मानसिक अस्वस्थता का उपचार-Mansik Aswastata ka Upchar in Hindi
मानसिक अस्वस्थता का उपचार- मानसिक अस्वस्थता के लक्षणों एवं कारकों के विवेचन द्वारा स्पष्ट हो चुका है कि मानसिक अस्वस्थता अनेक बार पर्याप्त जटिल एवं भयंकर रूप भी धारण कर लेती हैं मानसिक अस्वस्थता से जहाँ एक ओर सम्बन्धित व्यक्ति को कष्ट एवं हानि का सामना करना पड़ता है वहीं दूसरी ओर इससे समाज और राष्ट्र की भी हानि होती है, क्योंकि किसी समाज में यदि मानसिक अस्वस्थ व्यक्तियों की संख्या बढ़ जाये तो वह समाज विघटन की ओर अग्रसर होने लगता है। इसीलिए प्रत्येक समाज चाहता है कि उसके अधिक से अधिक व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहें। इस स्थिति में जहाँ एक ओर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि समाज में अधिक व्यक्ति मानसिक रोगों से ग्रसित न हों अर्थात् मानसिक रूप से स्वस्थ रहें वहीं दूसरी ओर मानसिक रोगों के उपचार की भी व्यवस्था की जाती है। शारीरिक रोग सरल होते हैं अतः उनका उपचार करना भी सरल होता है। किन्तु मानसिक रोग पर्याप्त रूप से जटिल होते हैं इसलिए इनके उपचार की व्यवस्था प्राचीन न होकर वर्तमानकाल में ही प्रारम्भ हुई है। प्राचीनकाल में मानसिक रोगियों को रोगी ही नहीं माना जाता था। उस समय इन्हें भूत-प्रेत आदि दैवी या आसुरी शक्तियों का प्रकोप माना जाता था। परन्तु वर्तमान मनोवैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप मानसिक रोगों को भी अन्य शारीरिक रोगों के समान ही माना जाने लगा है। अब मानसिक रोगियों का भी पूर्ण सहानुभूति से व्यवस्थित रूप से उपचार किया जाता है। मानसिक रोगों के उपचार की कुछ मुख्य विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्न वर्णित है—
1. मनो अभिनय
मानसिक अस्वस्थता के उपचार की यह विधि मनो अभिनय कहलाती है। इस विधि के अन्तर्गत मानसिक रोगी को अपनी समस्याओं का अभिनय करने की सुविधा प्रदान की जाती है। इस क्रिया के द्वारा मानसिक रोगी अपने अनेक असामान्यताओं को प्रकट कर देता है। असामान्यताओं को खुलकर प्रकट कर देने से उन पर कुछ सीमा तक नियन्त्रण किया जा सकता है। इस तरह बार-बार दोहराने से व्यक्ति असामान्यताओं से मुक्त हो जाता है तथा स्वस्थ हो जाता है।
2. सामूहिक चिकित्सा विधि
मानसिक अस्वस्थता के उपचार के लिए सामूहिक चिकित्सा को भी अपनाया जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत कुछ मानसिक रोगियों को एक स्थान पर बैठने तथा विचार-विमर्श करने की सुविधा प्रदान की जाती है। मानसिक रोगी एक साथ बैठकर अपनी-अपनी मुख्य समस्या व्यक्त करते हैं। अपनी समस्या को व्यक्त करके तथा दूसरे की समस्या को सुनकर मानसिक रोगियों को कुछ राहत मिलती हैं। इससे आत्मविश्वास जाग्रत होता है तथा समस्या के निदान का मार्ग प्रशस्त होता है।
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3. व्यावसायिक चिकित्सा पद्धति
इस चिकित्सा पद्धति के अन्तर्गत यह माना जाता है कि मानसिक रोगी को यदि कोई व्यवसाय दे दिया जाये अर्थात् उसे किसी कार्य में व्यस्त कर दिया जाये तो वह धीरे-धीरे रोग मुक्त हो जाता है तथा मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है। इस सिद्धान्त को मानकर व्यावसायिक चिकित्सा के अन्तर्गत मानसिक रोगियों को कुछ सरल दस्तकारी के कार्य सिखाये जाते हैं तथा उनसे ये कार्य करवाये जाते हैं। इस प्रकार के कार्य हैं-कपड़ा बुनना, बढ़ई का कार्य, चटाई बनाना तथा इसी प्रकार के अन्य सरल कार्य। इन व्यवसायों में संलग्न होकर ये मानसिक रोगी धीरे-धीरे अपनी प्रवृत्ति बदलने लगते हैं तथा समय के साथ-साथ पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं।
4. निद्रा चिकित्सा
