वनों का महत्व पर निबंध
वन प्राकृतिक ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। वनों में उगने वाले वृक्ष हमारे जीवन का मुख्य अंग हैं, क्योंकि ये कार्बन डाइऑक्साइड का सेवन करके हमें प्राणदायी आक्सीजन देते हैं। किसी भी देश के आर्थिक विकास व उसकी समृद्धि में वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आर्थिक विकास के लिए वन केवल कच्चे माल की पूर्ति ही नहीं करते, वरन् बाढ़-नियन्त्रण करके भूमि के कटाव को भी रोकते हैं।
पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “एक उगता हुआ वृक्ष राष्ट्र की प्रगति का जीवित प्रतीक है।” भारतीय अर्थव्यवस्था में वनों का अत्यन्त महत्त्व है। इनसे न केवल जलाने के लिए लकड़ी मिलती है, वरन् उद्योगों के लिए कच्चे पदार्थ, रोगों के उपचार के लिए अनेक औषधियाँ, पशुओं के लिए चारा तथा सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होती है। वन देश की जलवायु को सन्तुलित बनाए रखते हैं, वर्षा को नियन्त्रित करते हैं, भूमि कटाव को कम करते हैं, रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं तथा देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं। वनों के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए जे० एस० कॉलिन्स का कथन है, “वृक्ष पर्वतों को थामे रखते हैं, तूफानी वर्षा को दबाते हैं तथा नदियों को अनुशासन में रखते हैं। वे झरनों को बनाए रखते हैं तथा पक्षियों का पोषण भी करते हैं।”
वनों से प्राप्त प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभों का विवरण इस प्रकार है-
(क) प्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित रूपों में जाने जा सकते हैं-
1. वनों से हमें अनेक प्रकार की लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं, जो मुख्यतः ईंधन के रूप में जलाने के काम आती हैं। इनमें साल, सागौन, चीड़, देवदार, शीशम, आबनूस तथा चन्दन आदि की लकड़ियाँ मुख्य हैं जिनका उपयोग फर्नीचर, रेल के डिब्बे, स्लीपर, जहाज, माचिस आदि बनाने तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है। लकड़ी के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण सहायक उपज भी प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग देश के अनेक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इन सहायक उपजों में लाख, चमड़ा, गोंद, शहद, कत्था, छालें, बाँस व बेंत, जड़ी-बूटियाँ एवं जानवरों के सींग इत्यादि मुख्य हैं। इनमें कागज उद्योग, दियासलाई उद्योग, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर उद्योग, तेल उद्योग तथा औषधि उद्योग मुख्य हैं।
2. वनों से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग करके भारत में अनेक लघु तथा कुटीर उद्योगों की स्थापना है। इनमें टोकरियाँ व बेंत बनाना, रस्सी बँटना, बीड़ी बनाना तथा गोंद व शहद एकत्र करना इत्यादि मुख्य हैं।
3. वनों पर आधारित उद्योगों तथा वन विकास से सम्बन्धित अनेक निगमों एवं विभागों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 7.8 करोड़ व्यक्तियों की जीविका वनों पर आश्रित है। भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न पशुओं को वनों से पर्याप्त चारा प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त वन विविध पशु-पक्षियों का पालन-पोषण करने की दृष्टि से भी उपयोगी हैं। सरकार को वनों का उपयोग करने से राजस्व तथा नीलामी-रॉयल्टी के रूप में प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों की प्राप्ति होती है।
4. वन सरकार को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित कराने में बहुत सहायता प्रदान करते हैं। विभिन्न वन्य पदार्थों, जैसे-लाख, तारपीन का तेल, चन्दन का तेल एवं उससे बनी कलात्मक वस्तुओं आदि के निर्यात द्वारा सरकार को प्रतिवर्ष लगभग 50 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हो रही है।
5. भारतीय वनों में कुछ ऐसी वनस्पतियाँ तथा जड़ी-बूटियाँ पाई जाती हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार की औषधियाँ तैयार की जाती हैं। इन औषधियों के द्वारा अनेक रोगों का उपचार सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
(ख) अप्रत्यक्ष लाभ
उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त वनों से अनेक परोक्ष लाभ भी हैं जो भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वन वातावरण के तापक्रम, नमी तथा वायु प्रवाह को नियन्त्रित करके जलवायु में सन्तुलन बनाए रखते हैं। ये आँधी और तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं तथा गर्म व तेज हवाओं को रोककर देश की जलवायु को सम-शीतोष्ण बनाए रखते हैं। वनों में उत्पन्न होनेवाले वृक्ष वातावरण से दूषित वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) को अपने पोषण हेतु ग्रहण करते हैं, जबकि अन्य जीव-जन्तु ऑक्सीजन ग्रहण करके दूषित वायु निकालते हैं। इस प्रकार पेड़-पौधे वायु प्रदूषण को दूर करके पर्यावरण में सन्तुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
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