जायसी के रहस्य भावना
जायसी हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण धारा की प्रेममार्गीय शाखा के प्रमुख कवि हैं। जायसी ईश्वर प्राप्त का साधन प्रेम मानते थे। रहस्यवाद अथवा रहस्य भावना की आचार्यों ने अनेक परिभाषाएँ की हैं, पर वास्तविकता यह है कि आत्मा का परमात्मा के प्रति आकर्षण अथवा प्रेम ही रहस्य भावना है। ईश्वर प्राप्ति का साधन प्रेम मानने वाले जायसी की कविता में रहस्य भावना होना स्वाभाविक है।
जायसी सूफी कवि थे। सूफी शब्द इस्लाम धर्म में उसी आशय को व्यक्त करता है, जिस आशय की हिन्दू धर्म में रहस्यवाद शब्द प्रतीत कराता है। प्रेम को सर्वाधिक महत्त्व देने के कारण जायसी रहस्य भावना को सरस और सहज रूप में व्यक्त करने में सफल हुए हैं। रहस्यवाद के दो भेद किये हैं-भावनात्मक रहस्यवाद और साधनात्मक रहस्यवाद । जायसी के ‘पद्मावत’ में रहस्यवाद के ये दोनों रूप उपलब्ध होते हैं-
(क) भावनात्मक रहस्यवाद- जायसी की कविता में प्रेम की प्रधानता है। है। ये ईश्वर प्राप्ति का साधन प्रेम ही मानते थे। प्रेम में भावना की प्रधानता स्वाभाविक ईश्वर प्राप्ति का साधन शुद्ध प्रेम रहता है और उसका सम्बन्ध हृदय से रहता है तभी यह भावना रहस्य भावना है। जब प्रेम के साथ-साथ श्रद्धा का भाव मिल जाता है तो वह भक्ति-भावना हो जाती है। प्रेम साधन रहस्य भावना में हृष्ट के प्रति पूर्ण समर्पण रहता है। रत्नसेन के द्वारा अपनी पत्नी नागमती और चित्तौड़ के राज्य को त्याग कर पद्मावती की प्राप्ति हेतु निकल पड़ने में पूर्ण समर्पण है।
समर्पण की भावना आने पर सभी ओर उसी प्रिय अथवा इष्टदेव की सुन्दरता बिखरी जान पड़ती है। जो भी सुन्दर और आकर्षक वस्तु दिखती है, वह उसी प्रिय का अंश प्रतीत होती है। पद्मावती के नयनों को देखकर कमल, शरीर को देखकर निर्मल नीर, हँसी को देखकर श्वेत हंस और दाँतों को देखकर हीरा बना
नयन जो देखा कमल भा, दसन जोति नग हीर।
हँसत जो देखा हँस भा, निरमल नीर सरीर ।।
सर्वत्र वही असीम व्याप्त प्रतीत होता है। ऐसा कोई स्थान नहीं मिलता, जहाँ वह और उसकी शोभा न समाई हो। कहीं वह प्रकट और कहीं गुप्त है। प्रकट और गुप्त सभी वस्तुओं में एकमात्र उसी का नाम है-
परगट सकल ग्रह पूरि रहा सो नाँव ।
जहाँ देखौ तहँ ही, दूसर नहिं जहँ जाँव ।।
सूर्य, चन्द्रमा और तारे उसी को ज्योति से चमकते हैं। मोती आदि सभी रत्नों में उसी की ज्योति समाई हुई है-
रवि ससि नखत दिपहि ओहि जोती ।
रतन पदारथ मानिक मोती ।।
प्रेम की भावना जितनी सरला और स्पष्टता से विवाह अथवा पति-पत्नी के सम्बन्ध के द्वारा समझी जा सकती है, उतनी किसी भी दूसरे के द्वारा नहीं। ज्ञानमार्गीय कबीर को भी अपनी बात समझाने के लिए आत्मा-परमात्मा को पत्नी और पति का रूपक देना पड़ा था। प्राचीन काल में जिस प्रकार कन्या विवाह के बाद पिता के घर न लौटकर ससुराल में ही रहती थी, उसी प्रकार असीम प्रभु को पाने के बाद आत्मा इस संसार में नहीं है-
होई विवाह पुनि होइहि गवाना ।
गवनब तहाँ बहुरि नहि अवना ।।
(ख) साधनात्मक रहस्यवाद- साधनात्मक रहस्यवाद हठयोग का दूसरा नाम है। जायसी के समय भारतवर्ष में हठयोग का बहुत प्रचार था। यही कारण है कि रत्नसेन पद्मावती को पाने के लिए जोगी बन गया और हठयोग की साधना करने लगा । जोगी के रूप में सारंगी बजाकर भीख माँगता हुआ वह सिंहलद्वीप की ओर बढ़ने लगा। वहाँ पहुँचते-पहुँचते उसके साथ शिष्यों की भीड़ हो गई।
जायसी ने सिंघल द्वीप के राजा के गढ़ का जो वर्णन किया है वह हठयोगियों के अनुसार शरीर के भीतर साक्षात्कार का विषय होने वाली स्थितियाँ हैं। कुछ पंक्तियाँ उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं-
