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पत्रकारिता के स्वरूप एवं प्रकार | Nature and types of Journalism in Hindi

पत्रकारिता के स्वरूप एवं प्रकार
पत्रकारिता के स्वरूप एवं प्रकार

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 पत्रकारिता के स्वरूप एवं प्रकार 

पत्रकारिता का स्वरूप- वस्तुतः पत्रकारिता ही वह माध्यम है जिसके अन्तर्गत हम विश्व जीवन से संयुक्त होते हैं। आज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यस्तता प्रधान जीवन में समाचार-पत्र हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चला है। जिस तरह शारीरिक भूख शांत करने के लिए भोजन जरूरी है, उसी तरह मानसिक तृप्ति के लिए पत्र-पत्रिकाएं जीवन के लिए अनिवार्य बन चली हैं।

“पत्रकारिता वास्तव में एक चुनौती है जिसके आवश्यक गुण हैं-उत्तरदायित्व, अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना, सभी दबावों से परे रहना, सत्य प्रकट करना, निष्पक्षता, समान और सभ्य व्यवहार।”

हिन्दी पत्रकारिता ने अपने स्वरूप और अपने चरित्र में बुनियादी परिवर्तन किये। खबरों की स्थूलता की जगह उसके तह में छिपी सच्चाई को खोज निकालने की प्रवृत्ति विकसित हुई और हिन्दी पत्रकारिता ने आमजन के दर्द को आवाज देने का काम ही हाथ में नहीं लिया, उसके कारणों को तलाशने एवं उस पर निर्भीकता के साथ भरपूर हमला करने की ओर भी प्रवृत्त हुई। आठवें दशक के पूर्वार्द्ध तक किसी राष्ट्रनायक भाषण को आँख मूदकर अखबार की सुर्खियां बनाने वाले समाचार पत्रों ने ऐसी खबरों को प्रमुखता देनी शुरू की जिनका सीधा सम्बन्ध पाठक वर्ग से होता है। असीमित ऊर्जा और आकाशी चेतना ने उसे दिग्विजयी आत्मशक्ति दी उसकी बदौलत वह न केवल तंत्र के सामने तनकर खड़ी हुई वरन ‘लोक’ के लिए सुरक्षा-कवच भी बन गयी। पत्रकारिता ने जहाँ एक ओर सत्ता के घिनौने खेल को निर्भीकता के साथ बेनकाब करना शुरू किया वहीं जर्जर, पाखण्डों, मान्यताओं, आडम्बरों पर भी प्रहार किया। जातिवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद, धर्मान्धता, क्षेत्रवाद, जैसी संकीर्ण प्रवृत्तियों के उत्स खोजे और उन तत्वों को शक्ति दी जिनसे देश की पहचान बनती थी। व्यक्ति को उसकी गरिमा और अस्मिता का बोध कराया तथा सांस्कृतिक-सामाजिक चेतना के तारों को लय दिया। कर्तव्य बोध ने हिन्दी पत्रकारिता को गवेषणात्मक बनाया और वह जलते सवालों पर मुखर बहस का सार्थक मंच बनी मानवीय जीवन के चाहे जिस पहलू से जुड़े हों। कभी-कभी तो वह खुलकर एक पक्ष के रूप में आती हुई दिखाई देती है। तटस्थता की पुरानी अवधारणा अन्तिम सांसें ले रही हैं। खबरों और विशेष रपटों पर कभी-कभी तो सम्पादक की अपनी दृष्टि इतनी अधिक हावी दिखती है कि सही तथ्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। यह लक्षण शुभ है या अशुभ इस विवाद में पड़े बिना इतना तो कहा जा सकता है कि जनसाधारण के प्रति हिन्दी पत्रकारिता की प्रतिबद्धता बढ़ी है। कथ्य की प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए शिल्पगत प्रयोग हुए हैं।

पत्रकारिता का प्रकार : पत्रकारिता के प्रकारों का अध्ययन एवं अनुशीलन क्रमशः निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

