समाजशास्‍त्र / Sociology

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (कार्ल मार्क्स)| Dialectical materialism in Hindi

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद

 द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (कार्ल मार्क्स)

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद – कार्ल मार्क्स के सम्पूर्ण चिंतन का आधार ऐतिहासिक भौतिकवाद और द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद अर्थात जगत के क्रिया कलापों घटनाओं, परिवर्तनों की रीढ़ भी है और आधार भी। समाज के विकास और परिवर्तन को समझने का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। यह वह दर्शन है जो व्यक्ति को भाववादी दर्शन से अलग करता है और वैज्ञानिक दृष्टि अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि ‘मनुष्य से लेकर प्रकृति के सम्पूर्ण क्रिया-कलाप को परखने और समझने का जो मार्क्सवादी दृष्टिकोण है उसे द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद कहा जाता है। यह दृष्टिकोण द्वन्द्वात्मक और भौतिकवाद, इन दोनों विचार पद्धतियों के संयोग से विकसित हुआ है, इसीलिए इसे द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की संज्ञा प्रदान की गई है। स्तालिन के शब्दों में ‘यह द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद इसलिए कहा जाता है कि प्राकृतिक घटनाओं को देखने, परखने और पहचानने का इसका ढंग द्वन्द्वात्मक है और इन प्राकृतिक घटनाओं की इसकी व्याख्या, धारणा एवं सिद्धान्त-विवेचना भौतिकवादी है।’

प्राचीन दर्शन यह मानता है कि विश्व में कोई परिवर्तन हीं होता। वह जैसा है वैसा ही बना रहता है। समान प्रक्रियाओं के सनातन चक्र के रूप में बना रहता है। ठीक इसके विपरीत विज्ञान ने विकास को एक तथ्य रूप में माना है। उनकी धारणा है कि विकास एक समान निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है और उन्होंने निरन्तरता में आकस्मिकता अन्तराल, एक मंजिल से दूसरी मंजिल में छलांग की घटना को स्वीकार नहीं किया है।

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एक वैज्ञानिक अवधारणा है। वह भाववादी दर्शन का अंग नहीं है। वह घटनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण कर निष्कर्ष पर पहुँचता है। इसीलिए यह विश्व को न तो स्थिर मानता है और न अपरिवर्तनशील ही। बल्कि विकास की एक-एक अनवरत प्रक्रिया है यह विकास को एक अटूट प्रक्रिया के रूप में नहीं देखता। यह स्वयं भौतिक प्रक्रियाओं में अन्तर्विरोधों को तलाशता है जो प्रकृति तथा समाज की प्रत्येक प्रक्रिया में गतिशील होती है। भौतिकवादी द्वन्द्ववाद की व्याख्या करते हुए मारिस कानफोर्थ लिखते हैं।

‘प्रकृति के सभी घटनाक्रमों व प्रक्रियाओं में अन्तर्विरोधपूर्ण, परस्पर अलग, विपरीत प्रवृत्तियों को स्वीकार करना केवल यही प्रत्येक अस्तित्वमान वस्तु की आत्म गति तक पहुँचने की कुंजी है। केवल यही वह कुंजी है जिसके जरिये हम छलांगों, निरन्तरता में टूट, विपरीत वस्तुओं मैं रूपान्तर, पुराने के विध्वांस और नए की समझ तक पहुँच सके। अपने उचित अर्थ में, वस्तुओं के सारतत्व में मौजूद अन्तर्विरोध का अध्ययन ही द्वन्द्ववाद है।’

बी0 अफनास्येव ने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि- ‘इस प्रकार द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद एक ऐसा विज्ञान है जो दर्शन के मौलिक प्रश्न के सही उत्तर के आधार पर भौतिक जगत के विकास को अधिशासित करने वाले सामान्यतम, द्वन्द्वात्मक नियमों का उदघाटन करता है तथा इस जगत का संज्ञान प्राप्त करने और उसका क्रान्तिकारी कायापलट करने के उपाय बताता है।’

मार्क्स के पूर्व के विचारकों एवं दार्शनिकों ने विकास के सामान्य नियमों को जानने का यथासम्भव प्रयास किया। शोध जैसा कार्य भी किया। उन्होंने संसार का अखण्ड और सामंजस्यपूर्ण चित्र पेश करने का प्रयत्न भी किया। बहुतों ने इसमें बहुत कुछ सफलता भी प्राप्त की पर वह संसार की घटनाओं व विकास का वैज्ञानिक विश्लेषण करने में असमर्थ रहे। कुछ के कार्य उनके भाववादी दर्शन के कारण सीमित दृष्टिकोण के घेरे में रह गये दूसरे अधिभौतिक विधि की सीमा रेखाओं ने सफल नहीं होने दिया। यह जानना बहुत आवश्यक है कि मार्क्स और एंजेल्स ने सामाजिक जीवन के विकास के वैज्ञानिक सिद्धान्त, समाज को जानने के लिए और उसमें क्रान्तिकारी बदलाव लाने की विधि, ऐतिहासिक भौ को अपनाया। इस दृष्टि से समाज के विकास को अधिशासित करने वाले सर्वमान्य नियमों के विज्ञान की हैसियत से ऐतिहासिक भौतिकवाद मार्क्सवादी दर्शन का अभिन्न अंग है। इसी दर्शन की अफनास्येव ने अपने तर्कों द्वारा पुष्टि की है।

राहुल सांस्कृत्यायन द्वन्द्ववाद को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि-

‘आप एक बात करते हैं, हम उसका विरोध करते हैं—फिर हमारी और आपकी परस्पर विरोधी बातों से एक तीसरी बात तय हो पाती है—इस तरह जहाँ परस्पर विरोधी बातों से तीसरे तत्व की उत्पत्ति होती है, उसे डायलेक्टिस कह सकते हैं। जिसे हिन्दी में हम द्वन्द्ववाद या द्वन्द्वात्मकवाद कह सकते हैं।’ द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया में जिस क्रम से हम परिणाम या तत्वबोध पर पहुँचते हैं, उसे तीन सीढ़ियों में विभक्त किया जा सकता है।

1. वाद जीव भूत है।
2. प्रतिवाद-जीव भूत नहीं बिल्कुल अलग चेतन तत्व है।
3. संवाद-जीव न भूत है न अलग तत्व, बल्कि वह भूत के गुणात्मक परिवर्तन से उत्पन्न एक नया तत्व है। उत्पन्न एक

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment