द्रीय प्रदेश का सीमांकन स्थानीय स्तर या विद्यमान कार्यात्मक संबन्धों के आधार पर किया जाता है। नगर प्रदेश इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।

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