व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Business Environment)
व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ- एक व्यावसायिक संगठन का अस्तित्त्व शून्य में नहीं होता। इसका अस्तित्त्व स्थायी स्थानों, वस्तुओं, प्राकृतिक साधनों तथा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों एवं जीवित व्यक्तियों से निर्मित होता है। इन सब तत्त्वों एवं शक्तियों के योग को ही व्यावसायिक पर्यावरण कहते है।
रिचमैन ग्लूक एवं कोपन के शब्दों में, “पर्यावरण में दबाव एवं नियन्त्रण होते हैं जो अधिकांशतः वैयक्तिक फर्म एवं इसके प्रबन्धकों के नियन्त्रण के बाहर होते हैं।”
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विलियम ग्लूक एवं जॉक के शब्दों में, “व्यावसायिक परिदृष्य में फर्म के बाहर के घटक शमिल किये जाते है जो फर्म के लिए अवसर एवं खतरें उत्पन्न करते हैं। “
वीमर के शब्दों में, “व्यावसायिक पर्यावरण में वह परिदृश्य अथवा उन आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अथवा संस्थागत दशाओं का समूह सम्मिलित है जिसके अर्न्तगत व्यावसायिक क्रिया-कलापों का संचालन किया जाता है। “
व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा
“व्यावसायिक पर्यावरण को बाह्य घटकों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक, सरकारी, वैधानिक, जनांकिकीय एवं प्राकृतिक घटकों को शामिल किया जाता है। इन घटकों को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है. तथा वे एक फर्म के व्यावसायिक निर्णय को प्रभावित करते हैं। “
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व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करने वाले घटक / तत्त्व / प्रकृति (Componets or Nature)
1, तकनीकि घटक
औद्योगिक क्रान्ति के बाद से व्यावसायिक क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ उत्पादन प्रक्रिया में भी निरन्तर परिवर्तन और प्रगति हो रही है। अनेक देश अपनी सुविधानुसार तकनीकि ज्ञान का आयात भी कर रहे है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्रबन्धकीय तकनीक एवं ज्ञान का उत्पादन प्रक्रिया पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
2. नैतिक घटक
व्यवसाय को समाज के नैतिक स्तरों का पालन करना होता है। जटिल व्यावसायिक परिवेश में नैतिक सिद्धान्त एवं संहिताएँ प्रबन्धकों के व्यवहार का मार्गदर्शन करती है। विश्व के सफलतम राष्ट्रों-जापान, जर्मनी, अमेरिका ने व्यावसायिक नीतिशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर ही अर्न्तरा ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में सफलताएँ प्राप्त की है। नैतिक मापदण्डों एवं आदर्शों का ध्यान में रखकर ही व्यवसाय के साधनों तथा साध्यों का निर्धारण होता है।
3. आर्थिक घटक
व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करने वाले तत्त्वो में आर्थिक तत्त्वों का अपना विशेष स्थान है, जैसे- प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय, सहायक एवं पूरक उद्योग, परिवहन एवं संचार व्यवस्था एवं बिजली की सुलभ मात्रा आदि। सामाजिक संस्थाओं द्वारा निर्मित वस्तुओं पर व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय आय का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि प्रति व्यक्ति आय अधिक होगी तो नागरिक समृद्ध होंगे और अधिक वस्तुओं का उपभोग कर अपना जीवन स्तर ऊँचा बना सकते है। जिस प्रकार के उद्योग धन्धों की आवश्यकता हो, उस देश में उसी प्रकार के उद्योग-धन्धे लगाये जाने चाहिए।
4. प्राकृतिक घटक
व्यवसाय संचालन प्राकृतिक तत्त्वों से भी प्रभावित होता है, जैसे जलवायु, भू-रचना, वन सम्पदा आदि। टापुओं पर मछली पकड़ने का काम सुविधापूर्वक हो सकता है, पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन, पशुपालन एवं वन उद्योग आधिक पनप सकते है। ठण्डे देशों में गरम कपड़े का उद्योग, गरम देशों में सूती कपड़े का उद्योग और मैदानी भागों में कृषि उद्योग अधिक पनप सकता है। चीनी की मिलें उन्हीं स्थानों पर अधिक लगायी जा सकती है जहाँ गन्ने की पर्याप्त खेती होती है।
