क्या ‘हिन्दी-दिवस’ भारतवर्ष में राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए? पक्ष अथवा विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
हिन्दी भारत की ऐसी भाषा है जो यहाँ की जनता की अभिरुचि एवं चित्तवृत्तियों के अनुकूल है। जनता की अभिरुचियों एवं चित्तवृत्तियों के निर्माण में देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिस्थितियों का विशेष योगदान होता है। भाषा के माध्यम से इन परिस्थितियों का चित्रण तत्कालीन साहित्य में प्राप्त होता है। राष्ट्र की अखण्डता तथा एकता के विधायक प्रमुख चार तत्व होते हैं। भाषा, धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता।
प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक राष्ट्रीय झण्डा होता है अथवा राष्ट्रीय गान होता है और अपनी भाषा होती है। देश की जनता में एकसूत्रता स्थापित करने का प्रयत्न राष्ट्रभाषा द्वारा सम्पन्न होता है। भाषा जन अभिव्यक्ति का माध्यम है, जनता की विचारधारायें, भावनायें, रीति-रिवाज, परम्परायें और विश्वास, आस्थायें सभी भाषा के द्वारा प्रकट होती है। भारत एक हिन्दी भाषी राष्ट्र है, उसकी राष्ट्रभाषा भी हिन्दी है और राजभाषा भी हिन्दी है। अतः हिन्दी दिवस भारतवर्ष में राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए।
जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि हिन्दी दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाये तो हिन्दी का विकसित रूप समक्ष आता है और साथ ही उसका राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन होना और राजभाषा की गरिमा से मण्डित होना भी समझ आता है। आज हिन्दी का विकसित रूप भारत के समस्त प्रदेशों में साहित्य के रूप में भी अभिव्यक्ति पा रहा है और सम्पर्क भाषा के रूप में भी। हमारा देश जब परतंत्र था तो राष्ट्रीय आन्दोलन की भाषा भी खड़ी बोली हिन्दी ही थी। विभिन्न भाषा-भाषियों ने इसे अपनाया। हिन्दी क्षेत्रों के अतिरिक्त सम्पूर्ण भारत पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण के नेताओं ने इसी को माध्यम बना कर जनसम्पर्क किया। अब स्वाधीनता संग्राम की भाषा बनकर खड़ी बोली हिन्दी स्वभावतः ही जीवनी-शक्ति सम्पन्न होकर राष्ट्रभाषा और सम्पर्क भाषा का दायित्व वहन कर रही है। अभी तक जो कार्य अंग्रेजी में सम्पादित होता था, वह अब हिन्दी में हो रहा है। अतः हिन्दी पूर्व सशक्त एवं सामर्थ्यवान है। वैज्ञानिक, औद्योगिक, प्रशासनिक, व्यापारिक, तकनीकी, राजनयिक, चिकित्सीय आदि सभी क्षेत्रों में हिन्दी की परिव्याप्ति है। पारिभाषिक शब्दकोर्षों का निर्माण द्रुतगति से हो रहा है, इन शब्दों के निर्माण में लगे विद्वान बड़े महत्वपूर्ण कार्य में लगे हैं। ये अनेक भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं के मर्मज्ञ हैं, वे भाषा-विज्ञान से परिचित हैं और शब्द निर्माण की वैज्ञानिक प्रक्रिया से पूर्णतया अवगत हैं। वे सुविचारित और निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार शब्द निर्माण कर रहे हैं अत: हिन्दी दिवस भारतवर्ष में यदि राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जायेगा तो हिन्दी को और अधिक प्रोत्साहन प्राप्त होगा और शीघ्रातिशीघ्र उसमें जो कुछ खामियाँ हैं वह भी समाप्त हो जायेंगी।
विपक्ष में तर्क-भारत में दो मनोवृत्तियों के मनुष्यों का निवास है। विपक्ष कहता है हिन्दी दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में क्यों मनाया जाये क्योंकि अंग्रेजी के बिना भारतीय ज्ञान-विज्ञान में पिछड़ जायेगा। इस अंग्रेजी ज्ञान की अनिवार्यता का प्रचार-प्रसार खूब किया गया, हिन्दी समर्थक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने पर बल देते हैं।
बिना अंग्रेजी देश की एकता खतरे में पड़ जायेगी। अत: अंग्रजी सम्पर्क भाषा के योग्य है। अंग्रजी ही उच्च शिक्षा का माध्यय बन सकती है। इस प्रकार अंग्रेजी के वर्चस्व को बनाये रखने के लिए दो प्रतिशत नौकरशाहों की भाषा को थोपा गया और राष्ट्रहित की घोर उपेक्षा की गई। विपक्ष कहता है अहिन्दी भाषा दो या तीन भाषाएँ सीखेगा और हिन्दी भाषा केवल एक। यह तर्क भी खोखला है।
बिना अंग्रेजी देश की एकता खतरे में पड़ जायेगी। अत: अंग्रेजी सम्पर्क भाषा के योग्य है। अंगेजी ही उच्च शिक्षा का माध्यम बन सकती है। इस प्रकार अंग्रेजी के बर्चस्व को बनाये रखने के लिए दो प्रतिशत नौकरशाहों की भाषा को थोपा गया और राष्ट्रहित की घोर उपेक्षा की गई। विपक्ष कहता है अहिन्दी भाषा दो या तीन भाषाओं सीखेगा और हिन्दी भाषा केवल एक। यह तर्क भी खोखला है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी पूर्ण समर्थ भाषा है। आई0आई0टी0 तकनीकी ज्ञान पर शोध प्रबन्ध हिन्दी के माध्यम से विद्यार्थी लिख रहे हैं और लिखे गये हैं। आई0ए0एस0 की परीक्षा आज हिन्दी व संस्कृत क्या सभी भारतीय भाषाओं के माध्यम से दी जा रही है। अत: हिन्दी दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाना सर्वथा उचित है।
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