शिक्षा के निजीकरण पर टिप्पणी लिखिए। इसके गुण व दोष बताइये तथा दोषों को दूर करने हेतु सुझाव दीजिए।
शिक्षा का निजीकरण (Privatisation of Education)
प्राचीनकाल से ही शिक्षा मानव जीवन का अभिन्न अंग रही है क्योंकि यह मस्तिष्क का संवर्धन कर दक्षता प्राप्ति द्वारा जीवन को संतोषजनक बनाती है। ऐसी धारणा है कि शिक्षा का सर्वव्यापीकरण 20वीं शताब्दी में ही संभव हुआ था। आज शिक्षा मानव की मूलभूत आवश्यकता बन गई है। प्रत्येक व्यक्ति में सीखने और अपने आपको शिक्षित करने की ललक होती है और शिक्षा ही उसे आवश्यक ज्ञान द्वारा जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सुसज्जित करती है।
आज शिक्षा वह नींव है जिस पर आधुनिक समाज के स्तम्भ खड़े हैं। अनौपचारिक एवं सस्ती शिक्षा आज अति विशिष्ट हो गई है। इसका कार्यक्षेत्र भी काफी विस्तृत हो गया है। अधिकांश देशों में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा देते समय विषय वस्तु के संगत स्वीकृत सिद्धांतों एवं प्रक्रियाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए। लेकिन भारत जैसा विकासशील देश आर्थिक दबाव के कारण शिक्षा पर अधिक व्यय वहन नहीं कर सकता है। हमारा शिक्षा पर व्यय हमारे सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.8 प्रतिशत है जबकि विकसित देशों में सामान्यतः स्वीकृत मानदण्ड 6 प्रतिशत या उससे भी अधिक है। इसके फलस्वरूप शिक्षा यहां बड़े प्रचार से वंचित रही है और इसका उत्तर है शिक्षा का निजीकरण आज देश में शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए सरकार के सतत् प्रयासों के फलस्वरूप हमारी लगभग दो तिहाई आबादी शिक्षित तो हो गई है। लेकिन अभी भी भारत को 20वीं शताब्दी में विश्व के सबसे अधिक अशिक्षित लोगों को देश की उपाधि दी जाती है। सरकार तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को लेकर शिक्षा कार्यक्रमों को आगे बढ़ा पाने में अपने को असहाय पाती है। कोषों की कमी एक गंभीर समस्या है। अतः शिक्षा विशेष उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की जरूरत है। बहुत पहले से ही शिक्षा का निजीकरण प्रेरित हुआ है। निजी क्षेत्र शिक्षा में संलग्न हो सकते हैं।
शिक्षा का निजीकरण के गुण
विशिष्ट श्रेणी के पब्लिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता खासकर ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों से प्रमाणित हो गई है। सरकार की दोषपूर्ण शिक्षा नीति के साथ सरकारी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है। निजी विद्यालय बुनियादी सुविधाओं का उचित प्रबंध रखते हैं। शिक्षा के निजीकरण से अक्षमता, भ्रष्टाचार शिक्षक, उपकरण, प्रयोगशालाएँ और पुस्तकालयों जैसे मानवीय संसाधनों के अपर्याप्त उपयोग को दूर किया जा सकता है। जो अब हमारी शिक्षा पद्धति के अनिवार्य अंग बन गए हैं। लेकिन शिक्षा के निजीकरण का नकारात्मक पहलू भी है।
शिक्षा का निजीकरण की कमियाँ
1. शिक्षा का निजीकरण भविष्य में लाभ और निहित आर्थिक लाभों को लाती है। श्रेष्ठ स्कूलों में अत्याधिक शुल्क लिया जाता है जो सामान्य भारतीय की सामर्थ्य से बाहर है। ये समर्थ और असमर्थ लोगों के बीच एक खाई उत्पन्न करती है। शिक्षा के निजीकरण ने समाज के उच्च वर्गों के स्वार्थ के लिए अमीरों और गरीबों के बीच विषमता को बढ़ाने का काम किया है।
2. निजी क्षेत्र तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराने में भी रूचि लेता हुआ जान पड़ता है। इनमें से कुछ संस्थान विभिन्न मदों पर छात्रों से लाखों रूपये लेकर भी उन्हें बुनियादी सुविधाएँ नहीं दे पाते है। यह शिक्षा के निजीकरण के मूल उद्देश्य की उपेक्षा करता है।
3. यदि नीजी क्षेत्र प्राथमिक/ उच्च विद्यालय शिक्षा में संलग्न है तो उनमें से अधिकांश संस्थानों में मुख्यतः सरकारी निधि या सहायता प्राप्त संस्थानों में अनुदान से प्राप्त धन को अक्सर, दूसरे नाम पर खर्च करके स्थिति को बदतर बना दिया जाता है।
4. इस तरह के संस्थानों के शिक्षकों को शायद ही कभी पूरा वेतन दिया जाता है जबकि उन्हें सरकारी वर्ग के समान पूर्ण रकम की प्राप्ति की रसीद देनी होती है और उनके कार्यकाल की कोई गारंटी नही होती है। ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को छोड़कर शेष निजी स्कूलों के शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर रूपए दिए जाते हैं।
5. अध्यापन से जुड़े लोगों को बढ़िया भुगतान और उचित देखभाल नहीं की जाती है, इसलिए दीर्घकाल में इसकी क्षति शिक्षा को भुगतनी पड़ती है।
शिक्षा के निजीकरण के गुण और दोष दोनों है। यदि यह नियंत्रित नहीं हैं तो इसके दोष सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति को पंगु बना सकते हैं। फिर भी, शिक्षा के परिदृश्य से निजी क्षेत्रों को बाहर रखना संभव नहीं हैं क्योंकि सरकारी निधि शिक्षा को सर्वव्यापक बनाने के आदर्श को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हैं देश के बहुत से क्षेत्रों में शिक्षा के लिए आधारभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं। इस प्रकार निजी क्षेत्र की शिक्षा में संलग्नता आवश्यकता बन गई है।
शिक्षा का निजीकरण के सुझाव
शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी में आ रहीं बाधाओं को कम से कम करने की आवश्यकता है।
1. निजी क्षेत्रों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका अदा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए हमें राज्य और केन्द्र दोनों से स्पष्ट एवं पारदर्शी सरकारी नीति की जरूरत है।
2. दोषी को सख्त और दण्डित करने के नियम लागू करना आवश्यक है। इस तरह के सभी लाभप्रद तंत्रों द्वारा अपनी स्थिति मजबूत कर लेने के बाद सरकार को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने आपको धीरे धीरे अलग करना चाहिए और प्राथमिक शिक्षा पर जोर देना चाहिए।
एक तरफ, शिक्षा के निजीकरण से शिक्षा व्यवस्था में कुछ अनुकूल परिवर्तन आया है, वहीं दूसरी तरफ इसने गंभीर समस्याओं को भी जन्म दिया है जिनका यदि समय रहते समाधान नहीं किया गया तो ये देश की नींव को हिला सकती है। शैक्षिक संस्थानों के प्रशासकों के लिए समय आ गया है कि शिक्षा. की पवित्रता और महत्ता को महसूस करें और इसका व्यवसायीकरण न करें। यह सरकार की जवाबदेही है कि उचित कानून बनाकर शिक्षा के निजीकरण से उत्पन्न समस्याओं को रोंके ।
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