खोज पत्रकारिता, ग्रामीण पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, फिल्म पत्रकारिता, उद्योग पत्रकारिता, बाल पत्रकारिता, दूरदर्शन पत्रकारिताा, रेडियो पत्रकारिता, विज्ञान पत्रकारिता, पीत पत्रकारिता।

खोज पत्रकारिता- समाचार -पत्र उद्योग की आपसी प्रतिस्पर्धा ने खोज पत्रकारिता को भरपूर बढ़ावा दिया। प्रतिद्वन्द्वी अखबारों से अलहदा कुछ नयी और सनसनीखेज खबर पाठकों तक पहुंचाकर अखबार को लोकप्रिय बनाने की मंशा के चलते खोज-खेबरों की बहार सी आ गयी है। हालत यह है कि संवाददाता से लेकर सम्पादक तक की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता का मापदण्ड ही बन गयी हैं खोज-खबरें। संवाददाता की कार्यकुशलता इस बात से आंकी जाने लगी है कि वह कितनी ‘एक्सक्लूसिव स्टोरी’ ले आता है और अखबार तथा सम्पादक की प्रतिष्ठा इस बात से बनती है कि कितनी खोज-खबरें छपती हैं। समाचार पत्र हो या पत्रिकाएं, उनमें एकरसता आने का मतलब होता है कि अकाल मौत। एकरसता नीरसता को जन्म देती है और नीरसता पाठक-वर्ग का दायरा क्रमशः छोटा करती जाती है। इसलिए एक सम्पादक की कारयित्री प्रतिभा और कल्पनाशक्ति की परीक्षा सम्बद्ध पत्र-पत्रिकाओं की जीवन्तता से ही होती है, जिसे बनाये रखने में साज-सज्जा कम, पठनीय सामग्री का अधिक योगदान होता है और पठनीय सामग्री में रोचकता एवं आकर्षण पैदा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है खोज खबरों की।

पत्रकार चाहे फील्ड में हो चाहे टेबुल पर, कुछ नया करने की आकांक्षा उसके अन्दर घुमड़ती रहती है। खबरों के पीछे छिपी खबरों की तलाश और खबरों के बीच से खबरें निकाल लेने की ललक उसके अन्दर होती है। वह अपनी कल्पना शक्ति, विश्लेषण क्षमता तथा सूक्ष्म दृष्टि की सहायता से खबरें खोजता और गढ़ता है। अनुसंधान और निर्माण की यह प्रक्रिया जटिल चाहे जितनी हो, जो कुछ नया बनता है उसकी विश्वसनीयता रत्ती भर भी कम नहीं होती। तथ्य अपने मूल रूप में तो ज्यों के त्यों होते हैं, उनसे जुड़े सवालों को अलबत्ता उकेरने की कोशिश की जाती है। परत-दर-परत उघाड़कर समाचारों के तह तक पहुंचना और उसके असली चेहरों को पहचानना पत्रकार का लक्ष्य होता है। खोज-खबरों में तथ्य-संकलन ही नहीं होता उसका विश्लेषण भी होता है और कभी-कभी भविष्य की ओर सटीक संकेत भी। खोज खबरें राजनीतिक भी हो सकती हैं, सामाजिक भी और विभिन्न स्तरों के भ्रष्टाचार सम्बन्धी भी। राजनीति और समाज से सम्बन्धित खोज-खबरों के लिए कुछ अधिक कल्पनाशीलता तथा विश्लेषण क्षमता की आवश्यकता होती है। बिखरे सूत्रों तथा संकेतों में तारतम्य स्थापित कर एक आधार तैयार करने और उस पर एक आकार खड़ा करने का कार्य काफी मुश्किल होता है। थोड़ी सी चूक से यह पूरा आकार बालू की भीत साबित हो सकता है और पत्रकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसके विपरीत अपराध एवं भ्रष्टाचार सम्बन्धी खोज-खबरों में दस्तावेजी प्रमाणों की गुंजाइश अपेक्षाकृत अधिक होती है इसलिए इनकी सत्यता को चुनौती भी कम मिलती है और पत्रकार अपने आपको नैतिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है। राजनीति से सम्बन्धित खोज- खबरों में दस्तावेजी प्रमाणों का अभाव रहता है। इसलिए पत्रकार को सिर्फ हवा में तैरते कुछ बहुरंगी सूत्रों को पकड़कर उन्हें एक रंग में ढालने और फिर तराश कर एक विश्वसनीय आकार देने का अनगढ़ कार्य करना पड़ता है- इस संभावना के साथ कि जिन सूत्रों को उसने अपनी पैनी दृष्टि से देखा है, पकड़कर सहेजने का साहस किया है वे फिर अपना रंग न बदल दें।

