एशिया की जलवायु (Climate of Asia Continent)
एशिया महाद्वीप संसार का सबसे विशाल महाद्वीप है। इस विशाल महाद्वीप की जलवायु के अध्ययन के अन्तर्गत हम यह देखते हैं कि इसमें जलवायु सम्बन्धी अनेक विषमताएं मिलती हैं उदाहरण के लिए, संसार का सबसे गर्म भाग जैकोबाबाद तथा संसार का सबसे ठण्डा भाग बर्खोयांस्क इसी महाद्वीप में स्थित है। एशिया का दक्षिण-पश्चिमी एवं मध्य भाग सबसे अधिक तापमान (लगभग 50डिग्री सेण्टीग्रेड) प्राप्त करता है जबकि उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में लगभग नौ माह तक कठोर सर्दियां पड़ती हैं और तापमान हिमांक से बहुत नीचे गिर जाता है जो लगभग डिग्री सेण्टीग्रेड तक पहुंच जाता हैं
जलवायु की यह विषमता वर्षा के वितरण मे भी पाई जाती है, क्योंकि एशिया का दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करता है। विद्वानों का मत है कि संसार की लगभग 50 प्रतिशत वर्षा केवल भारत, बांग्लदेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया, मलेशिया तथा फिलीपाइन द्वीपसमूह में हो जाती है। इन भागों में वर्षा का सामान्य और 250 सेण्टीमीटर से भी अधिक है जबकि एशिया के मध्य एवं दक्षिणी-पश्चिमी भाग वर्षा की कमी के कारण शुष्क एवं मरुस्थलीय हैं।
“एशिया महाद्वीप में जलवायु की इस विषमता के मिलने के दो कारण हैं अथवा एशिया महाद्वीप की जलवायु पर दो बातों का विशेष प्रभाव पड़ता है।
1. एशिया महाद्वीप की विशालता
2. एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में उठी हुई पर्वत श्रेणियां |
1. एशिया महाद्वीप की विशालता
एशिया महाद्वीप के अत्यन्त विशाल होने के कारण इसका एशिया के कुछ भागों की जलवायु पर पड़ता है। विशेषकर एशिया महाद्वीप का मध्य भाग अपने निकटतम समुद्र लगभग 3,200 किलोमीटर (2,000 मील) दूर जाता है। जिसके फलस्वरूप यह सामुद्रिक दशाओं के समकारी प्रभावों से वंचित रह जाता है, अतः इस भाग की जलवायु पूर्णतया महाद्वीपीय हो जाती है। इस भाग में तापान्तर अधिक मिलता है।
2. एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में उठी हुई पर्वत श्रेणियां
‘एशिया महाद्वीप की जलवायु पर इसके मध्य भाग में फैली हुई उच्च एवं विशाल पर्वत श्रेणियों का भी प्रभाव पड़ता है। ये पर्वत श्रेणियां एशिया महाद्वीप को दो भागों में बांटती हैं-उत्तरी एशिया एवं दक्षिणी एशिया। उत्तरी एशिया के अन्तर्गत उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी एशिया का भाग सम्मिलित है तो शुष्क है और दक्षिणी एशिया के अन्तर्गत दक्षिणी-पूर्वी एशिया का भाग सम्मिलित है जो नम है। ये विशाल पर्वतश्रेणियां हिन्द एवं प्रशान्त महासागर की ओर से वाली जल से भरी हवाओं को उत्तर की ओर जाने से रोक देती हैं।
एशिया की यह मध्यवर्ती उच्च पर्वत श्रेणियां एशिया की वर्षा के अलावा तापमान के वितरण को भी प्रभावित करती हैं। ये उच्च पर्वत श्रेणियां एशिया के उत्तरी-पश्चिमी भाग से आने वाली ध्रुवीय एवं बर्फीली हवाओं को दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में प्रवेश करने से रोक देती हैं जिसके फलस्वरूप दक्षिणी भागों में तापमान इतना अधिक गिरने नहीं पाता है। जितना उत्तरी भाग में गिर जाता है। यही कारण है कि भारत तथा पाकिस्तान में सर्दियों में बर्फ नहीं जम पाती है जबकि एशिया के उत्तरी भागों में बर्फ जम जाती है। इस प्रकार ये पर्वत श्रेणियां दक्षिणी भागों में उच्च तापमान बनाएं रखने में सहायता करती हैं तथा दूसरी ओर ये दक्षिण की ओर से चलने वाली गर्म हवाओं को रोक देती हैं जिसके फलस्वरूप उत्तरी भाग सर्दियों में अधिक तापमान प्राप्त नहीं कर पाता है और अधिक ठण्डा हो जाता है। अत्यधिक ठण्ड के कारण एशिया के उत्तर में स्थित आर्कटिक महासागर जम जाता है जिसके परिणामस्वरूप उत्तरी स्थलखण्ड और भी अधिक ठण्डे हो जाते हैं। यही कारण है कि उत्तरी एशिया का उत्तरी ध्रुवीय भाग अत्यधिक ठण्डा होने के कारण विश्व का ‘शीत ध्रुव’ कहलाता है।
