प्रादेशिक तथा क्रमबद्ध उपागम
भौगोलिक अध्ययन के इस उपागम के अन्तर्गत अध्ययन क्षेत्र को एक पूर्ण इकाई मानकर उसके विभिन्न भौगोलिक तत्वों या प्रकरणों का क्रमिक रूप से अध्ययन किया जाता है। इसे विषयगत उपागम के नाम से भी जाना जाता हैं। क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन क्षेत्र की स्थिति एवं विस्तार, उच्चवच, संरचना, अपवाह, जलवायु, जलाशय, मिट्टी एवं खनिज, प्राकृतिक वनस्पति, जीवजन्तु आदि प्राकृतिक तत्वों तथा विविध मानवीय क्रियाओं-आखेल, पशुपालन, कृषि, खनन, विनिर्माण उद्योग, व्यापार, परिवहन, विविध सेवाओं आदि के साथ ही जनसंख्या, मानव अधिवास आदि का क्रमशः अध्ययन किया जाता है। क्रमबद्ध विधि से किसी पूर्ण क्षेत्रीय इकाई के अन्तर्गत किसी भी एक विषय या विषय समूह का भी क्रमबद्ध अध्ययन किया जा सकता है। क्रमबद्ध भूगोल की मौलिक विशेषता यह है कि यह विषय या प्रकरण प्रधान होता है। क्रमबद्ध रीति से भौगोलिक अध्ययन के लिए लघु, मध्यम अथवा दीर्घ किसी भी क्षेत्रीय इकाई का चयन आवश्यकता एवं सुविधानुसार किया जा सकता है क्योंकि इस उपागम पर सामान्यतः क्षेत्रीय इकाई की मापनी का कोई विशिष्ट प्रभाव नहीं होता है। भौगोलिक अध्ययन का क्षेत्र सम्पूर्ण भूमंडल (विश्व), महाद्वीप, देश अथवा कोई अन्य क्षेत्रीय इकाई हो सकता है किन्तु अध्ययन की विधि क्रमबद्ध ही होनी चाहिए। इसे उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) प्रादेशिक भूगोल
यह भौगोलिक अध्ययन का एक प्रमुख उपागम (अध्ययन विधि) है जिसमें किसी सम्पूर्ण क्षेत्रीय इकाई के विभिन्न खण्डों या प्रदेशों का अध्ययन पृथक-पृथक किया जाता है। यह प्रदेशों (उपविभागों) का भूगोल है। उदाहरणार्थ, जब विश्व को विभिन्न प्रदेशों में विभक्त करके उनका अलग-अलग भौगोलिक अध्ययन किया जाता है, तब वह विश्व का प्रादेशिक भूगोल कहलाता है। इसी प्रकार महाद्वीप यथा एशिया का भौगोलिक अध्ययन उसके विभिन्न प्रदेशों के अनुसार किये जाने पर वह एशिया का प्रादेशिक भूगोल होता है। सम्पूर्ण भारत को एक इकाई मानकर उसके विभिन्न उत्पादनों का क्रमशः अध्ययन प्रदेशों के अनुसार किया जाता है तब उसे भारत का प्रादेशिक भूगोल कहते हैं। प्रादेशिक अध्ययन प्रदेशों के अनुसार किया जाता है, अतः प्रदेश के विषय में सम्यक ज्ञान भी आवश्यक होता है।
‘प्रदेश’ एक क्षेत्रीय इकाई होता है जिसके अन्तर्गत कुछ या अधिकांश भौगोलिक उपादानों (विषयों) की समानता पायी जाती है।
हार्टशोर्न के शब्दों में “प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी विशिष्ट स्थिति होती है जो किसी प्रकार से दूसरे क्षेत्रों से भिन्न होता है तथा जो उतनी ही दूरी तक फैला होता है जितनी दूरी तक वह भिन्नता पायी जाती है।” मंकहाउस (भौगोलिक शब्दकोश) के अनुसार, “पृथ्वी तल का वह इकाई क्षेत्र जो अपने विशिष्ट अभिलक्षणों के कारण अपने समीपवर्ती अन्य इकाई क्षेत्रों से भित्र समझा जाता है, प्रदेश कहलाता है। “
प्रदेश का निर्धारण (सीमांकन) किसी एक उपादान (विषय), अथवा बहु उपादानों समानता (समांगता) के आधार पर किया जा सकता है। इस आधार पर प्रदेश के चार वर्ग बन सकते हैं-
1. एकल विषयी प्रदेश जिसका निर्धारण किसी एक उपादान की समानता के आधार पर किया जाता है जैसे मृदा प्रदेश, कृषि प्रदेश आदि।
2. बहुल विषयी प्रदेश जिसका निर्धारण कई संयुक्त तत्वों की समानता के आधार पर किया जाता है जैसे प्राकृतिक प्रदेश, आर्थिक प्रदेश, सांस्कृतिक प्रदेश आदि।
