मार्क्स द्वारा दी गयी विभिन्न युगों की भौतिकवादी
अनुसार उत्पादन प्रणाली के प्रत्येक परिवर्तन के साथ लोगों के आर्थिक सम्बन्ध सामाजिक व्यवस्था आदि में भी परिवर्तन हो जाता है। इस दृष्टि से मानव इतिहास को पाँच युगों में बाँटा जा सकता है— इनमें से प्रथम तीन युग बीत चुके हैं, चौथा चल रहा है, और पाँचवाँ व अन्तिम अभी आने को है। ये पाँच युग है— (1) आदिम साम्यवादी युग, (2) दासत्व युग, (3) सामन्तवादी युग, (4) पूँजीवादी युग और (5) समाजवादी युग।
1. आदिम साम्यवादी युग –
आदिम साम्यवादी युग इतिहास का प्रारम्भिक युग है। इस युग में उत्पादन के साधन किसी व्यक्ति-विशेष के नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के होते थे। उत्पादन और वितरण साम्यवादी ढंग से होता था। पहले पहल पत्थर के औजार और बाद में तीर धनुष से लोग फल-मूल इकट्ठा करते तथा पशुओं का शिकार करते थे। जंगलों से फल इकट्ठा करने, पशुओं का शिकार करने, मछली मारने, रहने के लिए किसी-न-किसी प्रकार का ‘घर’ बनाने और ऐसे ही अन्य कार्यो में सब लोग मिल- जुलकर काम करने को बाध्य होते थे, क्योंकि परिस्थितियों ही कुछ इस प्रकार की थीं कि ये सब काम अकेले नहीं किए जा सकते थे। संयुक्त श्रम के कारण ही उत्पादन के साधनों पर तथा उनसे मिलने वाली वस्तुओं पर सबका अधिकार होता था। उस समय उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार की धारणा का अभाव था। इसलिए वर्ग-प्रथा न थी, और न ही किसी प्रकार का शोषण।
2. इसके बाद दासत्व युग –
इसके बाद दासत्व युग का आविर्भाव हुआ। दास-व्यवस्था के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर दास के मालिकों का अधिकार होता था, साथ ही साथ उत्पादन कार्य को करने ‘वाले श्रमिकों अर्थात् दासों पर भी उनका अधिकार होता था। इन दासों को उनके मालिक पशुओं की भाँति बेच सकते थे, खरीद सकते थे या मार सकते थे। इस युग में खेती और पशुपालन का आविष्कार हुआ और धातुओं के औजारों को उपयोग में लाया गया। इस युग में निजी सम्पत्ति की धारणा विकसित हुई, सम्पत्ति कुछ लोगों के हाथों में अधिकाधिक एकत्र होने लगी तथा सम्पत्ति के अधिकारी इस अल्पसंख्यक ने बहुसंख्यक को दास बनाकर रखा। पहले की भाँति अब लोग स्वेच्छा से मिल-जुलकर काम नहीं करते थे, बल्कि उन्हें दास बनाकर उनसे जबरदस्ती काम लिया जाता था। इस प्रकार समाज दो वर्गों-दास तथा अनेक मालिक-में बँट गया। इन शोषक और शोषित वर्गों में संघर्ष भी स्वाभाविक था।
3. तीसरा युग सामन्तवादी युग –