गढ़ पर नीर खीर दुइ नदी- पनिहारी जैसे दुरपदी।
मानव मन में सत् और असत् दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ हैं। उन्हें आत्मसात करने वाली चेतना द्रौपदी के समान सुन्दरी है। वहाँ पर अर्थात् सिंहल द्वीप के गढ़ में मोतीचूर नामक एक कुंड था, जिसका पानी अमृत ओर कीच कपूर के समान था-
ओर कुण्ड एक मोती चुरु पानी अमृत कपूरू ।
सिंहल द्वीप के गढ़ में नौ मंजिलें थीं। नवीं मंजिल के ऊपर दसवाँ द्वार था, जहाँ राजा का घड़ियाल बजता रहता है। हठयोग की साधना के अनुसार कुंडिलनी नौ चक्रों को पार करने बाद ब्रह्मरन्ध्र पर पहुँचती है, जहाँ जीवन की घड़ियाँ कम होती जाने का बोध कराने वाली चेतावनी मिलने का बोध होता है। ब्रह्मरन्ध्र को दसवाँ द्वार बताते हुए जायसी ने लिखा है-
नव पौरी पर दसवें दुआरा, ता पर बाज राज घरियारा।
सूफी सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार साधक चार स्थितियों को पार करके अपने इष्ट स्थान पर पहुँचता है। जायसी ने भारतीय हठवाद और सूफी मान्यताओं का समन्वय करते हुए लिखा है-
नवी खण्ड नव पौरी औ तहँ दसवँ दुआर ।
चारि बसेरे सो चढ़े सत सौं उतरे पार ।।
नौ खण्डों पर नौ द्वार बने हुए हैं, किसी भी खण्ड में प्रवेश करना सरल नहीं है। प्रत्येक द्वार पर वज्र के किवाड़ लगे हैं और प्रत्येक द्वार की रक्षा के लिए हजार-हजार सिपाही बैठे हैं। चार बसेरे सूफी सम्प्रदाय की मान्यता के स्थितियाँ शरीअत, तरीकत, हकीकत और मारिफत हैं। साधक उन पर विश्राम करतो अनुसार चार हुआ आगे बढ़ता है और अपने सत्व की शक्ति से पार उतारता है। कुंडलिनी को नौ स्थितियाँ पार करने में जो असुविधा होती है, उसी ओर जायसी ने संकेत किया है। प्रत्येक खण्ड पर बने द्वार के वज्र किवाड़ों और वहाँ बैठे रक्षकों का संकेत भी किया जाता है-
नवाँ खण्ड नव पौरी औ तहँ बजर किवार।
चारि बसेरे सौ चढ़े सत सौ उतरे पार ।
पौरी नवौ वज्र कै साजी, सहस- सहस तहँ बैठे पाजी।।
जायसी का रहस्यवाद और अद्वैतवाद- अद्वैती रहस्यवाद की तात्पर्य उस रहस्यवाद से है, जिसमें भावुक के द्वारा ब्रह्म, जगत् तथा आत्मा की एकता निरूपित की गई है। जब इन तीनों की एकता सम्पूर्ण रमणीयता एवं भावुकता के साथ स्थापित हो जाती है तो उसी को अद्वैती रहस्यवाद कहा जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जायसी की गणना इसी प्रकार के कवि के रूप में की है। जायसी भारत के कवि थे, अतः उन्होंने रहस्यवाद की शुष्कता को भावुकता से मिला दिया है। इसी से इनका रहस्यवाद हिन्दी कवियों में रमणीय और अद्वैती रहस्यवाद माना गया है। रहस्यवाद अज्ञात को जानने की इच्छा से उत्पन्न होता है और उससे ही अपना सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है। इस सम्बन्ध की भावनाओं में जो सुख-दुखात्मक अनुभूति होती है वही रहस्यवाद की भूमिका तैयार करती है।
पद्मावत की कथा की आध्यात्मिकता- पद्मावत की कथा ऐतिहासिक के साथ-साथ आध्यात्मिक भी है। जायसी ने पद्मावत के अन्त में यह संकेत किया है। जायसी के अनुसार शरीर चित्तौड़, राज रत्नसेन मन है, पद्मावती बुद्धि है और हीरामन तोता गुरु है। इनके अतिरिक्त भी कुछ पदों में जायसी ने आध्यात्मिकता की ओर संकेत किया है-
तन चित उन मन राजा कीन्हा ।
हिय सिंहल बुद्धि पद्मिनि चीन्हा ।।
गुरु सुआ जंहि पंथ दिखावा।
बिनु गुरु जगत् को निर्गुन पावा ।।
नागमती यह दुनियाँ अंधा ।
बाँचा सोझ न यह चित बाँधा ।।
राघव दूत सोई सैतानू।
माया अलाउद्दीन सुलतानू ।।
जायसी ने पदमावती और रत्नसेन की प्रेम कथा का इसी प्रकार वर्णन किया है। यदि कोई समझ सकता है तो समझ ले।
प्रेम कथा यह भाँति विचारहु बूझि लेहु जो बूझै पारहु ।
