समूह निर्देशन प्रविधि का महत्त्व एवं उपयोगिता
समूह निर्देशन प्रविधि का महत्त्व एवं उपयोगिता- निर्देशन कार्यक्रम को संचालित करने के लिए कुछ विशेष परिस्थितियाँ होती हैं। व्यक्तियों के समूह की स्थितियाँ दो प्रकार की होती है-
1.वह समूह के स्वाभाविक रूप में होता है, यथा- परिवार, कक्षा इत्यादि।
2. वह समूह जिसे समान समस्याओं के आधार पर निर्देशनकर्ता गठित करता है।
समूह निर्देशन तकनीक (Group Guidance Techniques) का उपयोग मुख्यतः निम्न परिस्थितियों में विशेष रूप से निर्देशनकर्ता कर सकते हैं-
1. शैक्षिक कक्षाएँ- शिक्षण संस्थानों की नियमित कक्षाओं को निर्देशन सेवा देने के लिए निर्देशनकर्ता निर्देशन का सामूहिक रूप में ही प्रशासित करता है अर्थात कक्षा के लिए समूह निर्देशन तकनीक का उपयोग किया जाता है। यहाँ पर अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कक्षा में व्यक्तियों या विद्यार्थियों में मूलभूत भिन्नताएँ कम-से-कम होनी चाहिए। यथा-बौद्धिक स्तर में अधिक अन्तर न हो, आर्थिक स्तर में अधिक अन्तर समूह निर्देशन को प्रभावित कर सकता है। निर्देशन सेवा के नियमित कक्षाओं के लिए काफी सरलतापूर्वक उपलब्ध कराया जा सकता है। लेकिन यदि एक ही कक्षा में प्रतिभा सम्पन्न व मन्द बुद्धि दोनों ही प्रकार के विद्यार्थी होंगे तो परिणाम अर्थात् लक्ष्य समस्याओं के निराकरण या समाधान में भिन्नता आ सकती है।
शैक्षिक संस्थानों में अधिगम परिस्थितियाँ (Learning Situations) इस उपयोगिता को पर्याप्त बल देती हैं। समूह निर्देशन तकनीक को उपयोग करते समय शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के मध्य के सम्बन्धों का पूर्ण उपयोग किया जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि निर्देशनकर्ता को शिक्षा मनोविज्ञान की विस्तृत जानकारी होनी चाहिए।
2. सामूहिक गतिविधियों का संचालन- समूह निर्देशन तकनीक को जीविका पाठ्यक्रमों तथा जीविका सम्मेलनों, क्षेत्र अध्ययन का भ्रमण तथा व्यक्ति सम्मेलन (Care Conferences), समूह-भ्रमण (Group-visit) आदि परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है। इस समय निर्देशनकर्ता का कार्य शिक्षक भी कर सकता है; यथा- सभागार, वाचनालय आदि में।
3. सह-शिक्षण स्थिति की व्यवस्था- वर्तमान की शिक्षण व्यवस्था में “सह- शिक्षण व्यवस्था” (Co-education System) काफी प्रचलन में आ चुका है। व्यवहार मनोविज्ञान के आधार पर कहें या लौगिक मनोविज्ञान के आधार पर, लेकिन कुछ दृष्टिकोणों में “सह-शिक्षण व्यवस्था” बाल-अपराधों में अभिप्रेरक का भी कार्य करती हैं। निःसन्देह इसी सन्देह (सम्भावना) को ध्यान में रखते हुए महिला विद्यालयों या महिला महाविद्यालयों की पृथक व्यवस्था करना आरम्भ किया गया। सह शिक्षण संस्थानों की स्थितियों में समूह निर्देशन तकनीक का उपयोग करना आज की परिस्थितियों में नितान्त आवश्यक बन चुका है।
4.निर्देशनकर्ता द्वारा समूह का गठन- आवश्यकतानुसार निर्देशनकर्ता लगभग समान समस्याओं या असमायोजन की समानताओं को आधार मानकर कुछ निर्देशन समूहों का स्वयं गठन करता है। जैसा कि ऊपर दिया गया है कि एक-स्वाभाविक समूह होते हैं दूसरे निर्देशनदाता द्वारा गठित समूह होते हैं। इन समूहों का गठन निर्देशनकर्ता स्वयं समस्याओं की समता को देखते हुए करता है। जिससे कम समय में अधिक निर्देशनार्थियों को निर्देशन सेवा सुलभ कराई जा सकती है। इसमें समूह चर्चा को विशेष महत्त्व दिया जाता है।
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