एशिया की जलवायु के सामान्य अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि एशिया में वर्ष भर जलवायु सम्बन्धी दशाएं एक-सी नहीं मिलती हैं बल्कि जलवायु की दशाएं गर्मियों तथा सर्दियों में भिन्न-भिन्न रूपों में पाई जाती हैं। अतएव एशिया की जलवायु का अध्ययन निम्नलिखित दो ऋतुओं की दशाओं के अन्तर्गत किया जाना चाहिए।
- ग्रीष्म ऋतु की दशाएं,
- शीत ऋतु की दशाएं
ग्रीष्म ऋतु की दशां
तापमान- एशिया महाद्वीप में सामान्यतया ग्रीष्म ऋतु अप्रैल माह से प्रारम्भ होती है, क्योंकि मार्च के बाद सूर्य की किरणों कर्क रेखा पर लम्ब रूप में पड़ती हैं। इससे एशिया महाद्वीप के समस्त स्थलखण्ड पर तापमान में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। एशिया का उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश, जो वर्ष के अधिकतर समय में बर्फ से ढका रहता है, इस ऋतु में लगभग 10डिग्री सेण्टी तापमान प्राप्त करता है। 26 डिग्री सेण्टीगेड की तापमान रेखा एशिया के मध्य भाग से गुजरती है। एशिया का दक्षिण-पश्चिमी भागत अत्यनत गर्म हो जाता है और इस भाग में सामान्य तापमान 35 डिग्री संण्टीग्रेड के लगभग मिलता है विशेषकर अरब का मध्य भाग, इराक का मध्य एवं पश्चिमी भाग, भारत का पश्चि मरुस्थलीय भाग, पाकिस्तान का पूर्वी भाग इस समय अत्यधिक गर्म हो जाता है और तापमा 45 डिग्री सेण्टीग्रेड के लगभग पहुंच जाता है।
वायुदाब- ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ होते है एशिया महाद्वीप में तापमान बढ़ना आरम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप मध्य एशिया उच्च दाब क्षेत्र धीरे-धीरे निम्न दाब क्षेत्र के रूप परिवर्तित होना प्ररम्भ हो जते हैं। जून के माह में जब एशिया महाद्वीप का दक्षिण-पश्चिमी भाग अत्यधिक तापमान के कारण भीषण गर्मी प्राप्त करता है तो इस भाग में बहुत शक्तिशाली निम्न दाब क्षेत्र स्थापित हो जाता है। इस निम्न दाब का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में होता है जह सबसे कम दाब लगभग 995 मिलीबार पाया जाता ठीक इसी समय एशिया के दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर पर उच्च दाब क्षेत्र स्थापित हो जाता हैं।
वायु की दशाएँ- ग्रीष्म ऋतु में ऊँचे तापमान एवं भीषण गर्मी के कारण उत्पन्न मध्य एशिया एवं दक्षिणी-पश्चिमी एशिया के निम्न दाब वाले क्षेत्रों से हवाएँ गर्म एवं हल्की होकर ऊपर की ओर उठने लगती हैं। इनकी पूर्ति के लिए उच्च दाब वाले क्षेत्रों में हवाएँ चलना आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में महाद्वीपीय स्थल के निम्न दाब केन्द्रों की ओर सामुद्रिक उच्च दाब केन्द्रों की ओर सामुद्रिक उच्चदाब केन्द्रों से हवाएँ चलना प्रारम्भ होता हैं।
शीत ऋतु की दशाएँ