जायसी के साहित्य में प्रेममूलक रहस्यवाद – जायसी के रहस्यवाद का आधार प्रेम है। जायसी ने मौलिक प्रेम का वर्णन किया अवश्य है, पर आध्यात्मिक प्रेम का बोध अथवा अनुभव बताने को किया है। हीरामन तोता से पद्मावती का सौन्दर्य वर्णन सुनकर राजा मूर्छित हो गया-
सुनतहि राजा गा मुरुझाई ।
मानो लहरि सुरुज की आई ।।
किसी स्त्री का सौन्दर्य वर्णन सुनकर कोई मूर्च्छित नहीं हो सकता, न किसी के मन में किसी नारी के प्रति इतना उत्कृष्ट प्रेम हो सकता है। रतनसेन के हृदय में यह प्रेम आध्यात्मिक था । वियोग की यह भावना लौकिक नहीं आध्यात्मिक थी। हीरामन तोता रूपी गुरु ने रतनसेन रूपी शिष्य के मन में वियोग की चिनगारी डाली ने थी, उसे शिष्य ने सुलगाकर ज्वाला बना लिया ।
गुरु विरह निगी जो मेला ।
जो सुलगाय लोई सो चेला ।।
पद्मावत में प्रकृतिमूलक रहस्यवाद – प्रकृति के माध्यम से आत्मा-परमात्मा का सम्बन्ध स्थापित करना प्रकृतिमूलक रहस्यवाद है। जायसी ने अपने ‘पद्मावत’ में प्राकृतिक सौन्दर्य के माध्यम से परोक्ष सत्ता अथवा ब्रह्म के सौन्दर्य की ओर संकेत किया है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे, रत्न आदि उसी की ज्योति से दीप्त होते हैं-
रवि ससि नखत दिपहि ओहि जोती ।
रतन पदारथ मानिक मोती ।।
पद्मावती के नयनों को देखकर कमल उत्पन्न हुआ, उसके शरीर को देखकर निर्मल जल का निर्माण हुआ। पद्मावती की हँसी देखकर हंस और दाँतों की ज्योति से हीरा तथा अन्य नग बने-
नयन जो देखा कमल भा, निरमल नीर सरीर ।
हँसत जो देखा हंस भा, दसन जोति नग हीरा ।।
किसी नारी के सौन्दर्य का चमत्कार न होकर यह आध्यात्मिक सौन्दर्य का प्रभाव है। सार्थक जिस प्रकार अपने इष्ट के वियोग में व्याकुल होता है, उसी प्रकार प्रकृति में भी विरह की यह व्याकुलता देखी जा सकती है। पद्मावती को देखकर मानसरोवर भी हिलोरें लेने लगा था-
सरवर रूप विमोहा, हिये लिहोरें लेइ ।
पाँव छुवैपकु पांवों, पहि मिल लहरहिं लेइ ।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जायसी का रहस्यवाद हिन्दी साहित्य में अद्वितीय और प्रभावशाली है।
- जायसी का रहस्य भावना
- जायसी का विरह वर्णन
- मलिक मुहम्मद जायसी का प्रेम तत्त्व
- मलिक मुहम्मद जायसी का काव्य-शिल्प
- कबीर एक समाज सुधारक ( kabir ek samaj sudharak in hindi)
Important Links…
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- सन्त काव्य की प्रमुख सामान्य प्रवृत्तियां/विशेषताएं
- आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ/आदिकाल की विशेषताएं
- राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- सूफ़ी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- संतकाव्य धारा की विशेषताएँ | संत काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियां
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | स्वर्ण युग की विशेषताएँ
- आदिकाल की रचनाएँ एवं रचनाकार | आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
- आदिकालीन साहित्य प्रवृत्तियाँ और उपलब्धियाँ
- हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर
- हिन्दी के भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का वर्णन कीजिये।
- हिन्दी की मूल आकर भाषा का अर्थ
- Hindi Bhasha Aur Uska Vikas | हिन्दी भाषा के विकास पर संक्षिप्त लेख लिखिये।
- हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग, उद्भव, उत्पत्ति, विकास, अर्थ,
- डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- मलयज का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
Disclaimer