मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर
मापन
मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर – difference between measurement and evaluation- मनुष्य के जीवन का प्रत्येक क्षण मापन से सम्बन्धित है। बिना मापन के जीवन को सुचारु रूप से चलाना असम्भव है। यथा-ठीक समय पर विद्यालय जाना, आफिस जाना, बस पकड़ना आदि के लिये एक निश्चित समय होता है। जिसका मापन घड़ी के समय द्वारा किया जाता है। वर्तमान समय में शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इसके लिये बालक की जन्मजात शक्तियों एवं योग्यताओं की जानकारी आवश्यक होती है क्योंकि उनमें भिन्न-भिन्न योग्यताएं एवं क्षमताएं होती हैं। उदाहरणार्थ-यदि किसी बालक की मानसिक विकास की जानकारी प्राप्त करनी है तो उसके लिए बुद्धि का मापन, व्यक्तित्व विकास से सम्बन्धित व्यक्तित्व का मापन और उनकी रुचियों की जानकारी के लिए रुचियों का मापन करना होता है जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके।
मापन को किसी व्यक्ति या वस्तु में निहित किसी विशेषता की मात्रा का आंकिक वर्णन प्राप्त करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है। – जी0सी0 हेल्मस्टेडटर
मूल्यांकन
मूल्यांकन सतत चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा के क्षेत्र में साधारणतः मूल्यांकन से अभिप्राय छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि से है। दूसरे शब्दों में मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जो यह बताती है कि वांछित उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया जा चुका है, कक्षा में दिए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं तथा शिक्षा के उद्देश्य कितने अच्छे ढ़ग से पूर्ण हो रहे हैं। मूल्यांकन के तीन प्रमुख अंग हैं-शिक्षण उद्देश्य, अधिगम क्रियाएं, व्यवहार परिवर्तन ।
शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में अधिगम क्रियाएं आयोजित की जाती हैं जिनसे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। छात्रों के व्यवहार में आये इन परिवर्तनों की तुलना वांछित परिवर्तनों से करके मूल्यांकन किया जाता है। इस त्रिगुणात्मक प्रक्रिया को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-
मूल्यांकन का यह नवीन प्रत्यय केवल पाठ्यवस्तु के ज्ञान तक ही सीमित नहीं है वरन् विद्यालय पाठ्यक्रम से सम्बन्धित समस्त उद्देश्यों की एक विशाल तथा व्यापक श्रृंखला का मूल्यांकन करते हैं। वस्तुतः मूल्यांकन का यह प्रत्यय अत्यन्त व्यापक तथा बहुआयामी होता है। चूंकि मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है। अतः इसमें अनेक सोपानों या क्रियाओं का होना स्वाभाविक ही है। ये सोपान क्रमशः तीन हैं-(1) उद्देश्यों का निर्धारण (2) अधिगम क्रियाओं का आयोजन (3) मूल्यांकन।
मापन तथा मूल्यांकन में अन्तर
अधिकतर लोग मापन तथा मूल्यांकन को एक ही मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। मापन का मनुष्य के जीवन में अधिक महत्व है। प्रातः उठने से लेकर सोने तक व्यक्ति प्रत्येक क्षण मापन का ही प्रयोग करता है उसका प्रत्येक कार्य मापन के ही द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे- विद्यार्थी को स्कूल जाना है तो कितने बजे जाना है, स्कूल की कितनी दूरी है, उसे स्कूल में कितने घण्टे पढ़ाई करनी है, कितनी देर की उसे खाने की छुट्टी मिली है कितने-कितने कालांश में उसे कौन-कौन से विषय पढ़ने हैं? आदि। अतः स्पष्ट है कि मापन मानव जीवन में निश्चित नियम लागू करता है। मापन तथा मूल्यांकन एक है, ऐसा सोचना गलत है क्योंकि मापन तो मूल्यांकन का एक अंग मात्र है।
मापन केवल बालकों की उपलब्धियों की जाँच का एक साधन मात्र है जो बालकों की प्रगति को प्राप्तांकों में व्यक्त करता है। लेकिन मापन से मूल्यांकन का क्षेत्र विस्तृत है। मूल्यांकन में मापन और जाँच दोनों ही सम्मिलित हैं। बालकों की रुचियों, आकांक्षाओं, अभिवृत्तियों जानकारी आदि विशेषताओं की जानकारी के लिए जाँच शब्द का प्रयोग किया जाता है। राइट स्टोन के अनुसार “मापन में विषयवस्तु अथवा विशेष कुशलताओं तथा योग्यताओं की उपलब्धि के एकांकी पक्षों पर बल दिया जाता है, परन्तु मूल्यांकन में व्यक्ति से सम्बन्धित परिवर्तनों तथा शैक्षिक कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों पर विशेष बल दिया जाता है। “इस प्रकार स्पष्ट है कि मूल्यांकन छात्रों की कठिनाइयो, कमियों तथा गुणों की जानकारी करने में सहायता देता है और उनके सर्वांगीण विकास को सही दिशा निर्देश देकर गतिशील बनाएं रखने में सहायक होता है।
मूल्यांकन सदैव उद्देश्यों के अनुरूप किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में किसी बालक ने किन्हीं
उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया है इसी के द्वारा शिक्षा में बालक ने जो प्रगति की है,
उसका ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
मूल्यांकन मूल्य निर्धारण की एक प्रक्रिया है। मापन की अपेक्षा मूल्यांकन अधिक व्यापक है। मापन के अन्तर्गत किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गों अथवा विशेषताओं का वर्णन मात्र ही किया जाता है जबकि मूल्यांकन के अन्तर्गत उस व्यक्ति अथवा वस्तु के गुणों अथवा विशेषताओं को वांछनीयता पर दृष्टिगत किया जाता है। अतः मापन वास्तव में मूल्यांकन का एक अंग मात्र है। मूल्यांकन एक ऐसा कार्य अथवा प्रक्रिया है जिसमें मापन से प्राप्त परिणामों की वांछनीयता का निर्णय किया जाता है। मापन वास्तव में स्थिति निर्धारण है जबकि मूल्यांकन उस स्थिति का मूल्यांकन है। छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि को अंकों में व्यक्त करना मापन का उदाहरण है जबकि छात्रों के प्राप्तांकों के आधार पर उनकी उपलब्धि स्तर के सम्बन्ध में संतोषजनक अथवा असंतोषजनक स्थिति का निर्धारण करना मूल्यांकन का उदाहरण है। निःसंदेह मापन मूल्यांकन में सहायक है, परन्तु मूल्यांकन का समानार्थी नहीं है। वस्तुतः मापन की अपेक्षा मूल्यांकन का क्षेत्र अधिक व्यापक होता है।
मापन किसी छात्र के सम्बन्ध में धारणा व्यक्त नहीं करता जबकि मूल्यांकन के आधार पर किसी छात्र के विषय में स्पष्ट धारणा बनाई जा सकती है।
मापन के लिए अधिक श्रम और समय की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु मूल्यांकन में अधिक श्रम और समय की आवश्यकता पड़ती है।
मापन में अंक प्रदान किए जाते हैं। उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच करके उनमें अंक प्रदान करना ही मापन है परन्तु अंक प्रदान करने के पश्चात् अंकों का मूल्य निर्धारित करना ही मूल्यांकन कहलाता है।
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