B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व

राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व
राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व

राष्ट्रीय एकता से आप क्या समझते हैं ? राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा (Education for National Integration)

प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली की सफलता की पहली शर्त यह है कि देशवासियों में पारस्परिक प्रेम हो, सहयोग हो, भ्रातृभाव हो, त्याग की भावना हो और देश पर मर मिटने का अदम्य उत्साह हो। वे खान-पान, -रहन-सहन, वेश-भूषा, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, मूल्य मान्यताओं आदि की विभिन्नताओं को भूलकर अपने को एक समझें और राष्ट्र की बलवेदी पर समर्पित होने के लिए सदैव तत्पर रहें। परन्तु आज देश में इस भावना का अभाव है। गत कुछ वर्षों में देश में कुछ ऐसी नयी प्रवृत्तियों का उदय हुआ है कि उनसे देशवासियों की एकता में बाधा पड़ी है। इन विघटनकारी प्रवृत्तियों ने देश की आजादी और प्रजातन्त्रीय प्रणाली की सफलता को जबर्दस्त चुनौती दी है। यदि हमें अपनी आजादी की रक्षा करनी है और प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली को सफल बनाना है तो इन विघटनकारी प्रवृत्तियों को नष्ट करना होगा और सम्पूर्ण देश की जनता को एकता के सूत्र में आबद्ध करना होगा।

राष्ट्रीय एकता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of National Integration)

राष्ट्रीय एकता एक राष्ट्र के निवासियों को एकता के सूत्र में आबद्ध करती है। उनमें एकता की भावना (Feeling of oneness) पैदा करती है। इस भावना से व्यक्ति केवल अपने हितों का ही ध्यान नहीं रखना वरन् अपने समाज और राष्ट्र के हितों का भी ध्यान रखता है। वह राष्ट्र के हितों के आगे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, जातीय और धार्मिक हितों का बलिदान करने को तैयार रहता है। रॉस के अनुसार- “राष्ट्रीयता एक प्रेरणा है जिससे प्रभावित होकर एक देश के रहने वाले आपस में एक-दूसरे से एक राष्ट्र के नागरिक होने के नाते सद्भावना रखते हैं और मिल-जुलकर देश की उन्नति, सुरक्षा एवं कल्याण के लिए सक्रिय रहते हैं। “

प्रो. हुमायूं कबीर के शब्दों में- “राष्ट्रीयता वह है जो राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना पर आधारित होती है।”

बूबेकर के अनुसार- “राष्ट्रीयता देश प्रेम की अपेक्षा देशभक्ति के अधिक व्यापक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता के अन्तर्गत स्थान के अतिरिक्त जाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति एवं परम्पराओं के सम्बन्ध भी आ जाते हैं। “

1961 में राष्ट्रीय एकता सम्मेलन (National Integration Conference) में राष्ट्रीय एकता की भावना की व्याख्या निम्नलिखित शब्दों में की गई-“राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक, प्रक्रिया है जिसके द्वारा सभी व्यक्तियों के हृदय में एकत्व, संगठन और संशक्ति (Cohesion) की भावना को विकसित किया जाता है। इस प्रकार राष्ट्रीयता एक भावना है, एक प्रेरणा है, एक शक्ति है जो एक निश्चित भौगोलिक सीमा में रहने वाले विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय और भाषा-भाषी लोगों को एकता के सूत्र में आबद्ध करने का कार्य करती है, उनके अन्दर अपने राष्ट्र के प्रति असीम भक्ति आज्ञापालन, कर्त्तव्यपरायणता और अनुशासन के भाव पैदा करती है और उनको इस बात की प्रेरणा देती है कि वे सब आपस में मिलकर रहें और अपने राष्ट्र की सुरक्षा एवं उन्नति के लिये सदैव प्रयत्नशील रहें।

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of National Integration)

आज के समय में हमारे देश को न केवल बाहरी आक्रमणों के प्रति सावधान और सतर्क रहना है, अपितु उसे आन्तरिक संकटों और विघटनकारी शक्तियों से भी अपना बचाव करना है। आज हमारे देश में भाषा, क्षेत्र, सम्प्रदाय धर्म के नाम पर आये दिन संघर्ष होते रहते हैं। इन संघर्षों अथवा आन्तरिक कलह से देश कमजोर होता है, उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है, उसकी योजनायें निरर्थक सिद्ध होती जाती हैं तथा उसका भविष्य धूमिल पड़ता जाता है। अतः आज पहली आवश्यकता इस बात की है कि देश की जनता अपने स्वार्थों को त्यागकर समस्त देश के कल्याण के लिये अपने हृदय में राष्ट्रीय एकता की भावना जाग्रत करें।

