भारत में राष्ट्रीय एकता के मार्ग में आने वाली बाधा | Obstacles in the way of national integration in India in Hindi
भारत में राष्ट्रीय एकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को बताइये।
हमारे देश में राष्ट्रीय एकता के मार्ग में निम्नलिखित प्रमुख बाधायें हैं-
1. जातिवाद (Casteism) – भारत में जातिवाद का बहुत प्रभाव है। जातिवाद से प्रभावित होकर एक जाति के लोग दूसरी जातियों के लोगों से वैमनस्य या पृथक्ता जैसा व्यवहार करने लगते हैं। जातिवाद के प्रभाव से जब व्यक्ति राष्ट्रीय हितों की तुलना में अपने जातीय हितों को प्रमुखता देने लगता है, तब राष्ट्रीय एकता को भयंकर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
2. प्रान्तीयता (Provincialism) – व्यक्ति को अपने देश से प्रेम करना चाहिये न कि केवल अपने प्रान्त से। आज देश के अनेक प्रांत ऐसे हैं जहाँ की जनता अनेक-विवाद पर ही कटने-मरने का तैयार हो जाती है। काश्मीर, पंजाब व आसाम में संकीर्णतावादियों के अनेक समूहों ने आतंकवाद का आश्रय ग्रहण कर एक प्रभुता-सत्तासम्पन्न स्वतन्त्र राज्य की माँग को लेकर केन्द्र सरकार को ही चुनौती दे रखी है। इन आतंकवादियों की गतिविधियों से हमारी समूची राष्ट्रीय एकता खतरे में
3. साम्प्रदायिकता (Communalism) – हमारे देश में राष्ट्रीय एकता को साम्प्रदायिकता से सबसे बड़ा खतरा है। भारत में अनेक सम्प्रदाय हैं जैसे- हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध इत्यादि। इसमें से भी हिन्दू अनेक सम्प्रदायों व उप-सम्प्रदायों में बँटे हुए हैं। ये सभी सम्प्रदाय, विशेष रूप से हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदाय और हिन्दुओं में भी सवर्ण और हरिजन सम्प्रदाय अनेक स्थानों पर एक-दूसरे के प्रति वैर भाव रखते है। हमारे यहाँ आये दिन साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं और इन दंगों में हजारों निर्दोष लोगों को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ती है। राष्ट्रीय एकता के लिये आवश्यक है कि ये साम्प्रदायिक दंगे समाप्त हों तथा विभिन्न साम्प्रदायों के बीच आपसी प्रेम व भाई-चारे को बढ़ावा मिले।
4. राजनीतिक दल (Political Parties)- लोकतन्त्र में विभिन्न विचारधाराओं और आदर्शों वाले राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है, इनसे ही राजनीतिक चेतना का विकास एवं जनमत का निर्माण 1 होता है। लेकिन हमारे देश में ऐसे दलों की संख्या कम है जो राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हों। अधिकांश दल तो जाति, भाषा, धर्म, एवं सम्प्रदाय के आधार पर राष्ट्र को बाँटने का ही कार्य कर रहे हैं। अतः जब तक राजनीतिक दलों का निर्माण राष्ट्र के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर नहीं होगा, राष्ट्रीय एकता के अस्तित्त्व को खतरा बना रहेगा।
5. विभिन्न भाषायें (Diverse Languages)- हमारे देश में अनेक भाषायें बोली जाती हैं। प्रायः हमारे देशवासी केवल अपनी भाषा को महत्त्व देते हैं तथा अन्य भाषाओं के प्रति उपेक्षा तथा घृणा का. दृष्टिकोण रखते हैं। अतः जब तक हम एक राष्ट्र भाषा स्वीकार नहीं करेंगे, हम एक-दूसरे से परस्पर विचार-विनिमय नहीं कर सकेंगे। दक्षिण भारत के कुछ प्रदेशों का हिन्दी के प्रति विरोध हमारे भाषा सम्बन्धी वैमनस्य का एक प्रमुख उदाहरण है।
6. आर्थिक विभिन्नता (Economic Difference) – हमारे देश में मुट्ठी भर लोग तो धनवान हैं और अधिकांश जनता निर्धन है। लगभग पचास प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करते हैं। बड़े पैमाने पर बढ़ती गरीबी तथा कुछ लोगों की अमीरी का परिणाम यह हुआ है कि यहाँ गरीब अमीर से तथा अमीर गरीब से घृणा करता है। वस्तुतः जब तक देश में यह गरीबी और अमीरी के बीच खाई रहेगी, पूर्ण राष्ट्रीय एकता का सपना साकार नहीं हो सकता।
7. नेतृत्व का अभाव (Lack of Leadership) – लोकतन्त्र की सफलता के लिये आवश्यक है कि देश का नेतृत्व कुशल एवं योग्य हाथों में हो। भाई-भतीजावाद, धन और राजनीति के अपराधीकरण
8. अनुचित शिक्षा (Unsuitable Education)– हमारे देश में शिक्षा को राज्य का विषय माना जाता है। इसलिये यहाँ प्रत्येक राज्य अपनी आवश्यकताओं तथा सामर्थ्य के अनुसार ही शिक्षा व्यवस्था करता है। इससे अनेक दोष उत्पन्न हो गये हैं जैसे बालकों की भावनाओं का अपने प्रदेश तक ही सीमित हो जाना तथा शिक्षकों के वेतनमानों में भारी असमानता। सच्ची राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के लिये शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन करना आवश्यक है।
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