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सांस्कृतिक ठहराव का अर्थ एवं सांस्कृतिक शक्तियों का प्रभाव

सांस्कृतिक ठहराव का अर्थ एवं सांस्कृतिक शक्तियों का प्रभाव
सांस्कृतिक ठहराव का अर्थ एवं सांस्कृतिक शक्तियों का प्रभाव
क्या आधुनिक प्रभाव के कारण भारत का सांस्कृतिक मूल्य ठहराव की दिशा में अग्रगामी है? परीक्षण कीजिए।

सांस्कृतिक ठहराव का अर्थ – वर्तमान समय की व्यापकता की प्रभाविता ही सांस्कृतिक ठहराव की स्थिति का द्योतक है।

समाज की संस्कृति का निर्धारण करने में दो कारकों के बीच होने वाली अन्तः क्रिया का प्रभाव पड़ता है। जिसमें प्रथम समाज द्वारा प्रौद्योगिकी एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धि एवं द्वितीय उस समाज के प्रमुख मूल्य एवं उद्देश्य किसी भी समाज की संस्कृति इन दोनों के मध्य होने वाली अन्तः क्रिया द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार सांस्कृतिक ठहराव को व्यापक अर्थ में लिया जाता है।

ओटावे महोदय का विचार है कि वह अन्तःक्रिया एवं द्विमुखी प्रक्रिया है अर्थात् प्रविधियाँ, उद्देश्य एवं मूल्य व संस्कृति परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं एवं संस्कृति के निर्धारण हेतु इनमें गतिशील अन्तःक्रिया पायी जाती है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों का प्रभाव-

रहन-सहन, खान-पान के तौर-तरीकों की परिपाटी पुराकाल से आज तक में बेहद बदलाव की स्थिति प्राप्त हुई है। पशुवत जीवन से शुरुआत करके आज हम सभ्य मानव की संस्कृति में पल-बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिकी प्रगति ने आज हमें शिकार पर ला कर खड़ा किया है।

अतः हम आज समाज में निम्नवत् परिवर्तित दृश्य देख रहे हैं-

(1) शैक्षिक परिवर्तन- शिक्षा में कम्प्यूटर विज्ञान को समाहित किया गया एवं कम्प्यूटर विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया गया।

(2) धार्मिक परिवर्तन- कम्प्यूटर जन्म-पत्री इत्यादि का निर्माण करता है।

(3) आर्थिक परिवर्तन- समाज में कम्प्यूटर बनाने के नये-नये उद्योगों का आविष्कार हुआ।

(4) राजनैतिक परिवर्तन- चुनाव आदि के परिणाम हेतु कम्प्यूटर का प्रयोग किया गया

(5) सामाजिक स्थिति एवं जनमत पर प्रभाव- जन साधारण मानव से ज्यादा कम्प्यूटर पर विश्वास करता है क्योंकि यह वस्तुनिष्ठ है। कम्प्यूटर को हिन्दी भाषा में ‘संगणक’ कहकर पुकारा जाता है।

आगबर्न के अनुसार किसी भी तकनीकी स्तर में परिवर्तन आने का आशय है, भौतिक संस्कृति में बदलाव आना एवं वह बदलाव तभी सार्थक होगा, जबकि अभौतिक संस्कृति अर्थात् मूल्यों एवं उद्देश्यों में परिवर्तन आयगा यदि भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आता है तो अभौतिक संस्कृति अर्थात् मूल्यों के उद्देश्यों में परिवर्तन नहीं आता है, तो उसे सांस्कृतिक ठहराव कहते हैं।

आधुनिक भारत विभिन्नताओं से भरा हुआ राष्ट्र है। यहाँ जाति, धर्म, भाषा, परम्पराओं एवं मूल्यों की दृष्टि से भित्रता विद्यमान हैं एवं ऐसे देश में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह इन विभिन्नताओं के मध्य एकता स्थापित करे। इसी कारण शिक्षाशास्त्रियों एवं समाजशास्त्रियों का यह विचार है कि शिक्षा एवं संस्कृति परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिए। परन्तु इस संबंध में जानने से पूर्व हमें संस्कृति क्या है? पर विचार करना होगा। वास्तव में संस्कृति मनुष्य की ऐतिहासिक विरासत है। संसार में मनुष्य द्वारा सृजित जितनी भी बनाते हैं, उन सभी को हम संस्कृति के अन्दर निहित करते हैं। इन सृजित बातों का प्रत्यक्ष रूप भी हो सकता है एवं अप्रत्यक्ष भी इसी आधार पर यह कह सकते हैं कि किसी समाज में मनुष्य की सभी उपलब्धियाँ उस समाज की संस्कृति है। कुछ विद्वानों की धारणा है कि मनुष्य की सभी उपलब्धियाँ संस्कृति नहीं वरन् उन उपलब्धियों में से जो लोकहितकारी हैं, वह संस्कृति है।

भारतीय विचारधारा संस्कृति को एक पवित्र संस्कार के रूप में स्वीकार करती है। इस प्रकार संस्कृति एक भावात्मक संगठन है जिसका विकास समाज के बीच स्वयं होता है, एवं जो मनुष्य आचार-विचार एवं व्यवहार का आधार होती है। यह मनुष्यों के मूल्यों, विश्वासों, मान्यताओं एवं आदर्शों के रूप में पल्लवित होती है।

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