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समाज शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में | Society as an Effecting Factor of Education

समाज शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में
समाज शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में

समाज शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में
Society as an Effecting Factor of Education

शिक्षा के प्रभावी कारकों के रूप में परिवार के बाद समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सामान्यत: जिस समाज में व्यक्तियों द्वारा शिक्षा को महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक माना जाता है उस समाज में शिक्षा को प्राप्त करने के उपाय किये जाते है। वर्तमान समय में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षुओं को सामाजिक सहयोग प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है। उनको यह सिखाया जाता है कि वह प्रत्येक क्षेत्र एवं स्थिति में शिक्षा के महत्त्व को स्थानीय, राज्य एवं राष्ट्र स्तर पर प्रचारित करे। इससे समाज का स्वरूप शिक्षित रूप में विकसित होता है। शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में समाज की भूमिका को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) समाज द्वारा शिक्षा के महत्त्व एवं उपयोगिता स्वीकार करने के पश्चात् समाज के सदस्यों के लिये शिक्षा व्यवस्था के लिये उचित एवं सार्थक प्रयास किये जाते है, जिससे बालक में समाज के सदस्य बनने की योग्यता विकसित हो सके।

(2) समाज के स्वरूप के आधार पर बालकों में सामाजिक गुणों का विकास होता है; जैसे-भारतीय समाज का स्वरूप आदर्शवादी एवं नैतिकता से ओत-प्रोत है। इसलिये भारतीय समाज की शिक्षा व्यवस्था में भी नैतिकता एवं आदर्शवादिता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है।

(3) समाज के स्वरूप के आधार पर ही शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप निर्धारित होता है। वर्तमान भारतीय समाजलोकतान्त्रिक मूल्यों का पोषक है। इसलिये शिक्षा व्यवस्था में भी समानता एवं स्वतन्त्रता आदि के मूल्यों का पोषण करने वाली व्यवस्था दृष्टिगोचर होती है।

(4) समाज के अनुरूप ही छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास सम्भव होता है। वर्तमान समाज में प्रेम, सहयोग एवं सहिष्णुता का स्वरूप जिस रूप में दृष्टिगोचर होता है ठीक उसी रूप को शिक्षा द्वारा विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

(5) बालक समाज में रहकर अनेक प्रकार के रीति-रिवाज एवं परम्पराओं को सीखता है जो कि उसके जीवन निर्माण की आधारशिला होती हैं; जैसे- भारतीय समाज का बालक नैतिकता एवं मानवता से सम्बन्धित क्रियाकलापों को सरल एवं स्वाभाविक रूप से सीखने का प्रयास करता है।

(6) भारतीय समाज के विकास एवं शिक्षा की समाज में उपयोगिता के आधार पर निःशुल्क शिक्षा एवं शिक्षा के अधिकार के प्रावधानों का उदय हुआ, जिसके आधार पर भारतीय समाज का प्रत्येक बालक एवं बालिका निःशुल्क शिक्षा का लाभ उठा सकता है तथा शिक्षा की मुख्य धारा से सम्बद्ध हो सकता है।

(7) भारतीय समाज के नियम एवं परम्पराओं के आधार पर ही बालक अपने व्यवहार को परिमार्जित करता है; जैसे- भारतीय समाज में वर्तमान समय में महिलाओं को सम्मान देने की प्रथा के कारण उनके साथ सम्माननीय व्यवहार किया जाता है।

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