निद्रा चिकित्सा पद्धति के अन्तर्गत यह माना जाता है कि यदि कोई मानसिक रोगी काफी समय तक गहन निद्रा में सोता रहे तो उसके बाद जागने पर वह अपनी मनोविकृतियों से मुक्त हो जाता है। इस सिद्धान्त को मानकर निद्रा चिकित्सा पद्धति में मानसिक रोगी को विभिन्न औषधियों द्वारा सुला दिया जाता है। इस प्रकार की निद्रा कई दिन भी चल सकती है। इस प्रकार लम्बी अवधि की निद्रा के बाद जागने पर मानसिक रोगी अपने आपको हर प्रकार से स्वस्थ अनुभव करता है। वास्तव में इस काल में वह अपने पहले सभी अनुभवों को भूल जाता है।
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5. आघात चिकित्सा पद्धति
इस उपचार पद्धति के अन्तर्गत माना जाता है कि यदि किसी आघात द्वारा रोगी के मानसिक विचार को छिन्न-भिन्न कर दिया जाये तो उसके स्वस्थ होने की सम्भावना बन जाती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मानसिक रोगी की विद्युत अथवा किसी औषधि द्वारा मानसिक आघात पहुँचाया जाता है। इस आघात से मानसिक रोगी स्वस्थ हो जाता है।
6. सुझाव एवं संकेत पद्धति
एक अन्य पद्धति के अन्तर्गत मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को कुछ विशेष प्रकार के सुझावों एवं संकेतों द्वारा भी रोग मुक्त किया जाता है। इस पद्धति के अन्तर्ग मानसिक रोगी को निरन्तर रूप से यह सुझाव दिया जाता है कि वह हर प्रकार से स्वस्थ है, उसे किसी प्रकार का कोई मानसिक रोग नहीं है। इस प्रकार के निरन्तर सुझाव से मानसिक रोगी क्रमशः स्वस्थ होने लगता है। जब ऐसे व्यक्ति कुछ स्वस्थ हो जाता है तब उसे रोग निदान के संकेतों से परिचित किया जाता है, जिससे रोग मुक्ति की गति तीव्र हो जाती है तथा शीघ्र ही रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।
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7. सम्मोहन पद्धति
मानसिक अस्वस्थता के उपचार के लिए अपनायी गयी एक पद्धति को सम्मोहन पद्धति कहा जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत एक विशेष प्रकार की सांकेतिक क्रिया द्वारा अस्वस्थ व्यक्ति को अचेतन कर दिया जाता हैं अचेतनावस्था में आ जाने पर मानसिक रोगी को कुछ आवश्यक आदेश दिये जाते हैं। इन आदेशों द्वारा रोगी को अपने रोग को भूलने तथा सामान्य व्यवहार करने के लिए कहा जाता है। आदेश पूरा हो जाने के बाद व्यक्ति को पुनः चेतनावस्था में लाया जाता है। इस चेतनावस्था में आकर भी वह व्यक्ति सम्मोहन अवस्था में दिये गये आदेशों के अनुसार सामान्य व्यवहार करने लगता है। इस प्रकार मानसिक रोगी रोग मुक्त होकर पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।
8. पुनार्शिक्षण पद्धति
कुछ व्यक्ति आत्मविश्वास खो बैठने के कारण मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं। ऐसे मानसिक रोगियों को स्वस्थ बनाने के लिए पुनशिक्षण पद्धति अपनायी जाती है। इस पद्धति के अन्तर्गत रोगी को दोबारा से आत्मविश्वास जगाने की शिक्षा दी जाती है। मानसिक रोगी को परामर्श, निर्देशन तथा सुझाव द्वारा आत्मविश्वासी बनाया जाता है। एक बार पुनः आत्मविश्वास जाग्रत हो जा समस्त मानसिक अस्वस्थता समाप्त हो जाती है।
9. शल्य चिकित्सा पद्धति
मानसिक रोगों के उपचार के लिए कभी-कभी शल्य चिकित्सा पद्धति को भी अपनाया जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत मानसिक रोगी की शल्य चिकित्सा (ऑप्रेशन) की जाती है। यह एक गम्भीर तथा जटिल चिकित्सा पद्धति है, जिसके कभी-कभी गम्भीर परिणाम भी देखे जाते हैं। अतः सामान्य रूप से इस पद्धति को नहीं अपनाया जाता। जब अन्य सभी उपाय एवं सुझाव असफल हो चुके हों तथा रोगी के अच्छा होने की अन्य पद्धति द्वारा सम्भावना समाप्त हो जाये तभी शल्य चिकित्सा पद्धति को अपनाया जाता है।
10. मनोविश्लेषण
मानसिक रोगों के उपचार के लिए मनोविश्लेषण विधि को सर्वप्रथम सिगमण्ड फ्रायड ने अपनाया था। उसने स्वप्न विश्लेषण तथा मुक्त साहचर्य द्वारा मानसिक रोगियों की अस्वस्थता के कारणों को ज्ञात किया तथा उनका उपचार भी किया। इस काल में इस विधि द्वारा अनेक रोगियों का सफल उपचार किया था।
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