कर्मोपलक्षी एवं कार्यात्मक प्रदेशों में विभेद स्पष्ट कीजिए ।
कर्मोपलक्षी प्रदेश इसे केन्द्रीकृत प्रदेश भी कहा जाता है। एक प्रकार्यात्मक प्रदेश के अन्तर्गत कार्यात्मक संगठन की एकरूपता पायी जाती है। इस प्रकार के प्रदेशों में केन्द्रीयता की उपस्थिति अनिवार्य होती है और ऐसे प्रदेश का विस्तार प्रायः एक केन्द्रीय स्थिति के चारों ओर पाया जाता है। इसे केन्द्रीकृत या केन्द्र आधारित या संगठनात्मक प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। नगर प्रदेश या नगरीय प्रभाव क्षेत्र, बाजार क्षेत्र, बन्दरगाहों के पृष्ठप्रदेश आदि प्रकार्यात्मक प्रदेश के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। सामान्यतः किसी केन्द्रस्थल, नगर, समुद्रपत्तन और उनके आस-पास के क्षेत्रों के घनिष्ठ कार्यात्मक सम्बंध पाये जाते हैं और पूरा प्रदेश प्रकार्यात्मक रूप से परस्पर निर्भर और अन्तर्संबंधित होता है।
किसी नगर (या केन्द्र स्थल) के चारों ओर स्थित क्षेत्र जो उससे कार्यात्मक रूप से संबंधित होता है उसे नगर का प्रभाव क्षेत्र या अमलैण्ड कहते हैं। कोई भी नगर अपनी प्रशासनिक सीमा के भीतर आत्मनिर्भर प्रकार की क्षेत्रीय इकाई नहीं है बल्कि इसका अपने चारों सिति ग्रामीण क्षेत्रों से विविध प्रकार के कार्यात्मक सम्बंध होते हैं। किसी विस्तृत क्षेत्र में नगर की केन्द्रीय स्थित होती है और उसके चतुर्दिक फैले हुए क्षेत्रों पर नगर की विविध आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्रिया-कलापों का प्रभाव पाया जाता है। नगर अपनी विविध आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने चारों ओरव्याप्त समीपवर्ती क्षेत्रों पर निर्भर होता है। इन बाह्य क्षेत्रों से नगर को खाद्य सामग्रियों जैसे अन्न, दूध, शाक-सब्जी, फूल, फल आदि तथा अनेक औद्योगिक कच्चे माल प्राप्त होते हैं नगर में काम करने वाले श्रमिकों की आपूर्ति भी इन्हीं क्षेत्रों (प्रभाव क्षेत्रों) से होती है। इस प्रकार नगर अपने समीपवर्ती क्षेत्रों से विविध प्रकार की वस्तुएँ एवं सेवाएं प्राप्त करता है और उनके दबले में अनेक प्रकार की विनिर्मित वस्तुएं तथा सेवाएं अर्पित करता है। नगर विविध प्रकार की सेवाओं के केन्द्र होते हैं। समीपवर्ती नगरीय प्रभाव क्षेत्र के लोग चिकित्सा, शिक्षा, व्यापार, प्रशासन, मनोरंजन आदि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उस नगर पर ही निर्भर करते हैं। किसी नगर का प्रभाव क्षेत्र भौतिक रूप से उससे जुड़ा हुआ होता है। इस प्रकार नगर या केन्द्रस्थल तथा उसके प्रभाव क्षेत्र (परिक्षेत्र) के मध्य परस्पर निर्भरता पायी जाती है और सम्पूर्ण प्रदेश कार्यात्मक रूप से अन्तर्संबंधित होता है।
कार्यात्मक प्रदेश
विश्व के सभी भागों में समान प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ नहीं पायी जाती हैं, बल्कि इसके विभिन्न भागों में उपलब्ध संसाधन आधारन, प्रौद्योगिकीय विकास, आर्थिक स्तर, अवसंरचना आदि के अनुसार विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं वाले विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र पाये जाते हैं उदाहरण के लिए घास के मैदानों में जहाँ कृषि फसलों के उत्पादन के लिए पर्याप्त वर्षा (आर्द्रता) तथा उपजाऊ मिट्टी का अभाव पाया जाता है, वहाँ पशुचारण ही प्रमुख आर्थिक व्यवसाय पाया जाता है। उपजाऊ मिट्टी तथा पर्याप्त वर्षा वाले मैदान भागों में प्रायः कृषि की प्रमुखता पायी जाती है। उच्च प्रौद्योगिकी तथा औद्योगिक कच्ची सामग्रियों एवं शक्ति संसाधनों से सम्पन्न देशों में औद्योगिकरण तथा नगरीकरण का उच्च विकास पाया जाता है। उष्ण मरुस्थल तथा टुण्ड्रा प्रदेश में मानव विकास के लिए विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आर्थिक भूदृश्य का विकास अत्यल्प या नगण्य पाया जाता है।
किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्वरूप को जानने के लिए उसकी कुल जनसंख्या या कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न क्रियात्मक वर्गों प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक में प्रतिशत वितरण ज्ञात किया जाता है। कृषि प्रधान क्षेत्रों में आधी से अधिक जनसंख्या विविध कृषि कार्यों में संलग्न होती हैं उद्योग प्रधान अर्थव्यवस्था में अधिकांश (50 प्रतिशत से अधिक) लोग उद्योगों तथा तृतीयक क्रियाओं में लगे होते हैं। विभिन्न क्रियात्मक वर्गों में जनसंख्या का संलग्नता प्रतिशत के आधार पर आर्थिक विकास के स्तर एक स्वरूप का और अन्ततः आर्थिक भूदृश्य का निर्धारण किया जा सकता है।
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