ग्रामीण पत्रकारिता- प्रवीण दीक्षित ने अपनी पुस्तक ‘जन-माध्यम और पत्रकारिता’ में  ग्रामीण पत्रकारिता के निम्न उद्देश्य गिनाये हैं-

(1) ग्रामीण समाज की उन्नति में आवश्यक उपायों की सफलता के लिए सक्रिय सहयोग देना।
(2) परम्परागत लोक कला, लोक संस्कृति, लोक-संगीत की रक्षा करते हुए संकीर्ण रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों के अंधकार को समतावादी ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करना।
(3) पिछड़े वर्गों में स्वतंत्रता की भावना जागृत करते हुए शोषक-वर्ग का विरोध करना।
(4) रचनात्मक सामाजिक कार्यक्रमों में दलगत भावना से मुक्त सहयोग को प्रेरित करना।
(5) ग्रामीण पुनर्निर्माण में संलग्न आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संगठनों, व्यक्तियों, संस्थाओं, अधिकारियों और रचनात्मक कार्यकर्ताओं के साथ रचनात्मक सहयोग करना।
(6) कुटीर उद्योगों और ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहित करना।
(7) ग्रामीण पुनर्निर्माण में सहायक सामुदायिक विकास कार्यक्रमों, पंचवर्षीय योजनाओं, सहकारिता, श्वेत क्रांति, हरित क्रांति, 20 सूत्री कार्यक्रम, परिवार नियोजन आदि के लक्ष्यों की ओर जन-सामान्य को प्रेरित करना।
(8) ग्राम सभाओं, ग्राम पंचायतों तथा विकास खण्डों को अधिकाधिक सक्रिय, सार्थक तथा गतिशील बनाने के उद्देश्य से रचनात्मक मार्गदर्शन करना।
(9) समाजवादी समाज की अवधारणा के अनुरूप भूमि के वितरण तथा वर्ग-भेद की समाप्ति का मार्ग प्रशस्त करना।
(10) आवास-व्यवस्था तथा यातायात के साधनों के विकास-प्रयासों में सहयोग देना।
(11) मनोरंजन, शिक्षा सहकारिता, तथा सामुदायिक योजनाओं के प्रति ग्रामीणों में सहयोगात्मक भावना जागृत करना।
(12) ग्रामीण स्वास्थ्य तथा स्वच्छता-कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना।
(13) ग्रामीणों में लोकतांत्रिक भावना को जागृत करके स्थानीय स्वायत्तशासी व्यवस्था की ओर प्रेरित करना।
(14) जाति-पाति एवं छुआ-छूत की भावना को समाप्त करना।
(15) ग्रामीणों में श्रमदान की भावना जागृत करके पारस्परिक सहयोग और स्वयंसेवी भावना का विकास करना।
(16) ग्रामीणों की ऋणग्रस्तता-उन्मूलन के द्वारा जीवन-स्तर को उन्नत करना।
(17) कुटीर-उद्योगों को प्रोत्साहित करके ग्रामीण बेरोजगारी दूर करते हुए सर्वांगीण आत्म-निर्भरता की शक्ति उत्पन्न करना।
(18) कृषि के साधनों, विधियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार करना।
(19) ग्रामीणों के जीवन स्तर को उन्नत करना।
(20) ग्रामीण जनशक्ति एवं साधनों को स्वयं-स्वावलम्बी होते हुए सम्पूर्ण राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रेरित और सक्रिय करना।

