बुद्धि को प्रभावित करने वाले कारक
बुद्धि को प्रभावित करने वाले अनेक कारक है-
1. वंशानुक्रम
इस संदर्भ में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग प्रयोग किये और यह निष्कर्ष निकाला कि वंशानुक्रम बुद्धि को प्रभावित करता है। जैसे फ्रीमैन ने यह स्वीकार किया कि बुद्धि का वंशानुक्रम से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। गैसले और गाल्टन ने अपने प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला कि बुद्धि पर वंशानुक्रम का अधिक प्रभाव पड़ता है न कि वातावरण का। पीयर्सन ने अपने अध्ययन के आधार पर यह सिद्ध किया कि बुद्धिमान माँ-बाप के बच्चे भी एक बहुत बड़ी सीमा तक बुद्धिमान होते हैं। इसके अतिरिक्त श्वीसिंगर, डासन, न्यूमैन आदि मनोवैज्ञानिकों ने भी यह स्वीकार किया कि बुद्धि पर वंशानुक्रम का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है।
2. वातावरण
वातावरण के सम्बन्ध में भी अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोग किये। उनका मानना है कि बुद्धि वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण से अधिक प्रभावित होती है। कोडक ने बुद्धि पर वातावरण के प्रभाव को जानने के लिए अस्सी ऐसी माताओं का अध्ययन किया जिनका बच्चों का पालन पोषण अच्छे वातावरण में किया गया था। वेलीमैन लोही और स्कील ने भी अपने प्रयोग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यदि बच्चों को अच्छा वातावरण दिया जाये तो उनकी बुद्धि में काफी परिवर्तन लाया जा सकता है। इस विचारधारा के मनोवैज्ञानिक बुद्धि को वातावरण से अधिक प्रभावित होने का समर्थन करते हैं।
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3. आयु
बुद्धि और आयु का सम्बन्ध भी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। इस संदर्भ में भी अनेक प्रयोग और अध्ययन किये गये हैं, जैसे-टरमन, माइल्स और माइल्स, जान्स, थार्नडाइक, स्पीयरमैन आदि। इन सभी केययन किये गये हैं, जैसे यह दरसनम महमने आया कि सामान्यतः बुद्धि 16 से 20 वर्ष की आयु तक ही बढ़ती है, परन्तु भारत में बुद्धि का विकास 25 वर्ष तक होना माना जाता है।
4. प्रजाति
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि पर प्रजाति के प्रभाव को भी अपने अध्ययन में उतारा और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रजाति भेदों का बुद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। सभी प्रजातियों में तीन वर्ग तीव्र, सामान्य और निम्न बुद्धि के लोग पाये जाते हैं। उनका प्रतिशत कम या अधिक अवश्य हो सकता है, परन्तु कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि प्रजाति का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है।
5. लिंग
लिंग का बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक प्रयोग किये गये। मनोवैज्ञानिक विट्टी ने स्वीकार किया कि लिंग भेद का बुद्धि-लब्धि में कोई विशेष अन्तर नहीं होता, परन्तु यदि लड़कियों को उचित वातावरण न दिया जाये तो उनका चिन्तन पक्ष पिछड़ जाता है और जिनको स्वतंत्र वातावरण नहीं मिलता, उनमें भी लड़कों की अपेक्षा कम बुद्धि-लब्धि ही होती है। मैकमीकेन ने एक अध्ययन में 875 बच्चों की बुद्धि का मापन किया, यह सभी बच्चे स्कॉटलैण्ड के थे। इन बच्चों की बुद्धि का मापन स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण द्वारा किया गया। अध्ययनों के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला गया कि लड़कों का औसत I. Q. 100.5 तथा लड़कियों की औसत I. Q. 99.7 थी। दोनों का मध्यमान I. Q. और S. D. का क्रमशः 15.9 तथा 15.2 था। कुछ मनोवैज्ञानिकों का यह भी विचार है कि लड़कियों की I. Q. 6 वर्ष की अवस्था से 14 साल तक के लड़कों की अपेक्षा अधिक रहती है। इसके बाद 16 वर्ष की अवस्था पर दोनों की बुद्धिलब्धि समान रहती है तथा इस आयु के बाद लड़कों की बुद्धि-लब्धि बढ़ जाती है।
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6. स्वास्थ्य
जैसा कि कहा जाता है कि “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। “
दैनिक जीवन के अनुभवों से यह महसूस किया जाता है कि स्वास्थ्य जितना ही अच्छा होता है, बच्चे की बुद्धि का विकास उतना ही अच्छा होता है। अतः स्वास्थ्य भी व्यक्ति की बुद्धि प्रभावित करता है।
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