भूगोल / Geography

प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार | Criteria of Delimitation of Natural Regions in Hindi

प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार | Criteria of Delimitation of Natural Regions in Hindi
प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार | Criteria of Delimitation of Natural Regions in Hindi

विश्व को प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किसी एक की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

विश्व के प्राकृतिक प्रदेशों के निर्धारण का प्रथम महत्वपूर्ण प्रयास ब्रिटिश भूगोलवेत्ता ए.जे. हरबर्टसन ने 1905 में किया था। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हरबर्टसन विश्व के प्रमुख प्राकृतिक प्रदेशों के निर्धारक के रूप में विख्यात हैं उन्होंने 1904 में य जियोग्राफिकल सोसाइटी के सम्मुख विश्व के प्राकृतिक प्रदेशों के विषय में एक शोध पत्र पढ़ा था जिसका प्रकाशन अगले वर्ष (1905) ‘जिओग्राफिकल रिविव’ नामक प्रतिष्ठित भौगोलिक पत्रिका में हुआ। इस लेख का शीर्षक था (Major Natural Regions: An Essay in Systematic Geography’) (बृहत् प्राकृतिक प्रदेश क्रमबद्ध भूगोल में एक निबंध)। हरबर्टसन ने प्राकृतिक प्रदेश को भौगोलिक अध्ययन की इकाई मानने पर बल दिया। उनके विचार से किसी प्राकृतिक प्रदेश के अजैविक तत्वों और जैविक तत्वों (वनस्पति तथा जीव जन्तु) में निश्चित साहचर्य पाया जाता है जिसका स्पष्टीकरण प्राकृतिक वनस्पतियों तथा जीव-जन्तुओं की नियमित पारिस्थितिकी के रूप में होता है। हरबर्टसन ने यह भी बताया कि प्राकृतिक प्रदेश निरपेक्ष या पूर्ण प्रदेश नहीं बल्कि सापेक्ष प्रदेश होते हैं हरबर्टसन ने विश्व के प्राकृतिक प्रदेशों का निर्धारण मूलतः प्राकृतिक वनस्पति के आधार पर किया किन्तु उनका विश्वास था कि एक प्राकृतिक प्रदेश के अंतर्गत भूतल की संरचना, भूविन्यास या उच्चावच, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति तथा जन्तु जगत की सामान्य (स्थूल) समरूपता पायी जाती है।

प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार

प्राकृतिक प्रदेशों का सीमांकन समान प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है। प्राकृतिक तत्व में जलवायु सर्वशक्तिशाली होती है जिस पर अक्षांशीय तथा धरातलीय स्थिति का महत्वपूर्ण प्रभाव पाया जाता हैं जलवायु का मिट्टी तथा प्राकृतिक वनस्पति एवं जन्तु जगत् पर प्रभाव ही नहीं बल्कि नियंत्रण भी देखने को मिलता हैं इस प्रकार यदि जलवायु को प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन का मुख्य आधार मान लिया जाए तो भी इनके सीमांकन में अन्य सम्बंधित तत्वों का सहारा लिया जा सकता है।

(क) अक्षांशीय एवं महाद्वीपीय स्थिति- प्राकृतिक प्रदेशों के निर्धारण में अक्षांशीय स्थिति तथा महाद्वीपीय स्थिति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राकृतिक प्रदेशों के निर्धारण के प्रमुख तत्व जलवायु के निर्धारण में अक्षांशीय स्थिति सर्वप्रमुख होती है और महाद्वीपीय स्थिति सहायक कारक के रूप में कार्य करती है। यही कारण है कि प्राकृतिक प्रदेश, जलवायु प्रदेश, प्राकृतिक वनस्पति प्रदेश आदि अक्षांशों का अनुकरण करते हैं और उनका विस्तार पूर्व-पश्चिमी दिशा में मिलता है। टुण्ड्रा प्रदेश, टैगा प्रदेश, भूमध्य रेखीय प्रदेश आदि इनके दृष्टांत हैं।

महाद्वीपीय स्थिति का आशय महासागर की तटीय स्थिति, अंतःमहाद्वीपीय स्थिति, द्वीपीय स्थिति आदि से है। महाद्वीपीय स्थिति के अनुसार प्राकृतिक पर्यावरण (जलवायु, प्रा०वनस्पति आदि) में पर्याप्त भिन्नता है जो भिन्न प्राकृतिक प्रदेशों को जन्म देते हैं। समान अक्षांशीय स्थिति में महाद्वीपीय स्थिति के कारण भिन्न प्राकृतिक प्रदेश उत्पन्न होते हैं।