हमारे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एकता के हित में अपनी आवाज बुलन्द हुए एक बार कहा था, “हमें अपने देश की नवजात स्वतन्त्रता को सबल बनाना और उसको करते सुरक्षित रखना, अपना सर्वप्रथम कर्त्तव्य समझना चाहिये। यदि हम अपने समूह, अपने राज्य, अपनी भाषा या अपनी जाति के समान किसी अन्य बात को महत्त्व देंगे, तो हमारा विनाश अवश्यम्भावी है। इन सब बातों को हमारे जीवन में उचित स्थान होना चाहिये, पर यदि हम इनको अपने देश से अधिक महत्त्व देंगे, तो राष्ट्र के रूप में हमारा अन्त आवश्यक है।”

इसलिए हमें देश को सुदृढ़ बनाने के लिये हमें अपने सभी मतभेद भुलाने होंगे, पृथकतावाद की भावनायें समाप्त करनी होंगी तथा सभी समस्यायें परस्पर मिल-जुलकर हल करनी होंगी। इसके लिये सभी लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव होना आवश्यक है। सभी नागरिक राष्ट्रहित के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हों, तभी अपने अस्तित्त्व की रक्षा करने में समर्थ सिद्ध हो सकते हैं। डॉ. राधाकृष्णन के शब्दों में, “राष्ट्रीय एकता एक ऐसी समस्या है जिससे सभ्य राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्त्व का घनिष्ठ सम्बन्ध है।”

आज हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपने मनोमालिन्य दूर करें, निर्माण के कार्य में जुट जायें, विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहनशीलता एवं सहृदयता अपनायें तथा राष्ट्र की प्रगति में एक-दूसरे की सहायता करते हुये आगे बढ़ें यही राष्ट्रीय एकता है।

पं. नेहरू के अनुसार- “राष्ट्रीय एकता एवं सामंजस्य आज एक महत्त्वपूर्ण विषय है। यह उन सभी क्रिया-कलापों का आधार है जिन्हें हम भविष्य में करना चाहते हैं।”

राष्ट्रीय एकता राष्ट्र की सुरक्षा, अखण्डता और विकास के लिये आवश्यक है। इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व के निम्नलिखित कारण हैं-

(1) विदेशी शक्तियों एवं आन्तरिक झगड़ों से उत्पन्न संकट से बचाव करने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(2) विघटनकारी शक्तियों का दमन करके शान्तिपूर्ण वातावरण तैयार करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(3) राष्ट्र की स्वाधीनता, सम्मान और हितों की रक्षा के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(4) राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण, विकास और हस्तान्तरण करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(5) सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वासों, रीति-रिवाजों और विभिन्न प्रकार की असमानताओं को दूर करके समाज के लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिये तथा उचित वातावरण का निर्माण करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(6) वर्ग-विभेद को समाप्त करने, शोषण का अन्त करने, आर्थिक असमानताओं को दूर करने तथा राष्ट्र औद्योगिक प्रगति के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(7) भाषा सम्बन्धी मतभेदों से दूर रहने, भाषिक एकता स्थापित करने और राष्ट्रीय भाषा का विकास करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(8) राष्ट्र के सभी उपसंस्कृतियों के सहयोग से एक सामान्य राष्ट्रीय संस्कृति के विकास के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(9) नागरिकों में राष्ट्र के आदर्शों, मूल्यों और परम्पराओं में आस्था उत्पन्न करने तथा राष्ट्र की उन्नति और प्रगति के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(10) नागरिकों में आत्म-त्याग की भावना का विकास करके अपने राष्ट्र के लिये हर प्रकार क बलिदान करने की भावना विकसित करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

(11) सत्यनिष्ठा, सहयोग, समायोजन की योग्यता, कर्तव्य परायणता, ईमानदारी, सहिष्णुता, दूरदर्शिता सामाजिक उत्तरदायित्व को वहन करने की आकांक्षा, संवेदनशीलता, मैत्रीभाव, समीक्षात्मक चिन्तन औ सही तथा स्पष्ट निर्णय करने की क्षमता से युक्त नागरिकों के सन्तुलित व्यक्तित्त्व का निर्माण करने के लिये राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।

Related Link

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment