पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Environment Education)
वर्तमान समस्याओं को देखते हुए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता का प्रमुख कारण पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन है। प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में बालक की शिक्षा की शुरूआत पाठशाला से उसके संस्कारों का विकास एवं मानसिक अभिवृत्ति होती थी तत्पश्चात समाज से वह अपने अन्तर्सम्बन्धों के कारण प्राप्त हुए अनुभवों से जीवन पर्यन्त सीखता था, जिसमें वह कहीं शिक्षक का दायित्व भी निभाता था। आज बालक की प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम परिवार के स्थान पर उसका पास-पडोस, चलचित्र, दूरदर्शन एवं कामिक्स हो गया है। इसका प्रभाव अभिनय से परिपूर्ण शिष्टाचार पर दिखाई पड़ता है। आश्रम शिक्षा के स्थान पर निर्मित विद्यालयों में आधुनिकता के नाम पर कुसंगति, अशिष्टता और अश्लीलता ही दिखाई पड़ती है। शिक्षा का तीसरा स्तर समाज भी दुर्भावना भ्रष्टाचार, आतंकवाद एवं ईर्ष्या से ओत-प्रोत होने के कारण परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान समय में व्यवहार की परिभाषा बदल चुकी है। व्यवहार का अर्थ काम निकालना या काम करा लेने की क्षमता हो गया है।
उपर्युक्त परिवर्तनों का निष्कर्ष है मानवीय सोच एवं विचारधारा में बदलाव। जहाँ पहले वृक्षों को रात में हाथ लगाना पाप माना जाता था। आज उन्हीं पेड़ों को रात में काटकर बेच दिया जाता है। मानवीय सोच में आए बदलाव ने ही प्राकृतिक सन्तुलन को बिगाड़ा है पर्यावरणीय सन्तुलन के फलस्वरूप आज मनुष्य के ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अतः वर्तमान समय में आवश्यकता है मानवीय सोच, उसकी अभिवृत्ति में परिवर्तन करने की और निश्चित रूप से यह कार्य शिक्षा ही कर सकती है। पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से बालक को शुरुआत से ही पर्यावरण घटकों के प्रति सचेत किया जाए और नौजवानों में पर्यावरण संचेतना जागृत कर उनकी अभिवृत्तियों में परिवर्तन किया जाए ताकि समय रहते पर्यारण को सुरक्षित रखकर मानव अस्तित्व की रक्षा की जा सके। आज अभिभावकों की व्यस्त दिनचर्या और बालकों के बढ़ते हुए बस्ते के आकार को देखते हुए प्रश्न यह उठता है कि एक और नया विषय क्यों, परन्तु यदि विषय की गंभीरता और आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व के बारे में सोचा जाए तो पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता स्वयं सिद्ध है। एक साधारण सी बात है कि किसी को यह बताया जाए कि आगे गड्ढा है तो एक जिज्ञासा अवश्य होती है कि चलो देख लें. परन्तु फिर भी मन के किसी कोने में गिरने का भय अवश्य ही रहता है। अतः यदि किसी बालक को प्राकृतिक संसाधनों की सीमितता और इसके अन्धाधुन्ध दोहन से होने वाले दुष्परिणामों को बताया जाए तो वह कम से कम इन समस्याओं के प्रति सजग अवश्य हो जाएगा। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं को दूर किया जा सकता है। सारांश यह है कि पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि मनुष्य सम्पूर्ण प्रकृति चक्र के प्रति संवेदनशील बने, उसमें प्रकृति से लगाव उत्पन्न हो तथा पर्यावरण के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति वह पहले से अधिक क्रियाशील बने। समाज में मनुष्य अनेक समस्याओं जैसे जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, निरक्षरता इत्यादि से घिरा हुआ हैं, जिन्हें उसकी स्वयं की नासमझी और अकर्मण्यता ने भयावह बना दिया है। कारण चाहे जो भी हो प्रकृति प्रभावित हुई है और उसका परिणाम मनुष्य भोग रहा है। अतः आज के सन्दर्भ में पर्यावरण शिक्षा एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है।
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