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सम्प्रत्यय का अर्थ, परिभाषा, प्रकार तथा प्रक्रियायें

सम्प्रत्यय का अर्थ, परिभाषा, प्रकार तथा प्रक्रियायें
सम्प्रत्यय का अर्थ, परिभाषा, प्रकार तथा प्रक्रियायें
सम्प्रत्यय का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Concept)

सम्प्रत्यय का अर्थ एवं परिभाषा – हम जिस समाज में रहते हैं उसकी सीमा बहुत व्यापक तथा स्वरूप काफी जटिल है। उसके प्रति समुचित ढंग से व्यवहार करने के लिए आवश्यक है कि हम उसके लिए कुछ विशिष्ट क्रम या विशेष व्यवस्थायें बनाये या सीखें। इस कार्य के लिए हम जिन संक्रियात्मक व्यवहारों (Operational behavior) का अर्जन तथा उपयोग करते हैं उनकी सम्प्रत्यय उपलब्धि (concept attainment) कहा जाता है। यह संक्रियायें प्रायः समानता या विभेदन के आधार पर होती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समानता या असमानता के आधार पर वस्तुओं को वर्गीकृत करने की प्रक्रिया ही सम्प्रत्यय सीखना है। सम्प्रत्यय को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न विचार प्रस्तुत किये हैं, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं “जब कोई प्रतीक उभयनिष्ठ गुणों से युक्त वस्तुओं या घटनाओं के लिए प्रयुक्त किया जाता है तो हम उसे सम्प्रत्यय कहते हैं।”

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“When a symbol stands for a class of objects or events with common properties we say that it refers to a concept.”- हिलगार्ड आदि (Hillgard at al 1975)

“सम्प्रत्यय चिन्तन प्रक्रिया द्वारा निर्मित एक श्रेणी वर्ग है। इसका उद्देश्य प्रत्यक्षीकरणों को अपेक्षाकृत सार्थक एवं समग्र रूप से संगठित करना होता है।”

“Concept is a category created by the thinking process. Its aim is to organize perceptions into increasingly meaningful wholes.” – ब्रूनो (Brouno, 1980)

“सम्प्रत्यय को वस्तुओं एवं घटनाओं की उभयनिष्ठ विशेषताओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है इस प्रकार हमारे अनुभवों को संगठित एवं विभेदित करने का प्रतीकात्मक साधन है और उच्च चिन्तन की मौलिक आवश्यकता है।”

“A concept may be defined as property of objects and events that is common to some of them; it is thus a symbolic means of both interacting and differentiating our experiences, and it is a fundamental step in higher form of thinking.” – मार्क्स (Marx, 1976)

उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने पर यह स्पष्ट होता है कि सम्प्रत्यय चिन्तन का एक महत्वपूर्ण पहलू है तथा सम्प्रत्ययों का दैनिक जीवन में व्यापक उपयोग होता है इनका निर्माण मूलतः सामान्यीकरण एवं विभेदीकरण के सिद्धान्तों के आधार पर होता है। इनका अर्जन व्यक्ति एवं पर्यावरण की अन्तः क्रिया का प्रकार्य है।

सम्प्रत्यय के प्रकार (Types of Concepts)

सम्प्रत्यय के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं

1. संयोजक सम्प्रत्यय (Conjunctive  Concepts)

यदि किसी उद्दीपक को दो या दो से अधिक विशेषताओं के आधार पर किसी वर्ग में अवर्गीकृत किया जाता है तो उसे संयोजक प्रत्यय (conjunctive concepts) कहते हैं।

2. वियोजक संप्रत्यय (Disjunctive Concepts)

यदि किसी उद्दीपक को एक या दो विशेषताओं के आधार पर किसी वर्ग में वर्गीकृत किया जाता है तो उसे वियोजक सम्प्रत्यय (Disjunctive Concepts) कहते हैं।

3. प्रतिबन्धित सम्प्रत्यय (Conditional concepts)

