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मूल्यों को वर्गीकृत करते हुए नैतिक मूल्यों की भूमिका

मूल्यों को वर्गीकृत करते हुए नैतिक मूल्यों की भूमिका
मूल्यों को वर्गीकृत करते हुए नैतिक मूल्यों की भूमिका

मूल्यों को वर्गीकृत करते हुए नैतिक मूल्यों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।

मूल्यों का वर्गीकरण- वस्तुतः मूल्यों के वर्गीकरण में शिक्षाशास्त्री एवं विद्वान एक मत नहीं है। मूल्यों के विषय में वर्गीकरण की धारणा से सम्बन्धित कतिपय विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नवत हैं-

टर्नर के अनुसार- मूल्यों के दो वर्ग हैं- (1) आदर्श मूल्य (2) ठोस मूल्य।

ऑलपोर्ट के अनुसार- मूल्यों के छः भाग हैं- (1) सैद्धान्तिक (2) आर्थिक (3) सामाजिक (4) राजनीतिक (5) धार्मिक (6) सौन्दर्यात्मक मूल्य।

क्लुकहॉन (1951) ने मूल्यों को 8 भागों में वर्गीकृत किया है- (1) रूप विषयक (2) संतोष (3) अभिलाषा (4) सामान्यता (5) अत्यंयता (6) स्पष्टता (7) विस्तार (8) संगठनात्मक।

मूल्यों का सामान्य वर्गीकरण निम्नवत् है-

(1) शिक्षा जगत के मूल्य- शैक्षिक जगत में सरकार, विद्यालय प्रशासन, शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के अपने-अपने मूल्य होते हैं। यदि सरकार की नीतियाँ पक्षपातपूर्ण हों या विद्यालय प्रशासन दोषपूर्ण हो या शिक्षक या शिक्षार्थी अपने मूल्यों को प्रमुखता न दें, तो निश्चित ही उस जगह की शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतर जाएगी तथा एक सभ्य समाज निर्मित नहीं हो सकेगा।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य- प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने राष्ट्र की सम्प्रभुता की रक्षा करे एवं दूसरे की संप्रभुता को ठेस न पहुँचाए, यदि अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों का पालन समस्त देशों द्वारा किया जाएगा तो निश्चित है, विश्व में शान्ति कायम रहेगी अन्यथा इसके अभाव में हम तीसरे विश्व युद्ध को जन्म देंगे।

(3) सांस्कृतिक मूल्य- भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का लोहा सम्पूर्ण विश्व मानता है; जब आज विश्व में नारी को समान दर्जा दिए जाने की बात की जा रही है तब हमारे प्राचीन काल में ही नारियों के लिए कहा गया है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।’ अर्थात् जिस घर में नारी की पूजा की – जाती हैं, वहाँ देवता निवास करते हैं।

(4) पर्यावरणीय मूल्य- ‘पर्यावरण’ शब्द परि + आवरण से मिलकर बना है ‘परि’ का अर्थ है ‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘ढँका हुआ’ अर्थात् हमारे चारों ओर उपस्थित आवरण पर्यावरण कहलाता है, एवं इसकी रक्षा तथा संरक्षण प्रदान किया जाना पर्यावरणीय मूल्य कहलाता है। आज सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण का दोहन हो रहा है, जिससे जीवन संकट में है। अतः पर्यावरणीय मूल्यों की रक्षा किया जाना, हमें जनजीवन प्रदान किए जाने जैसा है।

(5) वैज्ञानिक मूल्य- भारत जैसे वृहद् देश में अंधविश्वासों के खिलाफ एक मुहिम चलायी जानी आवश्यक है, जिसको वैज्ञानिक मूल्यों के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। लोगों में वैज्ञानिक तथ्यों के प्रति जागरुकता पैदा करके उनमें तर्कयुक्तता एवं ज्ञान के प्रति उत्सुकता आदि समाहित किया जाए।

(6) सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्य- सामाजिक मूल्य परिवर्तनशील होते हैं। अतः जो मूल्य हमारे लिए स्थिर होते हैं वो हमेशा गतिमान रहते हैं तथा कुछ सामाजिक मूल्य समय के साथ परिवर्तनशील होते हैं। राजनीतिक मूल्यों के पालन के बिना एक सभ्य एवं लोकतांत्रिक देश की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि जब तक जनता-जनार्दन अपने राष्ट्र के नेताओं एवं शांसक-तंत्र से संतुष्ट नहीं होगी तब तक शान्ति की स्थापना नहीं की जा सकती है।

मूल्य एवं नैतिकता- नैतिक शब्द निष्ठ, धर्म, गुण, भाव तथा क्रिया आदि का वाचक है। ‘नैतिकता’ शब्द को शब्दों में बाँध पाना कठिन है। क्योंकि इसका क्षेत्र अत्यंत वृहत् है। नैतिकता धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि जगहों पर प्रयोग की जाती है। नैतिकता का एक मात्र उद्देश्य ‘प्राणियों का कल्याण’ है, “जिन गुणों के कारण मानव को मानव कहा जाता है।” इस प्रकार मानव धर्म का पालन करने वाले व्यवहार को अपनाया जाना ही नैतिकता है। इसे हम निम्न वर्णित परिभाषाओं द्वारा अधिक स्पष्ट कर सकते हैं –

महात्मा गाँधी के शब्दों में- “नैतिक कार्यों में सदा सार्वजनिक कल्याण की भावना विद्यमान रहती है, उसका लाभ उसको अथवा उसके परिवार को नहीं मिलता, बल्कि उसमें प्रत्येक मानव के लिए दया भाव निहित होता है। कार्य अच्छा हो या पर्याप्त नहीं, उसके करने के पीछे इरादे का होना भी आवश्यक हैं। कोई दया से द्रवित होकर दरिंद्र को भोजन करा देता है और कोई मान प्रतिष्ठा के लिए भोजन कराए तो पहले का कार्य नैतिक हुआ दूसरे का कदापि नहीं।”

हरबर्ट महोदय के अनुसार “निम्नतर प्रवृत्तियों का दामन एवं उच्चतर विचारों का सृजन ही नैतिकता है।”

एनीबेसेन्ट के शब्दों में- “धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की हमें उतनी आवश्यकता है, जितनी शारीरिक एवं मानसिक शिक्षा की।”

मदन मोहन मालवीय जी के अनुसार- “नैतिकता मनुष्य की उन्नति का मूलाधार है, नैतिकता से रहित व्यक्ति पशुओं से भी निकृष्ट है। नैतिकता के अभाव में मनुष्य अथवा देश का विकास अवश्यम्भावी है। अतः नैतिकता हमारा व्यापक गुण है एवं किसी भी कीमत पर हमें इसे नहीं छोड़ना चाहिए।”

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