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विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ एवं परिभाषा
विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ एवं परिभाषा

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन | Organizing Guidance Services in Hindi

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ एवं परिभाषा (Definition and Meaning of Organizing Guidance Services)–  निर्देशन कार्य को विद्यालयों में सफलतापूर्वक संचालन के लिये आवश्यक है कि यह संगठित तथा व्यवस्थित रूप में हो। निर्देशन का महत्त्व शिक्षा एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सभी को स्पष्ट है। अगर हम विद्यालयों में प्रत्येक छात्र को निर्देशन सहायता प्रदान करने का लक्ष्य बना लें तो उसको व्यवस्थित रूप देना होगा। निर्देशन सहायता देना किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं होता है। जोन्स ने इसके सम्बन्ध में कहा है- “निर्देशन को विद्यालय के सामान्य जीवन से पृथक नहीं किया जा सकता है, न इसको विद्यालय के किसी एक विशेष भाग में केन्द्रित किया जा सकता है, न इसके परामर्शदाता या प्रधानाचार्य के कार्यालय तक सीमित किया जा सकता है। क्योंकि निर्देशन सहायता देना विद्यालय के प्रत्ये अध्यापक का कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व है, अतः इस कार्य में सभी का सहयोग प्राप्त होना चाहिये और इसी प्रकार प्रशासित होना चाहिये।”

उपर्युक्त कथन स्पष्ट करता है कि निर्देशन कार्य-विधि का संगठन इस प्रकार किया जाये कि विद्यालय के सभी अध्यापकों का सहयोग प्राप्त हो सके। निर्देशन-कार्य-विधि की सफलता अथवा असफलता इससे सम्बन्धित कर्मचारियों पर निर्भर रहती है। कार्य-विधि की सफलता उसमें संलग्न व्यक्तियों की स्वतःप्रेरणा (Initiative), दूरदर्शिता (Foresight), दक्षता (Skill) पर निर्भर करती है। निर्देशन सेवाओं (Guidance Services) के सम्बन्ध में क्रो और क्रो ने निम्न विचार प्रकट किये हैं-

1. निर्देशन सेवाओं का दृढ़ संगठित रूप स्थापित करना असम्भव ही नहीं अपितु मूर्खतापूर्ण भी है।

2. प्रभावशाली निर्देशन कार्यक्रम लचीला होना चाहिये। आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके।

3. निर्देशन सेवा में सभी सम्बन्धित व्यक्तियों का सामूहिक सहयोग होना चाहिए।

विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन की आवश्यकता (Need of Organization)-

इसकी आवश्यकता का वर्णन निम्नलिखित है-

कौशल के उपयोग में सहायक- पद अलग-अलग स्टॉफ सदस्यों के कौशल, प्रशिक्षण और रुचियों में उपयोग में सहायक होता है एक अध्यापक जो कि शैक्षिक मनोविज्ञान तथा परामर्श में सिद्धान्तों में प्रशिक्षण लेता है उसे इन कौशलों का प्रयोग करने का अवसर प्राप्त होता है।

समन्वय (Co-Ordination)- संगठन स्टॉफ में सदस्यों के कार्य में समन्वय को सम्भव बनाता है निर्देशन का कार्य एक समन्वित कार्य है और टीम वर्क team work में साथ ही होता है।

समय और परिश्रम की बचत का- संगठन का मुख्य एवं महत्वपूर्ण कार्य मुख्य अध्यापक तथा स्टॉफ के सदस्यों में समय तथा परिश्रम की बचत करना हो।

आवश्यकताओं को समझना- यह स्कूल में सभी व्यक्तियों की शरीरिक सामाजिक, भावात्मक तथा बौद्धिक विशेषताओं एवं आवश्यकताओं, भोजन, कार्य आराम तथा शारीरिक आवश्यकताएँ शामिल है वह अध्यापक की अलग-अलग बच्चों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करता है जैसे बुद्धि परीक्षण; अभिरुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण तथा साक्षात्कार (Interview) आदि।

निर्देशन सामग्री का बेहतर प्रयोग- यह उन्नति करने, सभा में समूह बनाने, स्थान (Placement) आदि में सहयोग करता है यह समाज में उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करता है ताकि बच्चों का कल्याण हो सके।

बेहतर समायोजन- वह व्यक्ति को स्वयं में साथ, परिवार, समुदाय तथा समाज में साथ समायोजन में सहायता करता है।

निर्देशन सेवा संगठन के मुख्य कार्य (Main Functions of Guidance Service Organization)-

संगठन के आधारभूत सिद्धान्तों के आधार पर कहा जा सकता है कि निर्देशन सेवा के अन्तर्गत आने वाले कार्यों का निश्चय निर्देशन सेवा को संगठित करते समय कर लेना चाहिए। यद्यपि निर्देशन का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है लेकिन शिक्षण संस्थानों से सम्बद्ध जीवन में इसके कुछ विशेष कार्य क्षेत्रों का निम्न प्रकार उल्लेख किया जा सकता है-

1. निर्देशन सेवा का विशेष कार्य शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तथा विद्यालय की जीवनधारा की ओर विद्यार्थियों के साथ-साथ जन सामान्य को भी उन्मुख करना।

2. संस्थान में प्रवेश सम्बन्धी नियम, प्रवेश शुल्क परीक्षा, आदि को निर्धारित करना भी संगठनों का कार्य ही होता है।

3. संस्थान के लिए हानिकारक नियम, परम्परा में संशोधान करना।

4. विद्यार्थियों एवं विद्यालय के अन्य सदस्यों के सन्दर्भ में विस्तृत अभिलेख (Detail Records) तैयार करके रखना।

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