3. सम्पूर्ण विषयी प्रदेश उसे कहते हैं जिसके समस्त भौगोलिक उपादानों की समानता मिलती है। विभिन्न भूभागों में स्थित ऐसे प्रदेशों में सभी तत्वों में एकरूपता पायी जाती हैं।
4. विशिष्ट प्रदेश को डी० ह्वीटलसी ने कम्पेज की संज्ञा दी है।
भूगोल में क्रमबद्ध और प्रादेशिक विश्लेषण का औचित्य भौगोलिक अध्ययन में क्रमबद्ध विधि और प्रादेशिक विधि के द्विभाजन को समझने के लिए भौगोलिक तत्व की प्रकृति पर विचार करना आवश्यक है। भूतल पर स्थित विभिन्न भौगोलिक तत्वों में स्थानिक और अंतर्स्थानिक सम्बंध पाया जाता है। कुछ तत्व घनिष्ट और निकट रूप से सम्बन्धित होते हैं तो कुछ में अपेक्षाकृत दूरवर्ती सम्बंध पाया जाता है। दोनों विधियों द्वारा अध्ययन के कुछ महत्वपूर्ण तर्क निम्नलिखित हैं-
(क) उत्पत्ति एवं विकास की दृष्टि से अनेक तथ्य पूर्णतः अथवा अंशतः अंतर्सम्बन्धित होते हैं जबकि कुछ अधिक स्वतंत्र भी हो सकते हैं। प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, जीव जन्तु, कृषि उपज आदि का जलवायु से घनिष्ट सम्बंध होता है। इसी प्रकार मिट्टी और कृषि, प्राकृतिक वनस्पति और अर्थव्यवस्था आदि का सम्बंध अत्यंत निकट का होता है।
(ख) पृथ्वी के सभी क्षेत्रों में कुछ न कुछ सम्बंध अवश्य पाया जाता है चाहे वह निकट का हो अथवा दूर का। इसी प्रकार एक क्षेत्र की दशाएं दूसरे प्रदेश से अन्तर्सबंधित होती हैं। अधिकांश तथ्य क्षेत्रीय या स्थानीय सम्बन्धों पर अधिक निर्भर होते हैं। कुछ क्षेत्र अधिक आत्मनिर्भर होते हैं।
(ग) लघु के भौगोलिक विश्लेषण में कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है और बृहत् क्षेत्र के भौगोलिक विश्लेषण में हम प्रमुख विशेषताओं की स्थानिक भिन्नता का अध्ययन करते हैं। जहां एक ओर एक भूगोलवेत्ता समस्त विश्व के सम्बंध में ज्ञान प्राप्त करना चाहता है वहीं दूसरी ओर वह लघु क्षेत्र के विषय में विस्तृत जानकारी भी करना चाहता है।
(घ) अध्ययन की क्षेत्रीय इकाई छोटी या बड़ी जो भी हो, क्षेत्रीय भिन्नता एवं क्षेत्रीय सम्बन्ध के विषय में अपेक्षित ज्ञान आवश्यक होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति क्रमबद्ध अध्ययनों के संकलन द्वारा नहीं बल्कि प्रादेशिक विधि द्वारा किया जा सकता है।
क्रमबद्ध एवं प्रादेशिक भूगोल के अंतर्सम्बंध
भौगोलिक अध्ययन की क्रमबद्ध विधि और प्रादेशिक विधि परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बंधित तथा एक दूसरे की पूरक हैं। अधिकांश भौगोलिक अध्ययनों में दोनों ही विधियाँ प्रयुक्त होती हैं। भौगोलिक अध्ययन में तथ्यों के सम्मिश्र को कम जटिल समूहों में और अध्ययन क्षेत्र को छोटे-छोटे समरूप उपक्षेत्रों (लघु क्षेत्रों) में विभक्त किया जाता है। इस प्रकार किसी सुसंगठित भौगोलिक अध्ययन में क्रमबद्ध और प्रादेशिक दोनों विधियों के पारस्परिक सम्बंध काफी महत्वपूर्ण होते हैं हटनर का समर्थन करते हुए हार्टशोर्न ने क्रमद्धि भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल के समन्वय को ही भौगोलिक अध्ययन की सर्वाधिक उपयुक्त विधि बताया है। उनके अनुसार क्रमबद्ध तथा प्रादेशिक भूगोल में केवल विषयों और प्रदेशों के चुनाव के तरीकों का ही अंतर है। एक बृहत् प्रदेश के पूर्ण क्रमबद्ध अध्ययनों के योग में वे सभी तथ्य और सम्बंध समाहित होते हैं जो उसके प्रादेशिक भूगोल में अंतर्लिप्त होते हैं। क्रमबद्ध भूगोल में सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र को एक पूर्ण इकाई मानकर उसके विभिन्न तत्वों (विषयों) का अध्ययन किया जाता है।
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