यदि किसी वस्तु को सम्प्रत्यय होने के लिए कोई शर्त लगायी जाती है तो उसे संप्रतिबन्धित संप्रत्यय कहते हैं। जैसे यह कहना कि यदि वस्तु काली है तो उसे सम्प्रत्यय होने के लिए वर्गाकार होना चाहिए, यह प्रतिबन्ध सम्प्रत्यय का उदाहरण है।

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4. द्वि प्रतिबन्धित सम्प्रत्यय 

इस प्रकार के सम्प्रत्ययों के साथ दोहरीशर्तें लगी रहती हैं एवं उन पर पूरा बल दिया जाता है जैसे यह कहना कि केवल वे काली वस्तुएँ सम्प्रत्य हैं जो हर हाल में वर्गाकार हैं। इसी प्रकार की कोई अन्य शर्ते भी लगायी जा सकती हैं।

5. सम्बन्धात्मक सम्प्रत्यय (Relational Concepts)

यदि वस्तुओं या व्यक्तियों में आपस में सम्बन्ध जोड़ा जाता है तो उसे सम्बन्धात्मक सम्प्रत्यय कहते हैं। जैसे यह कहना कि यह वस्तु उस वस्तु से बड़ी है या छोटी है। अमुक व्यक्ति उस संस्था का प्रमुख है। अन्य उसके आधीनस्थ हैं आदि उदाहरण सम्बन्धात्मक सम्प्रत्यय के हैं।’

सम्प्रत्यय निर्माण की प्रक्रियायें (Process of Concept Formation)

सम्प्रत्ययों के निर्माण में समानता एवं असमानता का विशेष महत्व है। इन्हीं आधारों पर

सामान्यीकरण एवं विभेदन सीखा जाता है। सम्प्रत्यय का विकास अधिगम एवं अनुभव द्वारा अत्यधिक प्रभावित होता है। सम्प्रत्ययों का प्रशिक्षण देने के लिए कृत्रिम या स्वाभाविक सामग्रियाँ प्रयुक्त की जा सकती हैं। सम्प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया में सन्निहित प्रक्रमों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1. सामान्यीकरण (Generalization )

व्यक्ति अपने समक्ष उपस्थिति विभिन्न वस्तुओं का सबसे पहले निरीक्षण करता है और असमानता के आधार पर उन्हें एक वर्ग में रखता है। यह वस्तुओं के सामान्यीकरण की प्रक्रिया कहलाती है।

2. विभेदन (Discrimination )

प्रारम्भिक निरीक्षणों से यह भी पता चल जाता है कि कुछ वस्तुओं में वे विशेषतायें नहीं हैं जो समानता के आधार पर वर्गीकृत अन्य वस्तुओं में हैं। ऐसे वस्तुओं को अलग करके दूसरे वर्ग में रखा जाता है। यह विभेदीकरण की क्रिया कहलाती है।

3. विश्लेषण एवं तुलना (Analysis and Comparison )

सामान्यीकरण एवं विभेदन के आधार पर वर्गीकृत वस्तुओं का विश्लेषण एवं तुलना करके वस्तुओं की विशेषताओं का और भी सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है।

4. गुणों का समन्वय (Coordination of Properties)

उपर्युक्त प्रक्रियाओं के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों आदि की समन्वय करके वर्गीकरण की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाता है।

5. नामकरण (Naming)

सम्प्रत्यय निर्माण की अन्तिम अवस्था में वस्तुओं या उनके वर्गों का नामकरण किया जाता है। जैसे- पशु, मनुष्य, पुस्तक, मशीन आदि सम्प्रत्ययों का नाम सीखना। आगे चलकर इन वर्गों का विश्लेषण करके उपवर्गों का निर्माण किया जाता है। जैसे बचपन में बच्चे सभी पक्षियों को मात्र पक्षी कहते हैं किन्तु समझदार होने पर वे विभिन्न पक्षियों के लिए अलग-अलग वर्ग जैसे – कौवा, तोता बतख आदि, बना लेते हैं।

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