विश्व शान्ति को परिभाषित करते हुए इसकी आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
विश्व शांति का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी आवश्यकता – विश्व शान्ति का आशय उन नियमों, निर्देशों, परम्पराओं एवं मूल्यों से है जो कि विश्व समुदायों में शांति व्यवस्था को बनाये रखने में सहायता करते हैं। इसके अन्तर्गत के सभी उपाय एवं गति विधियाँ आती हैं जो सामाजिक व्यवस्था को कलह एवं विवाद से बचाने में सहायता करती हैं। शांति शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसलिए इसको शब्दों में बाँधना कठिन है फिर भी कुछ विद्वानों ने इसे संघर्ष की समाप्ति की शिक्षा के रूप में स्वीकार किया है।
विश्व शांति की परिभाषाएँ- विश्व शांति के व्यापक स्वरूप को विद्वानों द्वारा निम्नलिखित रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया गया है-
(1) प्रो. एस.के. दुबे के शब्दों में, “विश्व शान्ति का आशय उस प्रक्रिया से है, जिसमें ज्ञान की प्राप्ति, मूल्यों, अभिवृत्तियों, कौशलों, पर्यावरणीय सन्तुलन एवं सामाजिक शांति का विकास संभव होता है जो कि एक आदर्श एवं आध्यात्मिक समाज के निर्माण का आधार होती है। यह समाज विभिन्न कलह एवं विवादों से पूर्णतः मुक्त होता है।”
(2) जेम्स पेज के अनुसार “विश्व शान्ति के माध्यम से व्यक्ति विशेष का शांति के समर्थकों के मध्य आत्म-विश्वास उत्पन्न किया जाता है, जो कि छात्रों को युद्ध एवं सामाजिक न्याय के प्रभाव, शांति के मूल्यों और सामाजिक संरचना के आदर्श स्वरूप का ज्ञान, सम्पूर्ण विश्व के प्रति प्रेम शांतिपूर्ण भविष्य का निर्माण तथा स्वयं एवं अन्य लोगों की देखभाल संबंधी गतिविधियों तथा सूचनाओं को प्रदान करते हैं।
(3) श्रीमती आर.के. शर्मा के अनुसार “विश्व शांति शिक्षा का आशय एक प्रभावी आचार संहिता से हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय एवं आध्यात्मिक आचरण का आदर्शरूप दिखाती है, जिसके आधार पर व्यक्ति मानसिक शान्ति प्राप्त करता है तथा दूसरे लोगों की देखभाल करने में सक्षम होता है। “
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शान्ति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें उन सभी प्रयासों को सम्मिलित किया गया है जो कि मानव के सर्वांगीण विकास का आधार प्रस्तुत करते हैं तथा समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय, असमानता, विवाद एवं कलह को समाप्त करते हैं।
विश्व शांति की आवश्यकता
विश्व शांति की अवधारणा हमारी शिक्षा व्यवस्था में प्राचीनकाल से ही रही है। प्राचीनकाल में राजा शिक्षित विद्वानों से, गुरुओं से एवं धर्मज्ञ पुरुषों से सलाह लिया करते थे। शान्ति की सलाह प्रत्येक शिक्षित एवं योग्य व्यक्ति द्वारा प्रदान की जाती थी। वर्तमान समय में अशान्ति की स्थिति ने इस शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही प्रारम्भ करने के लिए विवश कर दिया है। बालक के मन-मस्तिष्क पर प्राथमिक स्तर से ही शांति एवं अहिंसा की भावना का बीज रोपित कर दिय जाय तो निकट भविष्य में सम्पूर्ण विश्व में शांति का साम्राज्य होगा। जहाँ समाज में धन एवं संसाधन के लिए झगड़ा कलह होती है, उस समाज में इन वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं होगा क्योंकि व्यक्ति में त्याग की भावना का समावेश हो जाएगा। व्यक्ति अपने लिए न जीकर समाज के लिए जीवन जी सकेगा। अतः वर्तमान समय में शांति शिक्षा की निम्न कारणों से आवश्यकता है-
(1) आदर्शवादीय मूल्यों के विकास हेतु- आदर्शवादी मूल्यों की वर्तमान समय में लगभग दयनीय दशा है। व्यक्ति आज खुले रूप से घोषणा है कि आदर्शों से पेट नहीं भरता एवं सभी आदर्श खोखले हैं। इस स्थिति ने समाज में पूर्णतः अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर है। भ्रष्टाचार का बोलबाला सभी जगह है। अतएव अशांति का माहौल फैला हुआ है।
(2) सामाजिक गुणों के विकास हेतु- शांति शिक्षा की आवश्यकता बालकों में सामाजिक गुणों के विकास के लिए जरूरी है, जिससे समाज में शांति स्थापित की जा सके। आज का मानव अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए मात्र अपना हित चाहता है।