तापमान – एशिया महाद्वीप में सामान्यतया शीत ऋतु अक्टूबर माह से प्रारम्भ होती है, क्योंकि सितम्बर माह के पश्चात् सूर्य की किरणें मकर रेखा की ओर बढ़ना प्रारम्भ कर देती है। दिसम्बर माह में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लम्ब रूप में पड़ती हैं। इससे एशिया महाद्वीप का उत्तरी एवं मध्य भाग सूर्य की किरणों से लगभग वंचित हो जाता है जिसके फलस्वरूप एशिया ये भाग अत्यधिक ठण्डे हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, एशिया की मध्यवर्ती उच्च पर्वत श्रेणियों के कारण समुद्री हवाएँ इस भाग तक नहीं पहुँचने पातीं। उत्तर ध्रुव से चलने वाली ठण्डी एवं बर्फीली हवाएँ एशिया के इस उत्तरी एवं मध्य भाग को और भी अधिक ठण्डा कर देती हैं जिससे इन भागों में तापमान और भी गिर जाता है।
वायुदाब – शीत ऋतु प्रारम्भ होते ही एशिया महाद्वीप में तापमान गिरना प्रारम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप मध्य एशिया के निम्न दाब क्षेत्र धीरे-धीरे उच्च दाब क्षेत्रों के रूप परिवर्तित होना प्रारम्भ हो जाते हैं। जनवरी माह में जब एशिया में अत्यधिक कठोर सर्दी पड़ती है तो एशिया का मध्य भाग उच्च दाब क्षेत्र का केन्द्र बन जाता है जहाँ सबसे अधिक उच्च दाब लगभग 1,036 मिलीवार पाया जाता है। इसकी समभार रेखाओं के बनावट अण्डाकार होती है। जिसके बाहर के भाग के क्रमशः वायुदाब कम होता जाता है।
वायु की दिशाएँ- शीत ऋतु में कठोर सर्दी एवं निम्न तापमान होने के कारण एशिया के मध्य भाग में मंगोलिया पास गोबी के मरुस्थल के ऊपर ठण्डी उच्च वायु दाब की हवाओं का समूह केन्द्रभूत हो जाता है जिसके फलस्वरूप इस उच्च दाब केन्द्र से समुद्री निम्न दाब केन्द्र ओर हवाएँ चलना प्रारम्भ हो जाती है।
जलवायु की विशेषताए
एशिया की जलवायु को विशेषताओं के विवेचन से यह तथ्य प्रकट होता है कि यहाँ बहु अधिक क्षेत्रीय विविधता है। इन क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखकर यहाँ की जलवायु का वर्गीकरण अनेक वद्विानों ने किया है। ऐसे विद्वानों में ब्लाडीमीर कोपेन, सी.डब्ल्यू. थार्थवेट, एल.डी. स्टैम्प एवं ट्रिवार्था के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं
कोपेन द्वारा एशिया के जलवायविक प्रदेशों का निर्धारण- जर्मन विद्वान कोपेन ने विश्व जलवायु के वर्गीकरण के सन्दर्भ में एशिया महाद्वीप को 5 प्रधान और 11 उप जलवायु प्रकारों में विभक्त किया है। कोपेन अपने वर्गीकरण का आधार तापमान एवं वर्षा की मात्रा को बनाया है जो जलवायु के अधारी तत्त्व हैं। इन तत्त्वों के आधार पर उन्होंने निम्न जलवायविक व्यवस्था प्रस्तुत की है-
(क) उष्ण आर्द्र जलवायु
1. उष्ण आर्द्र जलवायु, 2. सवाना तुल्य जलवाय।
(ख) शुष्क जलवायु
3. स्टेपी तुल्य जलवायु, 4. मरुस्थलीय जलवायु
(ग) गर्म शीतोष्ण आर्द्र जलवायु
5. गर्म शीतोष्ण-शुष्क शिशिर, 6. गर्म शीतोष्ण-शुष्क ग्रीष्म, 7. आर्द्र शीतोष्ण
(घ) शीत शीतोष्ण जलवायु
8. शीत शीतोष्ण-आर्द्र शिशिर, 9. शीत शीतोष्ण-शुष्क शिशिर
(ङ) ध्रुवीय जलवायु
10: टुण्ड्रा जलवायु, 11. हिममण्डित जलवायु जलवायु प्रदेशों की अन्य विशेषताओं को इंगित करने के लिए इन्होंने अंग्रेजी की लघु अक्षरों का भी प्रयोग किया है जो इस प्रकार है। = सबसे गर्म महीने का तापमान 22° सेण्टीग्रेड a से अधिक, b = गर्म महीने का तापमान 22° सेण्टीग्रेड से कम, c= एक से चार माह तक तापमान 10° सेण्टीग्रेड से अधिक, d = सबसे ठण्डे माह का तापमान 3.6° सेण्टीग्रेड से कम, K = शीत शिशिर, m= मानसूनी वर्षा, S = शुष्क ग्रीष्म, W= शुष्क शिशिर, F = वर्ष भर वर्षा ।
