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वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ

वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ
वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ

वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ | वैदिककालीन व बौद्धकालीन शिक्षा प्रणालियों की तुलना | वैदिककालीन तथा बौद्धकालीन शिक्षा प्रणालियों में समानताएँ | वैदिक शिक्षा व बौद्ध शिक्षा में अन्तर

वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ

वैदिक काल व बौद्ध काल की शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन होने पर हमें ज्ञात होता है कि दोनों काल की शिक्षा प्रणालियों में अनेक स्तरों पर समानतायें भी थी तथा कुछ अर्थों में व जीवनशैलियों के दृष्टिकोण से असमानतायें भी थी।

वैदिककालीन तथा बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली की समानताएँ

बौद्धकालीन व वैदिककालीन शिक्षा प्रणालियों में निम्न समानतायें दृष्टिगोचर होती हैं-

1. वैदिककालीन ब्रह्मचारियों एवं बौद्धकालीन भिक्षुओं को एक साथ रहना पड़ता था तथा सभी को एक जैसी जीवनचर्या का पालन करना पड़ता था।

2. ब्रह्मचारियों एवं भिक्षुओं को भिक्षा माँगने के लिए प्रतिदिन जाना पड़ता था।

3. वैदिककालीन एवं बौद्धकालीन दोनों युगों में छात्रों को अहिंसा के व्रत का पालन प्रत्येक स्थिति में करना पड़ता था। हिंसा प्रत्येक रूप में त्याज्य थी।

4. बौद्धकालीन व वैदिककालीन दोनों शिक्षा प्रणालियों के उद्देश्य एक समान थे

5. दोनों कालों में शिक्षा नगर से दूर, शांत स्थल पर प्रकृति के रम्य वातावरण में प्रदान की जाती थी।

6. वैदिककालीन एवं बौद्धकालीन भिक्षुओं को एक जैसे सदाचार के नियमों का पालन करना पड़ता था।

वैदिककालीन तथा बौद्धकालीन शिक्षा की असमानतायें

1. वैदिककालीन शिक्षा में ब्रह्मचारी को क ठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था एवं कठिन साधना करनी पड़ती थी। उन्हें किसी प्रकार का कोई भौतिक सुख उपलब्ध नहीं होता था। दूसरी ओर बौद्ध भिक्षुओं को इतनी मात्रा में शारीरिक कष्ट नहीं भोगना पड़ता था। उन्हें समयानुसार भोजन, शारीरिक स्वच्छता व उचित विश्राम की व्यवस्था होती थी। रोगग्रस्त भिक्षुओं की चिकित्सा के लिए मठों की ओर से चिकित्सकों की व्यवस्था की जाती थी।

2. वैदिककालीन शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा में एक प्रमुख अन्तर गुरुओं के सम्बन्ध में था। वैदिककाल में शिष्य तथा गुरु के मध्य अन्तर था। शिष्य अपने जीवन पर्यन्त गुरु को आदर देता था तथा उनसे बराबरी के बारे में सोच भी नहीं सकता था। दूसरी ओर बौद्धकालीन प्रणाली में मठ में प्रवेश करने के बाद शिष्य अपना मत गुरु के सम्मुख रख सकता था। इस स्थिति में मठों में केवल गुरुओं व शिष्यों में ज्ञान का अन्तर रह जाता था। इसी कारण वैदिककालीन शिक्षा को एकतन्त्रीय तथा बौद्धकालीन शिक्षा को जनतन्त्रीय कहा जाता था।

3. वैदिक कालीन शिक्षा का स्वरूप व्यक्तिगत होता था क्योंकि विद्यार्थी गुरु के परिवार में रहकर शिक्षा प्राप्त करता था। बौद्ध काल में शिक्षा मठों में दी जाती थी इस कारण उसका स्वरूप सामूहिक होता था। मठों में दी जाने वाली शिक्षा सुसंगठित होती थी जबकि अन्त में अर्थात् गुरु के घर पर दी जाने वाली शिक्षा इतनी सुसंगठित नहीं होती थी।

4. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु निश्चित थी। वैदिक काल में प्रवेश की आयु 8-11 वर्ष थी। वहीं बौद्धकाल में यह आयु 6-8 वर्ष थी।

5. शिक्षा आरम्भ करने से पूर्व दोनों ही प्रणालियों में संस्कार होते थे। वैदिक काल में इसे उपनयन संस्कार कहा जाता था तो वहीं बौद्धकाल में इसे पवज्जा संस्कार कहा जाता था।

6. दोनों ही शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा की न्यूनतक अवधि निश्चित थी, जिसके बाद शिक्षा प्राप्त
करते रहना व्यक्ति की अपनी रुचि एवं योग्यता पर निर्भर था।

7. दोनों शिक्षा प्रणालियों में प्रवेश संस्कार के बाद ही छात्र को विशिष्ट उपाधि मिलती थी। वैदिक शिक्षा प्रणाली में इसे ब्रह्मचारी या द्विज कहा जाता था जबकि बौद्ध शिक्षा प्रणाली में इसे श्रमण या सामनेर कहा जाता था।

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