(3) नैतिक व्यवहार के विकास में सहायक- शांति शिक्षा की आवश्यकता अनैतिकता की समाप्ति एवं नैतिक व्यवहार के उदय के लिए प्रमुख रूप से है। वर्तमान में मानव नैतिकता की सीमाएँ त्याग चुका है।
(4) चारित्रिक विकास में आवश्यक- सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि जब व्यक्ति चरित्रहीनता से ग्रसित होता है तो उसका प्रत्येक कार्य सामाजिक अशान्ति उत्पन्न करता है। शान्ति शिक्षा मानव में सर्वप्रथम चारित्रिक गुणों का विकास करती है एवं व्यक्ति को उसके दायित्वों एवं व्यवहार के लिए आदर्श दिशा निर्देश प्रदान करती है।
(5) पर्यावरण सुरक्षा में सहायक- शान्ति शिक्षा द्वारा छात्रों में पर्यावरण के प्रति प्रेम विकसित किया जाता है, जिससे वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होते हैं एवं पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने में सहायक होते हैं क्योंकि शांति शिक्षा के अभाव में व्यक्ति पर्यावरणीय संसाधनों का व्यापक रूप से दोहन करता हैं, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन होता है। यह असंतुलन सम्पूर्ण मानव के लिए दुःखदायी होता है।
(6) सामाजिक न्याय में सहायक- वर्तमान समाज में अनेक दलित एवं गरीबों को विकास के अवसर एवं अधिकार प्राप्त नहीं होते, उनके साथ सामाजिक अन्याय की स्थिति बनी रहती है। इस स्थिति में शांति शिक्षा मानव समुदाय हेतु वरदान सिद्ध होती है।
(7) सामाजिक एकता के विकास में सहायक सामाजिक एकता के विकास के लिए भी शांति शिक्षा परमावश्यक है, क्योंकि समाज में चारों ओर विवाद एवं कलह का वातावरण है। शांति शिक्षा के माध्यम से बालकों में सर्वजन हिताय तथा सर्वजन सुखाय की भावना विकसित की जाती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति स्वहित के स्थान पर परहित का भाव रखने लगता है।
(8) वैश्विक समाज की स्थापना हेतु- वैश्विक समाज की स्थापना के लिए भी शांति शिक्षा आवश्यक है। जब शांति शिक्षा का प्रचार-प्रसार स्थानीय स्तर पर किया जाएगा तो इसका प्रभाव राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिलता है। भारतीय समाज में शांति एवं सहानुभूति के मूल्यों को स्वीकार किया जाता है।
(9) वैश्विक विकास में सहायक- शांति शिक्षा के मूल में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना भिहित होती है। इसके द्वारा मानव के विचार इतने व्यापक हो जाते हैं कि वह अपनी एक रोटी को सभी में बाँटकर खाता है।
(10) वैश्विक स्तर पर संस्कृति के विकास हेतु- वैश्विक संस्कृति के विकास हेतु शांति शिक्षा अत्यावश्यक है। शांति शिक्षा के माध्यम से छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही रूढ़वादिता एवं अंधविश्वासों के प्रति नकारात्मक भाव विकसित किया जाता है एवं स्वस्थ, उपयोगी परम्पराओं के प्रतिसकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाता है।
(11) अन्तर्राष्ट्रीय शांति में सहायक- शांति शिक्षा के परिणाम व्यापक एवं सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाले होते हैं। महात्मा गाँधी एवं वैदिक साहित्य की चर्चा सम्पूर्ण विश्व में आज भी होती है क्योंकि दोनों के साहित्य में शांति की भावना समाहित है एवं कलह, विवाद का कोई स्थान नहीं है। शांति के माध्यम से छात्रों में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का विकास किया जाता है। बालक सम्पूर्ण पृथ्वी पर निवास करने वाले मानवों को अपना परिवार समझता है। परिवार से कोई भी बालक विरोध नहीं करता। इस प्रकार यह भावना सम्पूर्ण विश्व के छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही विकसित कर दी जाए तो संपूर्ण विश्व एक परिवार होगा एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूर्ण शांति होगी।
(12) जीवन कौशलों के विकास में महत्त्वपूर्ण- मानव का व्यवहार कौशलों से रहित होने पर अशांति उत्पन्न करने वाला होता है। प्रत्येक मानव का व्यवहार एवं कार्य भित्र प्रकार का होता है, उसे उचित एवं सार्थक रूप में परिवर्तित करना कुशलता का ही कार्य होता है।
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