तीसरा युग सामन्तवादी युग था। इस युग में उत्पादन के साधनों पर सामन्तों का आविष्कार होता था। ये सामन्त उत्पादन के साधनों, विशेषतः भूमि के स्वामी होते थे। गरीब अर्द्ध- दास किसान इन सामन्तों के अधीन थे। उत्पादन का कार्य इन्हीं भूमिहीन किसानों से करवाया जाता था। किसान दास न थे, पर उन पर अनेक प्रकार के बन्धन थे। इन्हें सामन्तों की भूमि की भी जुताई- बुआई आदि बेगार के रूप में करनी पड़ती थी और युद्ध के समय उनको सेना में सिपाहियों के रूप मैं काम करना पड़ता था। इन सबके बदले में उन्हें अपने सामन्तों से अपने निर्वाह के लिए भूमि मिलती थी। निजी सम्पत्ति की धारणा इस युग में और भी प्रबल हुई और सामन्तों द्वारा किसानों का शोषण भी प्रायः दासत्व युग की भाँति होता था। इन दोनों वर्गों में संघर्ष और भी स्पष्ट था।
4. चौथा युग आधुनिक पूँजीववादी युग –
चौथा युग आधुनिक पूँजीववादी युग है। इस युग का प्रादुर्भाव मशीनों के आविष्कार तथा बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों के जन्म के फलस्वरूप हुआ इस युग में उत्पादन के साधनों पर पूँजीपतियों का अधिकार होता है। उत्पादन-कार्य करने वाला दूसरा वर्ग-चेतनभोगी श्रमिक-व्यक्तिगत रूप में स्वतन्त्र होते हैं, इस कारण दासों की भाँति उन्हें पूँजीपति लोग बेच या मार नहीं सकते हैं, परन्तु चूँकि उत्पादन के साधनों पर श्रमिक का कुछ भी अधिकार नहीं होता, इस कारण अपने तथा अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भूखों मरने से बचाने के लिए उन्हें अपने श्रम को पूँजीपतियों के हाथ बेचना पड़ता है जोकि उन्हें नाम-मात्र का वेतन देते हैं। पूँजीपतियों के इस प्रकार के उत्तरोत्तर बढ़ने वाले शोषण के फलस्वरूप श्रमिकों की दशा दिन-प्रतिदिन अधिक दयनीय होती जाएगी और अन्त में श्रमिक-वर्ग बाध्य होकर क्रान्ति के द्वारा पूँजीपतियों को उखाड़ फेकेगा। इस प्रकार सर्वहारा के अधिनायकत्व की स्थापना होगी और समाजवादी या साम्यवादी युग के आगमन का पथ प्रशस्त होगा।
5. पाँचवाँ और आधुनिकतम युग –
पाँचवाँ और आधुनिकतम युग होगा समाजवादी या साम्यवादी युग। यह युग सर्वरूप में वर्ग-विहीन, राज्य-विहीन और शोषण रहित होगा। जैसाकि पहले भी कहा गया है, यह तभी सम्भव होगा जबकि पूँजीवादी व्यवस्था को खूनी क्रान्ति के द्वारा श्रमिक वर्ग उखाड़ फेंकेगा और शासकीय शक्ति पर अपना अधिकार जमा लेगा। परन्तु श्रमिक वर्ग के हाथ में शक्ति आ जाने से ही समाजवाद की स्थापना या समाजवादी व्यवस्था सम्भव न होगी क्योंकि पूँजीवादी वर्ग का सम्पूर्ण विनाश उस स्तर पर भी न होगा और उस स्तर के बचे खुचे कुछ लोग रह ही जाएँगे जो उस नवीन समाजवादी व्यवस्था को उलट देने का प्रयत्न करेंगे। इन लोगों का विनाश धीरे-धीरे ही होगा और इसके लिए आवश्यक तैयारी की आवश्यकता होगी। नए सिरे से समस्त समाज का पुनर्निर्माण करना होगा। यही संकरमणकालीन युग होगा। इस युग में राज्य का प्रमुख कार्य निम्नलिखित होगा—भूमि के व्यक्तिगत स्थामित्व का अन्त, यातायात के साधनों का राष्ट्रीयकरण, कानून द्वारा मुद्रा का नियन्त्रण, व्यापार तथा वाणिज्य का नियमन, सम्पत्ति के उत्तराधिकार को उन्मूलन, कारखानों में बाल-श्रम का निषेध और प्रत्येक प्रकार के एकाधिकारों या विशेषाधिकारों का अन्त करना।
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