विद्यालय शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में
The School as an Effecting Factor of Education
विद्यालय की परिभाषाएँ शिक्षाविदों द्वारा निम्नलिखित प्रकार दी गयी हैं-
(1) टी.पी. नन् (T.P. Nunn) के शब्दों में, “विद्यालय को प्रमुख रूप से ऐसा स्थल नहीं समझना चाहिये, जहाँ कुछ निश्चित ज्ञान सीखा जाता है बल्कि वह बालकों को निश्चित क्रियाओं तथा अनुशासन का ज्ञान प्रदान करने का स्थल है, जिसका इस विस्तृत विश्व तथा महानता में स्थायी महत्त्व है।”
(2) रॉस (Ross) के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिये बालकों की तैयारी में सहायता मिले।”
विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and importance of school)- संस्थागत औपचारिक शिक्षा का केन्द्र विद्यालय होता है। विद्यालय औपचारिक शिक्षा के लिये, विविध प्रयत्न करता है। समाज में विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित प्रकार हैं-
- व्यक्तित्व का विकास करने में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- संस्कृति का विकास तथा हस्तान्तरण विद्यालय द्वारा होता है।
- सामाजिक वातावरण की व्यवस्था विद्यालय द्वारा सम्भव है।
- मानवीय गुणों का विकास विद्यालय द्वारा होता है।
- वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का विकास करने में विद्यालय की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- नागरिकता की शिक्षा प्रदान करने में विद्यालय की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- सांस्कृतिक चेतना का विकास विद्यालय द्वारा होता है।
- जटिल समस्याओं का समाधान विद्यालय द्वारा ही सम्भव है।
- विशिष्ट वातावरण विद्यालय द्वारा उत्पन्न होता है।
- आदर्श समाज का निर्माण भूमिका है। विद्यालय द्वारा होता है।
- व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण विद्यालय अपने पारस्परिक रूप में शिक्षा का औपचारिक साधन है।
यह औपचारिक इस्ल कारण है कि इसके अपने निश्चित उद्देश्य, कार्य तथा कार्यक्रम होते हैं। साथ ही साथ छात्र, शिक्षक, अन्य कर्मचारीगण तथा स्थान भी निश्चित होते हैं। विद्यालय शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति का साधन हैं, जिनकी स्थापना कोई भी समाज एक भली-भाँति सोची-विचारी योजना के अनुसार करता है। यह शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में निम्नलिखित कार्य करता है-
- अपने समाज की संस्कृति का संरक्षण एवं हस्तान्तरण करना।
- नवीन काम के माध्यम से छात्रों में सृजनात्मक शक्ति का विकास करना छात्रों का समाजीकरण करना।
- संस्कृति का नवीनीकरण करना।
- छात्रों में सामाजिक आदतों एवं गुणों का विकास करना।
- समाज में आने वाले परिवर्तनों के लिये तैयार करना।
- सामाजिक कुरीतियाँ, रूढ़ियों आदि का विरोध करने की क्षमता उत्पन्न करना।
- सामाजिक समस्याओं की समझ उत्पन्न करने एवं उनके समाधान के उपाय खोजने के योग्य बनाना।
- सामाजिक विघटन की प्रक्रिया तथा उसके रूप को समझने के योग्य बनाना।
- सामाजिक मूल्यों के प्रति निष्ठा विकसित करना।
- छात्रों को व्यक्तिगत तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अवसर प्रदान करना।
- छात्रों के मानसिक तथा शारीरिक विकास के लिये अवसर प्रदान करना।
- सामुदायिक केन्द्र के रूप में कार्य करना।
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