स्टेपी तुल्य जलवायु (मध्य अक्षांशीय महाद्वीपीय जलवायु)- इस प्रकार की जलवायु को स्टेपी या प्रेयरी जलवायु के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी साइबेरिया और मंगोलिया में पाई जाती हैं। ग्रीष्मकाल में साधारण गर्मी, शरदकाल में कड़ाके की सर्दी, सामान्य वर्षा तथ हिमपात यहाँ के जलवायु की मुख्य विशेषताएँ हैं। यहाँ लम्बा और कठोर शरदकाल भयावह होता है और कभी-कभी तापमान हिमांक से 50 सेण्टीग्रेड नीचे तक चला जाता है। ग्रीष्मकाल छोटा और सामान्य गर्म होत है। विश्व का सबसे ठण्डा स्थान, बर्खोयांस्क इसी जलवायु का प्रतिनिधित्व करता है। वर्षा, हिमपात और जल-हिम मिश्रित दोनों रूपों में अधिकांश शरदकाल में होती है। औसत वार्षिक वर्षा 40 से 70 सेमी है जो स्टेपी घास के लिए पर्याप्त है। इसीलिए इसे स्टेपी तुल्य जलवायु के नाम से ‘पुकारा जाता है।
टैगा तुल्य जलवायु- साइबेरिया के उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम एक पेटी क्षेत्र पर पाई जाने वाली जलवायु टैगा वनों के आधार पर इस नाम से जानी जाती है। यहाँ लगभग नौ माह शरदकाल और मात्र तीन माह ग्रीष्मकाल होता है। गर्मी में तापमान 10° से 15° सेण्टीग्रेड और जाड़े में हिमांक से 200 से 40° सेण्टीग्रेड नीचे रहता है। अत्यन्त कठोर सर्दी के कारण यहाँ कोणधारी वन पाये जाते हैं जिनकी सहन शक्ति अत्यधिक होती है। टैगा के वनों को सदाबहार कोणधारी वन भी कहा जाता है। यहां ग्रीष्मकाल में हल्की वर्षा और शदरकाल में हिमपात तथा हिम मिश्रित वर्षा होती है । कटार शीत एवं बर्फ से रक्षा करने के लिए यहाँ के पेड़झुकी हुई शाखा और नुकीली पत्ती वाले होते हैं वाष्पीकरण से बचने के लिए इनकी पत्तियाँ चिकनी और छाल मोटी होती है। टैगा के जंगल नरम लकड़ी केबहु-उपयोगी जंगल हैं
टुण्ड्रा तुल्य जलवायु- टैगा और आर्कटिक सागर के मध्य पतली पेटी भू-क्षेत्र पर इस प्रकार की जलवायु पायी जाती है। इस ध्रुवीय जलवायु है। यहाँ लगभग दस माह का अतिकठोर शरद काल और मात्र दो माह का ग्रीष्मकाल होता है। ध्रुवीय ठण्डी हवाओं के कारण तापमान अधिकांश समय हिमांक से नीचे रहता है जिसमें धरातल पर मोटी बर्फ जमा रहती है। सम्पूर्ण आर्कटिक सागर भी इस मौसम में जम जाता है। तापमान अधिकांश समय हिमांक से 39° से 40° सेण्टीग्रेड नीचे रहता हैं ग्रीष्मकाल में तापमान 5° से 10° सेण्टीग्रेड रहता है, जब बर्फ के पिघलने के कारण धरातल पर छोटी घासें, फूल और काई उग आती हैं। यहाँ निवासी एस्किमों मांसाहारी हैं जो मछलियों और टैंगा जंगलों में पाये जाने वाले जानवरों के शिकार से अपना भोजन प्राप्त करते है। यह विश्व की कठोरतम जलवायु हैं।
Related Link
- एशिया महाद्वीप के उच्चावय भौगोलिक | Altitude geography of the continent of Asia in Hindi
- सुदूर-पूर्व एशिया की प्रमुख वनस्पतियाँ | Major Plants of Far-East Asia in Hindi
- प्रादेशिक तथा क्रमबद्ध उपागम | Regional and Systematic Approach in Hindi
- प्राकृतिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार | Criteria of Delimitation of Natural Regions in Hindi
- सांस्कृतिक प्रदेश का अर्थ एंव विश्व के आधुनिक सांस्कृतिक परिमंडल | Meaning of cultural region and modern cultural circles of the world in Hindi
- कर्मोपलक्षी एवं कार्यात्मक प्रदेशों में विभेद | Distinction between functional and functional regions in Hindi
- आर्थिक प्रदेशों के सीमांकन के आधार एवं विशेषताएँ | Basis and features of demarcation of economic territories
- प्रदेश की परिभाषा तथा इसके प्रकार | Definition of region and its types in Hindi
Important Links
- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन तथा जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा व्यवस्था
- निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ, प्रकृति, गुण एवं इसके दोष | Meaning, nature, Merits and Demerits of prohibitive education in Hindi
- रूसो के अनुसार मानव विकास की अवस्थायें और शिक्षा | Stages of Human Development and Education according to Rousseau in Hindi
- रूसो का प्रकृतिवाद | Naturalism of Rousseau in Hindi
- रूसो की शैक्षिक विचारधारा | Educational Thoughts of Rousseau in Hindi
- गिज्जूभाई के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of Gijjubhai in Hindi
- शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में गिज्जूभाई | Gijjubhai as a Teacher-Educator in Hindi
- स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन | विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य
- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ | विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन
- “पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।” व्याख्या कीजिए।
- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा एंव शिल्प केन्द्रित शिक्षा की आवश्यकता
- बुनियादी शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, स्वरूप, महत्व एंव इसके गुण | Meaning, Objectives, Nature, Importance and Properties of Basic Education
- गाँधीजी के शिक्षा का सम्प्रत्यय | Gandhiji Concept of Education in Hindi
- महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy) in Hindi
- विश्व शांति के महत्त्व एवं विकास | Importance and development of world peace
- भारत एवं विश्व शान्ति |India and world peace in Hindi
- विश्व शांति का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी आवश्यकता
- स्वामी विवेकानन्द जी का शान्ति शिक्षा में योगदान | Contribution of Swami Vivekananda in Peace Education
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व | objectives and Importance of international organization
- भारतीय संदर्भ में विश्वशान्ति की अवधारणा | concept of world peace in the Indian context
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की प्रासंगिकता | Relevance of International Organization
- भारतीय परम्परा के अनुसार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का स्वरूप
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य एवं महत्त्व | Objects & Importance of International Organization
- मानवीय मूल्यों को विकसित करने में शिक्षा की भूमिका
- मूल्यों के विकास के स्त्रोत अथवा साधन क्या हैं? What are the source or means of Development of values?
- मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति | Meaning and Definition of human value and its nature
- व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा | Concept of value in Practical life
- सभ्यता एवं संस्कृति का मूल्य पद्धति के विकास में योगदान
- संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य का अर्थ, प्रकार एंव इसके कार्य
- संस्कृति का मूल्य शिक्षा पर प्रभाव | Impact of culture on value Education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ, परिभाषा तथा मूल्य एवं संस्कृति के संबंध
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
Disclaimer