शैक्षिक प्रशासन का महत्व (Importance of Educational Administration in Hindi)
शैक्षिक प्रशासन का महत्व – शैक्षिक प्रशासन के महत्व को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-
1. शिक्षा के निर्धारण हेतु-
शिक्षा के उद्देश्यों – शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास, सांस्कृतिक विकास, नैतिक एवं चारित्रिक विकास, व्यावसायिक विकास शासनतन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति, आध्यात्मिक समायोजन, पूर्ण जीवन की तैयारी आदि की प्राप्ति तभी सम्भव है जबकि शैक्षिक प्रशासन कुशल हो, स्थिर हो और बालक के व्यक्तित्व विकास करने में सहायक हो। यह शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों की उपलब्धियों में वृद्धि वाला हो। अत: शिक्षा के निर्धारित उददेश्यों की प्राप्ति हेतु शैक्षिक प्रशासन का विशेष महत्व एवं आवश्यकता हो।
2. शैक्षिक अपव्यय व अवरोधक को दूर करने हेतु-
शैक्षिक प्रशासन की कुशलता अपव्यय और अवरोधन को रोकने में सहायक हो सकती है। अपव्यय से अभिप्राय बालक का बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने से है। इससे राष्ट्रीय धन और श्रम दोनों का अपव्यय होता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह बहुत खतरनाक स्थिति है। अवरोधक से अभिप्राय बालक का किसी कक्षा में बार-बार दो या तीन साल तक फेल होते रहने से है। इससे बालक की क्षमता और शक्ति का ह्रास होता ही है साथ ही राष्ट्रीय जन और धन दोनों का दुरुपयोग होता है। अच्छी शिक्षा के लिये प्रशासन को सुव्यवस्थित करना आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप ही समाज का विकास होता है और देश का निर्माण होता है। अत: शैक्षिक प्रशासन अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इसकी महती आवश्यकता है।
3. साधनों में समन्वय स्थापित करने हेतु-
शैक्षिक प्रशासन मानवीय तत्वों (शिक्षक छात्र, कर्मचारी, प्रशासक आदि) में समन्वय स्थापित करता है अर्थात् शिक्षा प्रक्रिया को उचित ढंग से संचालित करके इन तत्वों के मध्य ताल-मेल (समन्वय) स्थापित करता है। शिक्षा प्रशासन मानव को महत्व देता है, बालक के विकास को महत्व देता है। इसका सम्बन्ध मानवीय विचारों से होता है उनकी भावनाओं से होता है और बालक के व्यक्तित्व विकास से होता है। अत: शिक्षा के कार्यों में कुशलता, सुगमता और सरलता लाने के लिये शैक्षिक प्रशासन मानवीय और भौतिक तत्वों में समन्वय स्थापित करता है। समन्वय स्थापना सरल कार्य नहीं है। अत: कुशल शैक्षिक प्रशासन की महती आवश्यकता है।
4. लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था को मजबूत बनाने हेतु-
शैक्षिक प्रशासन, लोकतन्त्र को मजबूत बनाता है। यह शिक्षा में अवसरों की समानता को आधार बनाकर प्रत्येक नागरिक को समान रूप से शिक्षा प्रदान करता है। यह आज भी बदलती हुई परिस्थितियों में शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी को समायोजित करता है और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक दृष्टि से बालक का विकास करता है। इससे बालकों में सहयोग, सहानुभूति, निकट-सम्पर्क प्रेम की भावना जाग्रत होती है। यह भावना ही लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाने में सहायक होती है, अतः लोकतन्त्र की मजबूती के लिये कुशल शैक्षिक प्रशासन का विशेष महत्व है और इसकी महती आवश्यकता है।
5. शैक्षिक नीतियों एवं योजनाओं को निर्धारण हेतु-
वर्तमान में शिक्षा को एक उद्योग का दर्जा दिया गया है। इसमें किया गया व्यय विनियोग कहलाता है अर्थात् धन का वापस होना। किन्तु यह विनियोग दीर्घकालिक हैं क्योंकि शिक्षा व्यवस्था पर होने वाला व्यय श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करता है जो दीर्घकाल में सम्भव हो पाता है। शिक्षा का अधिक प्रसार, संवैधानिक व्यवस्थाओं द्वारा लिंग-भेद, जाति-भेद, वर्ग-भेद आदि असमानताओं को समाप्त करना, पिछड़े व कमजोर वर्ग के लिये अतिरिक्त साधन जुटाना, शिक्षा प्रसार की व्यवस्थाओं को प्रभावपूर्ण बनाने के लिये सुप्रशासन की आवश्यकता होती है। सुप्रशासन से ही संविधान और उसकी व्यवस्थाओं एवं सुविधाओं का अधिकतम उपयोग होता है। इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन उन योजनाओं और नीतियों का निर्धारण करता है जिनसे शिक्षा की पहुँच प्रत्येक बालक तक बने, कोई वंचित न रहे और अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो सके। अत: शैक्षिक नीतियों, योजनाओं का निर्धारण, निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन करने के लिये कुशल शैक्षिक प्रशासन की अति आवश्यकता है।
6. पाठ्यक्रम के निर्धारण हेतु-
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पाठ्यक्रम निर्धारिण, विभिन्न पहलुओं और साधनों में समन्वय शैक्षिक प्रशासन करता है। यह विद्यालय के पाठ्यक्रम का निर्धारण करता है, उसे चलाने की व्यवस्था करता है, शिक्षण की नवीन विधियों का प्रचार-प्रसार करता है और इस प्रकार विकास के मार्ग को आगे बढ़ाता है।
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