पत्रकारिता का अर्थ एवं परिभाषा
पत्रकारिता का अर्थ एवं परिभाषा : सामाजिक जीवन में चलने वाली घटनाओं के बारे में लोग जानना चाहते हैं, जो जानते हैं वे उसे बताना चाहते हैं। जिज्ञासा की इसी वृत्ति में पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की कथा छिपी है। पत्रकारिता जहाँ लोगों को उनके परिवेश से परिचित कराती हैं, वहीं वह उनके होने और जीने में सहायक है। शायद इसी के चलते इन्द्रविद्यावाचस्पति पत्रकारिता को ‘पांचवां वेद’ मानते हैं। वे कहते हैं- “पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं।”
वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है। वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है। देश- दुनिया में हो रहे नए प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है। इसी कारण विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है। वस्तुतः आज की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है। यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर किसने का साधन बन गई है। वास्तव में पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है। संस्कृति, सभ्यता और स्वतंत्रता की वाणी होने के साथ ही यह जीवन में अभूतपूर्व क्रांति की अग्रदूतिका है। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, आशा- निराशा, संघर्ष-क्रांति, जय-पराजय, उत्थान-पतन आदि जीवन की विविध भावभूमियों की मनोहारी एवं यथार्थ छवि हम युगीन पत्रकारिता के दर्पण में कर सकते है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो० अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों में “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है।” वास्तव में प्रतिक्षण परिवर्तनशील जगत का दर्शन पत्रकारिता के द्वारा ही संभव है।
पत्रकारिता की आवश्यकता एवं उद्भव पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति की उत्कण्ठा, चिंतन एवं अभिव्यक्ति की आकांक्षा ने भाषा को जन्म दिया ठीक उसी प्रकार समाज में एक-दूसरे का कुशल-क्षेम जानने की प्रबल इच्छा-शक्ति ने पत्रों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया। पहले ज्ञान एवं सूचना की जो थाती मुट्ठी भर लोगों के पास कैद थी, वह आज पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंच रही है। इस प्रकार पत्रकारिता हमारे समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार्य है। उसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है। शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम कार्य माना गया। इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैं-
“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”
पत्रकारिता का अर्थ : सच कहें तो पत्रकारिता समाज को मार्ग दिखाने, सूचना देने एक जागरूक बनाने का माध्यम है। ऐसे में उसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बढ़ जाती है। यह सही
अर्थों में एक चुनौती भरा काम है।
प्रख्यात लेखक-पत्रकार डॉ0 अर्जुन तिवारी ने इनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है- “पत्रकारिता के लिए ‘जर्नलिज्म’ शब्द व्यवहार आता है। जो ‘जर्नल’ से निकला है। जिसका शाब्दिक अर्थ- “दैनिक दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों, सरकारी बैठकों का विवरण जर्नल में रहता था। 17वीं एवं 18 वीं शताब्दी में पीरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग आरंभ हुआ। 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना एवं विद्वतापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है। समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वह रेडियो हो या टेलीविजन, इसी के अन्तर्गत समाहित हैं।”
एक अन्य संदर्भ के अनुसार ‘जर्नलिज्म’ शब्द फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से उपजा है। जिसका तात्पर्य है ‘प्रतिदिन के कार्यों अथवा घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना।’ पत्रकारिता मोटे तौर पर प्रतिदिन की घटनाओं का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करती है। पत्रकारिता वस्तुतः समाचारों के संकलन, चयन, विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रक्रिया है। पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है। इसका काम जनता एवं सत्ता के बीच एक संवाद-सेतु बनाना भी है। इन अर्थों में पत्रकारिता के फलित एवं प्रभाव बहुत व्यापक हैं। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना। इन तीनों उद्देश्यों में पत्रकारिता का सार-तत्व समाहित है। अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। पत्रकारिता देश की जनता की भावनाओं एवं चित्तवृत्तियों से साक्षात्कार करती है। सत्य का शोध एवं अन्वेषण पत्रकारिता की पहली शर्त है। इसके सही अर्थ को समझने का प्रयास करें तो अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना इसकी महत्वपूर्ण मांग है।
असहायों को सम्बल, पीड़ितों को सुख, अज्ञानियों को ज्ञान एवं मदोन्मत्त शासक को सद्बुद्धि देने वाली पत्रकारिता है, जो समाज-सेवा और विश्वबन्धुत्व की स्थापना में सक्षम है। इसीलिए जेम्स मैकडोनल्ड ने इसे एक वरेण्य जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकारा है।
“पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ। यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोई चीज है। यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया।”
पत्रकारिता की परिभाषाएँ- समाज एवं समय के परिप्रेक्ष्य में लोगों को सूचनाएं देकर उन्हें शिक्षित करना ही पत्रकारिता का ध्येय है। पत्रकारिता मात्र रूखी-सूखी सूचनाएं नहीं होती वरन् लोगों को जागरूक बनाती है, उन्हें फैसले करने एवं सोचने लायक बनाती है। संवाद की एक स्वस्थ प्रक्रिया का आरंभ भी इसके द्वारा होता है। डॉ0 अर्जुन तिवारी कहते हैं- “गीता में जगह-जगह पर शुभ दृष्टि का प्रयोग है। यह शुभ-दृष्टि ही पत्रकारिता है जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है। गांधीजी तो इसमें समदृष्टि को असत्य, अशिव महत्व देते रहे। समाजहित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जा सकता है। एवं असुंदर के खिलाफ ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ की संखध्वनि ही पत्रकारिता हैं।” इन सन्दर्भो के आलोक में विद्वानों की राय में पत्रकारिता की परिभाषाएं निम्न हैं-
रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर- “ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है। छपने वाले लेख -समाचार तैयार करना ही पत्रकारिता नहीं है। आवर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षण बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गये।”
न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी- “प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है।”
विखेम स्टीड- “मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी। जब कोई यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता।”
सी0जी0 मूलर- “सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति, मूल्यांकन एवं प्रस्तुतीकरण होता है।”
हिन्दी शब्द सागर- “पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है।”
डॉ० बद्रीनाथ कपूर- “पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है।”
-डॉ० शंकरदयाल शर्मा- “पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है। पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए। पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है।”
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