खेल पत्रकारिता : एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि उसका हर नागरिक स्वस्थ हो। शरीर एवं स्वस्थ दिमाग का सीधा सम्बन्ध होता है और खेल ही ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा स्वास्थ्य संवर्द्धन होता है। इस प्रकार खेलकूद हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। आज हमारे देश में ही नहीं, देश-विदेश में काफी खेल खेले जाते हैं। खेलकूल का आनन्द लेना और खेल समारोहों का आयोजन करना मानव संस्कृति एवं सभ्यता का अभिन्न अंग रहा है। खेलों व खिलाड़ियों के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा खेल- प्रेमियों के मन में होती है। उसी जिज्ञासा को ये पत्रिकायें पूरा करती हैं। आज खिलाड़ी लोग फिल्मी सितारों की तरह रोशन हो रहे हैं। जनता कमेंट्रियाँ सुनने व दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक आदि पत्र-पत्रिकाओं में खेल सम्बन्धी सामग्री को पढ़ने में गहरी रूचि ले रही है, विशेषकर नई पौड़ी। यही कारण है कि आज एक पत्र-पत्रिका खेल सम्बन्धी एक सामग्री तो नित्य देती ही है वरन वे इससे सम्बन्धित विशेषांक भी निकालने लगे हैं।

1951 में नई दिल्ली में हुए एशियाई खेलों की समीक्षा को कुछ समाचार पत्रों ने विस्तार से स्थान दिया, पर सही मायने में 1960 में इसकी विधिवत् शुरुआत हुई। अतः 1960 से ही खेल पत्रकारिता की शुरुआत मानी जाती है। आज शायद ही कोई ऐसा दैनिक, साप्ताहिक, मासिक होगा जो खेलकूद से सम्बन्धित सामग्री न देता हो। नवभारत टाइम्स में शुरू- शुरू में एक आध कॉलम पर खेल समाचार छप जाया करता था, पर बाद में लोगों की रुचि देखकर पूरा एक पृष्ठ इसके लिए निर्धारित कर दिया गया। राजधानी से प्रकाशित होने वाले दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के अलावा उत्तर प्रदेश राज्य से निकलने वाले ‘आज’, ‘स्वतंत्र भारत’, ‘दैनिक जागरण’ तथा राजस्थान से प्रकाशित होने वाले ‘राष्ट्रदूत’, ‘दैनिक नवज्योति’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, इन्दौर की ‘नई दुनिया’ तथा मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों से प्रकाशित होने वाले दैनिकों में इसे काफी स्थान मिलने लगा है।

आजकल तो बाल पत्रिकाओं में भी खेल-कूद से सम्बन्धित सामग्री छपने लगी है ताकि बच्चों में शुरू से ही खेल के प्रति रुझान पैदा हो। फिर भी यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि नवें एशियाई खेलों के बाद थोड़े से समय में ही खेल पत्रकारिता ने काफी उन्नति की है। पंजाब खेल-खेल (1976, जालन्धर), क्रीड़ा जगत (जयपुर से पाक्षिक), भारतीय कुश्ती, क्रिकेट सम्राट (1929 दिल्ली), खेल खिलाड़ी (1970 दिल्ली), खेल सम्राट (1976), ‘स्पोर्ट्स वर्ल्ड’ (1976), क्रीड़ालोक (1976), स्पोर्ट्स सिटी (1973), खेल भारती आदि काफी लोकप्रिय हैं।

फिल्म पत्रकारिता- वर्तमान में चलचित्रों से बढ़कर दूसरा जनसंचार का माध्यम नहीं है। आज आम लोगों का रुझान फिल्मों की तरफ काफी बढ़ गया है क्योंकि आज के व्यस्त व महंगाई के जमाने में फिल्म से बढ़कर सस्ता व सरलता से प्राप्त होने वाला मनोरंजन का साधन कोई और नहीं है। जैसे-जैसे लोगों का आकर्षण फिल्मों की तरफ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे फिल्मी पत्रकारिता का भी विकास होता जा रहा है। फिल्मी पत्रकारिता से तात्पर्य उस पत्रकारिता से है जिसका कार्य फ़िल्म-विषयक आधुनिकतम जानकारी देना है। इन पत्रिकाओं मे फिल्मों की समीक्षा, फिल्मी सितारों के नाम, फिल्मी पूर्वकथा, चित्रकथा, फिल्मी कार्टून तथा तकनीकी कार्यकर्ताओं का परिचय, फिल्मी दुनिया से सम्बन्धित लोगों के जीवन की अंतरंग झांकियाँ, रंगपट पर घटने वाली रोचक बातें निहित रहती हैं।

उद्योग पत्रकारिता- देश की उन्नति के साथ-साथ नित नये उद्योग-धन्धों का श्रीगणेश हो रहा है। बाजार में मांग और सप्लाई के अनुसार भावों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। शासन का बजट जब आता है तो सामान्यतः नागरिकों को यह जानने की उत्सुकता होती है कि किन-किन चीजों के मूल्यों में कमी हुई है? किन-किन चीजों का दाम बढ़ा है ? उत्पादन शुल्क का उसके ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा। बाजार में साबुन -तेल आदि चीजें अचानक क्यों गायब हो गयी? ऐसा क्यों हुआ ? अमुक देश से व्यापार शुरू हो रहा है, ऐसे में कौन-सी चीज सस्ती या तेज होगी? इन सब प्रश्नों का समाधान पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपने वाले उद्योग व्यवसाय या व्यापारिक पृष्ठ से होता रहता है। अतः यह पत्रकारिता काफी उपयोगी है। इस पत्रकारिता में विभिन्न प्रतिष्ठानों की उतरती-चढ़ती शेयर मार्केटिंग कीमतें, कम्पनी रिपोर्ट, भावी विस्तार की योजनाएं, प्रति दिवसीय बाजार भाव, मण्डी समीक्षाएँ व औद्योगिक गतिविधियों निहित हैं।

उद्योग व्यापार पत्रकारिता से देश के योजनाबद्ध आर्थिक विकास में अच्छी-खासी सहायता मिलती है। अर्थव्यवस्था से सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी होती है। समाज का एक वर्ग विशेष अर्थात् वणिक, व्यापारी, साहूकार, बैंक, दुकानदार, शेयर होल्डर या लेन-देन काम करने वाले लोग मण्डी समाचारों के बिना एक दिन भी अपना काम नहीं चला सकते।

भारत में उद्योग व्यवसाय पत्रकारिता पुरानी नहीं है। सबसे पहले इससे सम्बन्धित पत्रिका कलकत्ता से 1886 में ‘कैपिटल’ नाम की निकली। पर इसके बाद 50 वर्षों तक इसका कोई अन्य विकास नहीं हुआ। बाद में बम्बई से 1910 में सम्प्रति 1928 में कलकत्ता से इण्डियन फाइनेंस, 1943 में दिल्ली से साप्ताहिक ईस्टर्न इकनामिस्ट का आरम्भ हुआ। दैनिक पत्रों में सबसे पहले ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ ने उद्योग व्यवसाय को पृथक स्थान दिया। स्वतंत्रता के पश्चात् कई पत्र-पत्रिकाओं में दैनिक बाजार भाव, बाजार रूख और आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण छपने लगा। हिन्दी पत्रों में कलकत्ता का ‘विश्वमित्र’ पहला दैनिक पत्र है जिसने उद्योग वाणिज्य से सम्बन्धित समाचारों को नियमित रूप देना आरम्भ किया। बिहार से – उद्योग बन्धु (1974, पटना), ग्राम श्री (1959, बम्बई), महाराष्ट्र जागृति (1956, बम्बई), खादी ग्रामोद्योग (1954, बम्बई), उद्यम (1945 नागपुर), उत्तर प्रदेश- अलीगढ़ उद्योग समाचार (1978), व्यापार संदेश, उद्योग विकास इंदौर से- भावताव, पश्चिमी बंगाल से इंडस्ट्रियल गजट, दिल्ली से- व्यापार उद्योग समाचार (1974) उद्योग सम्बन्धी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।

बाल पत्रकारिता- बचपन में सीखा गया पाठ मस्तिष्क में इतना गहरा घुसकर बैठ जाता है कि जिन्दगी भर याद रहता है। बालक जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है। उसके मस्तिष्क में सदैव क्या, क्यों, कैसे, कहाँ आदि प्रश्न रहते हैं। इन सब प्रश्नों का वह समाधान चाहता है। चाहे वह समाधान उसे किसी से प्राप्त हो या वह देख-सुन कर समझ जाता हो। अगर बाल सुलभ मन के प्रश्नों का समाधान न किया जाए तो उसका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जायेगा।

महाराष्ट्र- इन्द्रजाल कॉमिक्स (1964 बम्बई), राजस्थान से- वैज्ञानिक बालक, बिहार से बालक (1926 पटना), उभरते सितारे (1977 नालन्दा), तमिलनाडु से- चन्दामामा (1949 मद्रास), गुड़िया (1973 मद्रास), चम्पक (1968), राजा भैया (1959), बाल भारती (1948), नन्दन (1964), पराग (1958), सुमन सौरभ (दिल्ली), बालहंस (राजस्थान-जयपुर)।

दूरदर्शन पत्रकारिता- स्वतंत्रता के बाद भारत में दूरदर्शन का आरम्भ भी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 15 सितम्बर, 1959 को दिल्ली में दूरदर्शन की शुरुआत सामाजिक शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से की गयी थी। यह 1976 तक आकाशवाणी का ही एक अंग बना रहा। 1 अप्रैल, 1976 को पृथक दूरदर्शन महानिदेशालय की स्थापना हुई और तब से यह निरन्तर उल्लेखनीय प्रगति करता आ रहा है। 15 अगस्त, 1982 का दिन भारतीय दूरदर्शन के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसने झण्डारोहण के साथ ही रंगीन कार्यक्रमों का प्रसारण तथा 1982 की ही एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि थी- चुने हुए राज्यों में उपग्रह (इनसेट-1) के द्वारा क्षेत्र विशेष के लिए उपेक्षित ग्रामीण तथा शैक्षणिक कार्यक्रम का प्रसारण तथा माइक्रोवेव लिंक और उपग्रह के माध्यम से राष्ट्रीय सेवा का प्रारम्भ और नवें एशियाई खेलों का समस्त भारत में एक साथ रंगीन प्रसारण। 23 नवम्बर, 1997 को प्रसार भारती ने दोनों संचार माध्यमों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। प्रसार भारतीय की स्थापना से पहले दूरदर्शन अपने महानिदेशक की अध्यक्षता में सूचना और प्रसारण मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय था। दूरदर्शन के आविष्कार के साथ दूरदर्शन द्वारा प्रसारित कार्यक्रम समाचार, सामयिक समीक्षाओं, आजकल, फोकस आदि राजनीतिक एवं समाज सापेक्ष वृत्तान्तों को दूरदर्शन पत्रकारिता के अन्तर्गत समाहित किया जाता है।

रेडियो पत्रकारिता- आधुनिक युग के सशक्त प्रचार एवं सूचना माध्यम रेडियो का आरम्भ सन् 1927 में इण्डियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी द्वारा बम्बई और कलकत्ता में दो केन्द्रों की स्थापना से हुआ। यह एक निजी कम्पनी थी। सन् 1930 में भारत सरकार ने प्रसारण कार्य को इण्डियन स्टेट ब्राडकास्टिंग के नाम से अपने नियंत्रण में कर लिया। 8 जून 1936 को इसका नाम बदलकर आल इण्डिया रखा गया तबसे आकाशवाणी का लगातार प्रसारण हो रहा है। समाचारों में समाचार बुलेटिन प्रतिदिन प्रसारित होता है। इनमें से घरेलू सेवा के 12 घंटे 5 मिनट अवधि के 88 बुलेटिन और 41 प्रादेशिक समाचार एकांशों से 17 घंटे 41 मिनट की अवधि में 132 बुलेटिन प्रसारित होते थे।