5. सामाजिक घटक
व्यावसायिक वातावरण पर सामाजिक, रीति-रिवाज, शिक्षा का स्तर, सामान्य विचार और धार्मिक विश्वास का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में आज भी अनेक ऐसे उदाहरण है, जिनमें लोग कम आय गुजर करना पसन्द करते है, लेकिन में अपना गाँव छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाना अधिक पसन्द नहीं करते। संयुक्त परिवार प्रथा में कुछ लोग अधिक परिश्रम करते हैं, और कुछ लोग कम परिश्रम करते हैं, लेकिन सब मिलकर काम करते हैं। सभी देशों की परिस्थितियाँ अलग-अलग होती है। इसलिए कहीं शिक्षा का प्रचार अधिक होता है, कहीं तकनीकी ज्ञान अधिक है और कहीं अन्य सुविधाएँ अधिक है।
6. राजनीतिक घटक
किसी देश के राजनीति तत्त्व देश में शान्ति व्यवस्था बनाये रखते हैं, बाहरी आक्रमणों से देश को सुरक्षा प्रदान करते हैं और व्यावसायिक क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप की सीमा भी निर्धारित करते हैं। व्यवसाय के निरन्तर विकास के लिए देश में अमन चैन होना आवश्यक हैं। यदि देश में दंगे, लूटपाट, चोरी-डाका और आतंकवादी गतिविधियाँ सक्रिय होंगी तो उस देश का व्यापार अधिक उन्नति नहीं कर सकता और यदि यह कहा जाय कि चौपट हो जायेगा तो भी गलत नहीं है।
7. सांस्कृति घटक
बाजार एवं माँग को प्रभावित करके ही राष्ट्र की संस्कृति व्यवसायियों के निर्णय को प्रभावित करती है। सम्पूर्ण विश्व में बढ़ रहे नारी स्वतन्त्रता आन्दोलन, औषध-संस्कृति, युवा केन्द्रित समाज, हिप्पीवाद आदि सांस्कृतिक मूल्य व्यावसायिक नीतियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते रहे है।
8. जनसांख्यिक घटक
जनसांख्यिक तत्त्वों में अग्रलिखित बातें शामिल हैं (1) आकार वृद्धि दर, आयु संरचना, लिंग संरचना (2) परिवार का आकार (3) जनसंख्या का आर्थिक स्तरीकरण। (4) शिक्षा का स्तर (5) जाति, धर्म इत्यादि।
ये सभी जनसांख्यिक तत्त्व व्यापार से सम्बन्धित हैं तथा ये सेवाओं तथा वस्तुओं की आपूर्ति पूरी करते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या और आय के कारण बाजार में बहुत सी वस्तुओं के लिए माँग भी बढ़ जाती है। ऊँची जनसंख्या दर से आपूर्ति में वृद्धिक का भी पता लगता है। सस्ती श्रम शक्ति तथा विकसित होते बाजारों ने बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को विकासशील देशों में धन निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
यदि भिन्न-भिन्न व्यवसायों तथा क्षेत्रों में श्रम-शक्ति गतिशील रहती है तो इसकी आपूर्ति अपेक्षाकृत अच्छी होती है और इससे मजदूरी पर प्रभाव पड़ता है। यदि जिस स्थान पर उत्पादन हो रहा हों वहाँ के लिए श्रमिक बाहर से बुलाये गये हों तो उनकी भाषा, जाति व धर्म इत्यादि मामले में आपसी तालमेल बिठाना बहुत ही कठिन हो सकता है। जनसंख्या की विविध रूचियों, वरीयताओं, विश्वासों इत्यादि ने विभिन्न माँग के तरीकों तथा विभिन्न मार्केटिंग योजनाओं को जन्म दिया है।
9. अन्तर्राष्ट्रीय घटक
अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व बनकर उभर रहा है तथा विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण पर इसका प्रभाव यहाँ प्रस्तुत है। अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के कुछ तत्त्व निम्नलिखित है-
(1) उदारीकरण के कारण भारतीय कम्पनियों को विवश होकर व्यापार सम्बन्धी मुद्दों को विश्व स्तर पर सोचना पड़ रहा है।
(2) अब सुरक्षित और संरक्षित बाजार समाप्त हो गये है। संचार एवं यातायात की ओं के तेजी से बढ़ते जा रहे माध्यमों के कारण विश्व आकार में बहुत छोटा हो गया है। (3) प्रत्येक बिजनेस प्रबन्धक के लिए विदेशी भाषा सीखना आवश्यक हो गया है।
(4) विदेशी मुद्रा से परिचित होना भी आवश्यक हो गया है।
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