प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
प्रयोजनवाद का मूल्यांकन
निश्चित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोजनवाद का सराहनीय योगदान रहा है परन्तु फिर भी सैद्धान्तिक मूल्यांकन अनिवार्य है। इसके लिए प्रयोजनवाद के गुण दोषों का उल्लेख करना अनिवार्य है।
प्रयोजनवाद का मूल्यांकन के गुण
1. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के क्षेत्र क्रियाशीलता को विशेष प्रोत्साहन दिया है। शिक्षा में विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्व दिया जाता है।
2. प्रयोजनवाद ने प्रचलित शिक्षा को वर्तमान परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप नया रूप प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस वाद ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रचलित पुरानी घिसी-पिटी परम्पराओं का खण्डन किया है।
3. प्रयोजनवाद ने विद्यालय को एक नया रूप प्रदान करने का प्रयास किया है। इस प्रकार विद्यालय समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है।
4. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की एक नई धारणा प्रस्तुत की है जो उल्लेखनीय विशेषताएं हैं।
5. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नई अवधारणा प्रदान की है जैसेकि नवीन शिक्षा प्रगतिशील शिक्षा क्रिया का प्रधान पाठ्यक्रम संगठित इकाई आदि प्रमुख है।
6. प्रयोजनवादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बच्चों को व्यावहारिक जीवन के लिये तैयार करना है। यह उपयोगिता दृष्टिकोण सराहनीय है।
प्रयोजनवाद का मूल्यांकन के दोष
जहाँ एक ओर प्रयोजनवाद उपर्युक्त गुण है वहीं दूसरी ओर अन्य विभिन्न प्रणालियों के ही। समान प्रयोजनवाद में भी कुछ दोष हैं। मुख्य दोष निम्न हैं –
1. प्रयोजनवाद के अनुसार शिक्षा का कोई निर्धारित एवं निश्चित उद्देश्य नहीं है यह भी आलोचना का विषय है।
2. प्रयोजनवाद पूर्णतः भौतिकता का समर्थक है। इस विचारधारा में आध्यात्मिक मूल्यों की हर प्रकार से अवहेलना की गई परन्तु यदि तटस्थ भाव से देखा जाये जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों का भी महत्व एवं स्थान है। इस प्रकार प्रयोजनवाद एकागी विचारधारा है।
3. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण प्रचलित आदर्शों एवं मान्यताओं का विरोध किया है यह दृष्टिकोण भी अनुचित है।
4. प्रयोजनवाद में सांस्कृतिक आदशों की भी अवहेलना की गयी है तथा समुचित महत्व नहीं दिया गया है।
प्रयोजनवाद में उपयोगिता को सर्वाधिक महत्व दिया गया है तथा सत्य का निर्धारण भी उपयोगिता के आधार पर ही किया गया है। यह मान्यता उचित नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रयोजनवाद ने सत्य को शाश्वत मानकर परिवर्तनशील माना है। धारणा भी अनुचित है। प्रयोजनवाद के दोषों तथा गुणों पर प्रकाश डालने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि इस वाद ने क्रिया, प्रयोग, अनुभव, उपयोगिता तथा व्यक्ति के विकास एवं समाज की प्रगति पर बल देकर मानव के दृष्टिकोण को ही नहीं परिवर्तित किया बल्कि वर्तमान शिक्षा को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। वास्तव में प्रयोजनवाद ऐसे गतिशील एवं लचीले व्यक्तित्व को विकसित करना चाहता है जो साधनपूर्ण तथा साहसी बनकर अज्ञात भविष्य के लिए नवीन मूल्यों का निर्माण करके सामाजिक दृष्टि से कुशल बन जाये। इस प्रकार यह विचारधारा प्रचलित शिक्षा के विरुद्ध एक ऐसी क्रान्ति है जो बदलते हुए समाज की आवश्यकताओं के अनुसार बालक को विकसित करना चाहती है तथा समाज को और अधिक उन्नतिशील बनाने का प्रयास करती है। इस प्रकार प्रयोजनवाद एक प्रवृत्ति, विधि अथवा रहन-सहन का ढंग है जो आदर्शवाद तथा प्रकृतिवाद दोनों प्राचीन दार्शनिक सिद्धान्तों का विरोध करके भविष्य में आने वाले परिणामों को प्राप्त करने के लिए मानव को इस प्रकार प्रेरित करती है कि उसका जीवन और अधिक सुखी, सभ्य तथा सम्पन्न बन जाए। संक्षेप में रस्क के अनुसार प्रयोजनवाद नवीन आदर्शवाद के विकास में एक चरणमात्र है। यह नवीन आदर्शवाद ऐसा होगा जो सदैव जीवन की वास्तविकता का ध्यान रखते हुए व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का समन्वय करेगा तथा ऐसी संस्कृति का निर्माण करेगा जो कुशलता का पुष्प होती है।”
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