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स्त्री शिक्षा का प्रशासन और नियन्त्रण | स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम

स्त्री शिक्षा का प्रशासन और नियन्त्रण | स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम
स्त्री शिक्षा का प्रशासन और नियन्त्रण | स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम

स्त्री शिक्षा के प्रशासन और नियन्त्रण से आप क्या समझते हैं ?

स्त्री शिक्षा का प्रशासन और नियन्त्रण (Administration and Contral of Women Education)

भारत में शिक्षा का उत्तरदायित्व मुख्यतया राज्यों का है। इसके विकास का कार्य राज्यों द्वारा ही होता है। अतः प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक स्त्री शिक्षा के सभी विद्यालय चार प्रशासकों के नियन्त्रण में हैं-

(1) केन्द्रीय सरकार – केन्द्रीय सरकार स्त्री शिक्षा की व्यवस्था अलग से नहीं करती, वह स्त्री शिक्षा को भी शिक्षा मन्त्रालय के माध्यम से सामान्य की तरह ही व्यवस्थित तथा सुनियोजित करती है। वह स्त्री शिक्षा की संस्तुतियाँ स्वीकार करके एक राष्ट्रव्यापी नीति का निर्माण करा देती है।

(2) राज्य सरकार – शिक्षा विभाग की सहायता से राज्य सरकारें प्रदेश में राज्य के सभी स्तरों की शिक्षा की व्यवस्था, प्रशासन और नियन्त्रण करती हैं तथा शिक्षा विभाग द्वारा माध्यमिक शिक्षा का संचालन किया जाता है। इसके लिये राज्य सरकारें जिला विद्यालय निरीक्षकों की नियुक्ति करती हैं।

(3) स्थानीय परिषदों के प्रशासन – स्थानीय परिषदों का गठन करके एक मण्डल के सभी कन्या विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का प्रशासनिक तथा आर्थिक उत्तरदायित्व उपरोक्त निरीक्षका के माध्यम से सम्पन्न कराया जाता है। 1959, में स्त्री शिक्षा परिषद् का गठन हुआ।

(4) व्यक्तिगत तथा सामाजिक प्रशासन- सरकार द्वारा स्त्री शिक्षा विकास तथा संरक्षण के लिये व्यक्तिगत तथा सामाजिक तौर पर शिक्षण संस्थानों की नियुक्ति की गयी। राज्यों में शिक्षा विभागों के अन्तर्गत स्त्री शिक्षा उप-विभाग स्थापित किये गये और संयुक्त शिक्षा निदेशकों की नियुक्ति की गयी।

प्रश्न स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए ?

स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Women Education

1. स्त्री शिक्षा का उद्देश्य स्त्रियों को हर क्षेत्र में योग्य बनाने से है, चाहे वह गृहणी के रूप में हो, माता के रूप में हो, पत्नी के रूप में हो या फिर वह समाज में एक योग्य नारी के रूप में हो।

2. स्त्रीशिक्षा के पाठ्यक्रम में, गृहविज्ञान, गृह-अर्थशास्त्र, वस्त्र-विज्ञान, पाकशास्त्र, पोषण विज्ञान और -प्रबन्ध जैसे विषय तथा ललित कलाएँ (संगीत, चित्रकला, नृत्य, पाकशास्त्र आदि) रखी जानी चाहिए।

3. कोठारी आयोग के अनुसार हाईस्कूल स्तर तक गृहविज्ञान सम्बन्धी विषयों के माध्यम से गृह-व्यवस्था जानना आवश्यक है।

4. उच्च शिक्षा के अन्तर्गत ‘पत्राचार शिक्षण व्यवस्था’ तथा सेवाकालीन शिक्षा व्यवस्था’ का निर्धारण किया जाना चाहिए।

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