विज्ञान पत्रकारिता- आज का युग विज्ञान का युग है। आज मानव चाँद पर पहुँच चुका है। विज्ञान पत्रकारिता एक ऐसी कड़ी है जो जन-जन को आकर्षित करती हुई मानव को विज्ञान से जोड़ देती है। टेक्नोलॉजी, मानव द्वारा चन्द्रमा पर अवतरण, मानव रहित अन्तरिक्ष यानों की सफलता, ऊर्जा के साधन, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, मकान, वातावरण की रक्षा, कृषि ऊर्जा आदि सभी विषय विज्ञान से सम्बन्धित हैं।

पीत पत्रकारिता- पीत पत्रकारिता को यैलोजर्नलिज्म या गटर पत्रकारिता कहते हैं। पीत पत्रकारिता बहुचर्चित हो रही है। इसका तात्पर्य है जिसमें पत्रकारिता के सभी तत्वों को पी लिया जाये। सच्चाई से दूर कल्पना पर आधारित पत्रकारिता ही पीत पत्रकारिता है। भारतीय संस्कृति में पीला शुभ ब्रह्मचर्य मंगल का प्रतीक है जबकि पत्रकारिता में पीला मन-गढ़ंत, प्रभावोत्पादक प्रतिष्ठाविहीन क्रिया-कलाप है।

कुकृत्यों से सम्बद्ध उत्तेजनात्मक एवं विस्मयकारी समाचारों को प्रकाशित करने की वृत्ति को पीत पत्रकारिता कहते हैं। ओस्वाल्ड गैरीसन विलाड ने ऐसी पत्रकारिता को ‘गटर पत्रकारिता’ एवं सम्पादक चार्ल्स ए0 डाना ने ‘एलोप्रेस’ की संज्ञा दी। गटर का अर्थ ही होता है- गंदा जीवन या नाली सामाजिक अधः पतन।

जोसेफ पुलित्जर (1911-1947) अमेरिका में उत्तेजना और स्फुरण से परिपूर्ण पत्रकारिता के जनक थे। पुलित्जर के पत्र ‘दि वर्ल्ड’ में एलोकिड तथा हर्ट के ‘जनरल’ में आश्चर्यचकित करने वाले समाचारों की भूमिका में पीत पत्रकारिता का बीजारोपण हुआ।

ऐसी पत्रकारिता में समाज का घिनौना रूप उभर कर प्रस्तुत हो रहा है। पीत पत्रकारिता में समाज हित गौण हो गया है। आधारहीन उत्तेजक बातों को प्रकाशित कर पाठकों को भ्रम में डालकर अहित कर रहा है। आज पत्रों का प्रसार बढ़ाने एवं अर्थोपार्जन का यह गिरा हुआ रूप दिखाई दे रहा है। पीत पत्रकारिता ऐसी विचित्र पत्रकारिता है जिसमें पत्रकारिता के और सभी तत्व होते हैं, परन्तु उसकी आत्मा नहीं होती। तथ्यों को तोड़ मरोड़कर ऐसे उत्तेजक नशीले समाचार छापे जाते हैं जिससे पाठकों का समूह उस पर टूट पड़ता है।

आज पीत पत्रकारिता समाज को मात्र छल भुलावा एवं कुपथ की ओर ले जा रही है। राष्ट्र की विषमताओं, विसंगतियों और विकृतियों को उछाल-उछालकर ये सफेद पोश पत्रकार अपने कलुषित तन-मन की दुर्गन्ध फैला रहे हैं।

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