(ख) जलवायु- जलवायु प्राकृतिक पर्यावरण कारक है। तापमान, आर्द्रता एवं वर्षा, प्रचलित पवनें तथा परिवर्तितता जलवायु के प्रमुख तत्व हैं जो भौतिक तथा जैविक क्रियाशीलता के नियंत्रित करते हैं। इन्हीं जलवायविक तत्वों के सम्मिलित प्रभाव से ही किसी प्रदेश की वनस्पति तथा जीवमंडल का निर्धारण होता है। यही कारण है कि विश्व के विभिन्न प्रदेश जलवायु प्रदेशों का ही अनुसरण करते हैं और प्राकृतिक का नामकरण अभिकांशतः जलवायु दशाओं के अनुसार ही किया जाता है। मृदा प्रकार तथा वनस्पतियों के प्रकार के निर्धारण में जलवायु की प्रमुख भूमिका होती है। प्राकृतिक दशाओं के साथ ही मनुष्य के स्वास्थ्य, निवास, व्यवसाय तथा क्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारकों में जलवायु का महत्व सर्वोपरि हैं फसलों की किस्म, उत्पादन विधि, उत्पादन आदि पर जलवायु का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है। उष्णार्द्र भूमध्य रेखीय प्रदेश, उष्ण मानसूनी प्रदेश, उष्ण मरुस्थालीय प्रदेश, भूमध्य सागरीय प्रदेश टैगा प्रदेश, टुण्ड्रा प्रदेश आदि का सीमांकन मुख्यतः जलवायु दशाओं के आधार पर ही किया जाता है।

(ग) प्राकृतिक वनस्पति- प्राकृतिक वनस्पति पर मुख्यतः जलवायु और मिट्टी का प्रभाव पाया जाता है। इस पर जलवायु के प्रभाव इतना अधिक होता है कि यह जलवायु की सहचरी बन जाती है। सामान्यतः समान प्रकार के जलवायु प्रदेश में समान प्रकार की वनस्पतियों का विकास होता है। प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत वृक्ष, झाड़ियां, घासें, शैवाल, लाइकेन या लिचेन सभी समाहित होते हैं पर्यावरणीय संतुलन में सर्वाधिक योगदान पेड़-पौधों का ही होता है। इतना ही नहीं, विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले मनुष्य के भोजन, वस्त्र, आश्रय (गृह) आदि अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय रूप से प्राप्त पेड़-पौधों से ही होती है। मनुष्य के विभिन्न प्रकार के व्यवसायों जैसे कृषि, पशुपालन या पशुचारण, आखेल, विनिर्माण उद्योग आदि का निर्धारण भी प्रादेशिक वानस्पतिक प्रकारों द्वारा ही होता है। इस प्रकार विश्व के प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन में प्राकृतिक वनस्पति को उपयुक्त मापदण्ड के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

विश्व के बृहत् प्राकृतिक प्रदेश

विश्व के प्राकृतिक प्रदेशों का निर्धारण सर्वप्रथम 1905 में ब्रिटिश भूगोलवेत्ता ए० जे० हरबर्टसन ने किया था। उन्होंने अपने वर्गीकरण में प्राकृतिक को प्रमुख मापदण्ड स्वीकार किया था। यद्यपि परवर्ती वर्षों में प्रदेशों के सीमांकन एवं व्याख्या हरबर्टसन के आधार पर बताए गये ढंग से सरलतापूर्वक की जा सकती है। हरबर्टसन ने विश्व को कुल 15 बृहत् 15 प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया था।

प्राकृतिक प्रदेशों की संख्या तथा उनके क्षेत्रीय विस्तार के विषय में भूगोलवेत्ताओं में मतान्तर भी देखें जाते हैं। अतः यहाँ सामान्य रूप से मान्य वर्गीकरण को ही प्रयुक्त किया गया है। इस प्रकार विश्व के बृहत् प्राकृतिक प्रदेश निम्नलिखित हैं:

(क) उष्ण कटिबंधीय प्रदेश

  1. भूमध्य रेखीय प्रदेश
  2. सवाना प्रदेश या सूडान तुल्य प्रदेश
  3. उष्ण मानसूनी प्रदेश
  4. उष्ण मरुस्थलीय या सहारा तुल्य प्रदेश

(ख) गर्म शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेश

  1. भूमध्यसागरीय प्रदेश
  2. शीतोषण मरुस्थलीय प्रदेश
  3. चीन तुल्य प्रदेश

(ग) शीत शीतोष्ण प्रदेश

  1. पश्चिम यूरोप तुल्य प्रदेश
  2. प्रयेरी तुल्य प्रदेश
  3. सेन्ट लारेन्स तुल्य प्रदेश

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